मध्यप्रदेश की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने से लेकर राजनीति की दिशा तक तय करने में जनजातीय समुदाय की भूमिका कई मायनों में महत्वपूर्ण रही है। पिछले दो दशक में मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए कई सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं। फिर चाहे वह जनजातीय नायकों का सम्मान बढ़ाना हो या जनजातीय समुदाय को उनके अधिकार दिलाने हों। हर मुद्दे पर प्रदेश की शिवराज सरकार ने निर्णायक कदम उठाए हैं।

यह भी सच है कि लम्बे समय तक मध्यप्रदेश का जनजातीय समुदाय अपनी तमाम विशिष्टताओं के बावजूद विकास की मुख्य-धारा से लगभग अलग-थलग रहा, पर अब यह स्थिति प्रदेश में बदल रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कुशल नेतृत्व में प्रदेश की जनजातियों की सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक स्थिति में तेजी से बदलाव आया है। राज्य सरकार की कोशिशों से राज्य में जनजातियों के नए दौर की शुरुआत हुई है।

जनजातीय विकास के लिए शिवराज ने खोले खजाने

सालों से जनजातीय विकास का दम भरा गया लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव नजर नहीं आया। जनजातीय विकास में सबसे बड़ी बाधा उनके कल्याण के लिए खर्च करने वाले बजट ने भी उत्पन्न की। 2003 से पहले जनजातीय समुदाय की बड़ी आबादी वाले मध्यप्रदेश जैसा राज्य अपना बजट इस समुदाय के विकास के लिए आवश्यकता की तुलना में बहुत कम रखता था। 2003 – 04 में विभाग का बजट 746.6 करोड़ था। जो 2023-24 में 1573 प्रतिशत बढ़ाकर शिवराज ने 11748.02 करोड़ रुपए कर दिया।

जनजातीय समुदाय मध्यप्रदेश में निर्णायक

मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय की संख्या तकरीबन 1 करोड़ 53 लाख है, जो कुल आबादी का 21 फीसद से अधिक है। प्रदेश के 20 जिलों के 89 विकासखंड जनजातीय समुदाय बहुल हैं। राज्य विधानसभा की 47 सीटें और लोकसभा की 6 सीटें अनुसूचित
जनजातीय समुदाय के लिए आरक्षित हैं। 47 विधानसभा क्षेत्रों के अलावा करीब 35 सीटें ऐसी हैं, जिनमें जनजातीय मतदाताओं की भूमिका निर्णायक है। ऐसे में भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही जनजातीय समुदाय को साधने की बड़ी चुनौती है। प्रदेश में जिस भी पार्टी ने इस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत की वह सत्ता पाने में कामयाब रहा है।

जनजातीय समुदाय गेमचेंजर

मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय सियासत में अहम स्थान रखता है जो हार-जीत में अहम भूमिका निभाते हैं। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार ने अपनी नीतियों एवं विकास कार्यों से जनजातीय समुदाय का भरोसा जीता है। जनजातियों के विकास के लिए शिवराज ने दिल खोलकर योजनाओं की झड़ी लगा दी है। जनजाति समुदाय के लिए गंभीर नजर आने वाले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जनजातीय कार्य विभाग के बजट में वृद्धि की है।

वर्ष 2003-04 में जो जनजातीय बजट मात्र 746.60 करोड़ था, आज जो वर्ष 2022-23 में 10 हजार 353 करोड़ रुपये का हो गया है। मुख्यमंत्री चौहान ने प्रदेश के वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के हजारों लोगों को वनाधिकार पट्टा देकर उनके जीवन में सवेरा लाने का काम किया है। जनजातीय समाज के कल्याण के लिये सरकार ने जनजातीय समुदाय की आबादी के अनुपात में बजट में राशि के प्रावधान किया है। जनजातीय क्षेत्रों में प्राथमिक पाठशालों में 81 प्रतिशत , माध्यमिक पाठशालाओं में 55 प्रतिशत , हाईस्कूल की संख्या में 12 प्रतिशत, हायर सेकेंडरी स्कूल की संख्या में 81 प्रतिशत और कन्या शिक्षा परिसरों की संख्या में 2633 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

पीएम मोदी ने जनजातीय गौरव दिवस से की नई शुरुआत

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मध्यप्रदेश के जनजातीय इलाकों में लगातार सक्रियता बनी हुई है। उन्होनें डेढ़ वर्ष पहले आदिवासी समुदाय के नायकों को समुचित सम्मान दने के लिए मध्यप्रदेश की धरती को चुना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर मनाने एवं भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम गोंड रानी कमलापति के नाम पर करने की घोषणा जनजातीय समाज को अपने से जोड़ने की सबसे बड़ी पहल थी जिसकी गूंज राष्ट्रीय स्तर तक सुनाई दी।

सही मायनों में जनजातीय गौरव को जनता से जोड़ने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जाता है जिनके नेतृत्व में जनजातीय समाज देश में पहली बार एकजुट हुआ। इसके बाद जनजातीय नायकों की गाथाएं सभी की जुबान पर आई। आज़ादी एक अमृत महोत्सव के अवसर झाबुआ, भोपाल , खंडवा , धार , रतलाम , झाबुआ, अलीराजपुर, खरगोन में विशाल जनजातीय सम्मेलन आयोजित किये गए।

शिवराज सरकार की प्राथमिकताओं में जनजातीय समुदाय मध्यप्रदेश सरकार द्वारा छिंदवाड़ा में बादल भोई जनजातीय संग्रहालय परिसर का निर्माण, जबलपुर में 5 करोड़ की लागत से राजा शंकर शाह-रघुनाथ शाह स्मारक का निर्माण जनजातियों के हितों के संरक्षण की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है। छिंदवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम राजा शंकरशाह विश्वविद्यालय करने की घोषणा को भी जनजातियों से जोड़कर देखा जा रहा है। जनजातीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए छिंदवाड़ा में भारिया जनजाति, डिंडोरी में बैगा एवं श्योपुर में सहरिया जनजातीय समुदाय के लिए सांस्कृतिक संग्रहालय की स्थापना के प्रयास तेजी से किये जा रहे हैं। आदिवासियों के लिए 50 सामुदायिक भवनों का निर्माण कार्य भी प्रगति पर है।

शिवराज सिंह सरकार ने यूपीएसी परीक्षाओं के लिए नि:शुल्क कोचिंग कक्षाओं की शुरूआत के साथ ही उनको पढ़ाई में स्कॉलरशिप देने की योजना भी शुरू की है जिसके सुखद परिणाम सामने आए हैं। जनजाति समाज के युवाओं के लिए प्रदेश के छिंदवाड़ा, शहडोल, मंडला, शिवपुरी एवं श्योपुर में कम्प्यूटर कौशल केन्द्रों की स्थापना हुई है जिससे वह अपना कौशल निखारकर स्वरोजगार के माध्यम से अपनी आजीविका प्राप्त कर रहे हैं।

जनजाति समुदाय को उनका अधिकार दिलाने के लिए प्रदेश की शिवराज सरकार प्रतिबद्ध है। सामुदायिक वन प्रबंधन के अधिकार और पेसा कानून के प्रभावी क्रियान्वयन से जनजातीय समुदाय का साहू मायनों में सशक्तिकरण हुआ है। पेसा कानून के तहत जो नियम बनाए हैं, उसमें जल, जंगल और जमीन का अधिकार जनजातीय समुदाय को दिया गया है। मध्य प्रदेश सरकार आदिवासी समुदाय के बीच इस क़ानून को लेकर लगातार जागरुकता अभियान चला रही है और आदिवासी इलाकों में आयोजित अपनी हर सभा में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस क़ानून को लागू करना अपनी सरकार की बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिनाने से पीछे नहीं हैं।

कांग्रेस ने अपने शासनकाल में कभी जनजातीय समाज को को कोई अधिकार नहीं दिया। राज्य में कमलनाथ सरकार 15 महीने के लिए आई , लेकिन उन्होंने भी जनजातियों को उपेक्षित रखा। भाजपा सरकार ने जनजातीय सामाज की जरूरतों , हितों को ध्यान में रखते हुए पेसा क़ानून लागू किया।

जनजातीय युवाओं को स्व-रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करवाने के लिये प्रदेश में बीते वर्ष से वर्ष से 3 नई योजनाएँ बिरसा मुण्डा स्व-रोज़गार योजना, टंट्या मामा आर्थिक कल्याण योजना और मुख्यमंत्री अनुसूचित जनजाति विशेष परियोजना वित्त पोषण योजना लागू की गई है। इसी तरह जनजातीय बहुल क्षेत्रों में औषधीय और सुंगधित पौधों की खेती को प्रोत्साहन देने के लिए देवारण्य योजना लागू की गईहै।

राज्य के आदिवासी बहुल 89 विकासखंडों के करीब 24 लाख परिवारों को घर-घर सरकारी राशन पहुंचाने के लिए ‘राशन आपके द्वार’ योजना शुरू की गई। जनजातीय समुदाय को रोजगार के अवसर प्रदान करने, पुलिस में दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने, आबकारी क़ानून में संशोधन करके उन्हें महुआ से शराब बनाने और संग्रह करने का अधिकार देने, आदिवासी कलाकारों के लिए 5 लाख रुपये का पुरस्कार घोषित करने जैसी अनेक छोटी-बड़ी योजनाएं और आयोजनों से मध्यप्रदेश में जनजातीय समुदाय के जीवन में उजाला हुआ है।

शहडोल से जनजातीय समुदाय को साधने में कामयाब हुए पीएम प्रधानमंत्री के दौरे के लिए मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित शहडोल का चयन पिछले दिनों किया गया, ताकि दोनों राज्यों के जनजातीय मतदाताओं को सरकार अपनी उपलब्धियां बता सके। बीते तीन महीनों के अंदर प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार मध्यप्रदेश आये। पीएम मोदी में ने एक तरफ अपने शहडोल दौरे में जटिल और कष्टपूर्ण बीमारी सिकल सेल उन्मूलन मिशन का शुभारम्भ किया जिसका जनजातीय समुदाय सबसे अधिक शिकार होते हैं वहीँ जिस मंच से समुदाय को सम्बोधित किया, उस पर जनजातीय समुदाय के नायकों वीरांगना रानी दुर्गावती, शंकर शाह, रघुनाथ शाह, टंट्या भील और बिरसा मुंडा की बड़ी प्रतिमाओं को विशेष स्थान दिया गया।

श्योपुर के जिस कूनो-पालपुर अभयारण्य में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा पिछले वर्ष अपने जन्मदिवस पर ‘चीता’ छोड़ने का जो आयोजन हुआ था, वह इलाका भी आदिवासी बहुल रहा जहाँ पर प्रधानमंत्री मोदी ने स्व-सहायता समूह की महिलाओं से गर्मजोशी के साथ संवाद किया। कहा जा सकता है जनजातीय समुदाय के जीवन में बदलाव लाने की मंशा प्रधानमंत्री मोदी रखते हैं जिसके चलते वह समय- समय पर जनजातीय इलाकों के दौर कर उनके दिलों को जीतने की कोशिशें करते देखे जा सकते हैं।

2018 में मिली हार ने सियासी मोर्चे पर भाजपा को असहज किया हुआ है। इस लिहाज से भाजपा इस बार जनजातीय इलाकों की बुनियादी समस्याओं को अपने विकास कार्यों और जनजातीय समुदाय को अधिकार देकर पूरा कर रही है। प्रदेश में जनजातीय वोट निर्णायक हैं। भाजपा जनजातीय इलाकों में संवाद और विकास कार्यक्रमों कर जनजातीय समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत कर लेना चाहती है।

प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान को भी लगता है 2023 के विधानसभा चुनाव में यदि भाजपा को अपनी फिर से वापसी करनी है तो जनजातीय समाज का दिल जीतना होगा। इसको ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री चौहान आदिवासियों को जहाँ अपनी तमाम योजनाओं के माध्यम से रिझाने में लगे हुए हैं वहीँ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इन इलाकों में मोर्चा संभाले हुए हैं और प्रदेश नेतृत्व को लगातार निर्देशित कर रहे हैं।