मधुरेन्द्र सिन्हा
रांची की रहने वाली शोभा (बदला हुआ नाम) को सीने में कुछ तकलीफ हो रही थी और वह अस्पताल जाने से डर रही थीं तो पास रहने वाली लेडी डॉक्टर ने उन्हें कुछ दवाइयां दीं, जिनके सेवन से उन्हें फायदा हुआ। लेकिन फिर वही हालत हो गई। ऐसे में वहां के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में जा पहुंची और सिफारिश के बाद एक लेडी डॉक्टर ने बताया कि उन्हें ब्रेस्ट कैंसर की आशंका है। लेकिन इसकी जांच में एक-दो दिन लग जाएगा और आप नंबर लगा दें। दो दिनों के बाद शोभा को शॉक लगा कि उन्हें वाकई कैंसर है और उनके पति अस्पताल में इलाज के लिए दौड़-धूप करने लगे।
एम्स में सुविधा बेहतर, लेकिन वहां भीड़ बहुत ज्यादा है
जल्दी बात बनती न देखकर उन्होंने बिहार की राजधानी पटना फोन लगाया और वहां से भी निराशा हाथ लगी। वह शोभा को लेकर दिल्ली स्थिति भारत के सर्वोत्तम अस्पताल एम्स जा पहुंचे। यहां इलाज तो संभव था, लेकिन सुगम नहीं था क्योंकि कतार बहुत लंबी थी। कैंसर के मरीज होने के कारण शोभा कोई समय बर्बाद नहीं करना चाहती थीं सो उन्होंने प्राइवेट अस्पतालों का पता लगाना शुरू किया तो रेट जानकर उनके होश उड़ गये। फिऱ भी किसी की सलाह पर उन्होंने राजीव गांधी कैंसर अस्पताल में इलाज शुरू करवाया। यह भी एक प्राइवेट अस्पताल है लेकिन उसके रेट उतने ऊंचे नहीं है। अब कई महीनों से उनका इलाज चल रहा है और वे रांची से दिल्ली अपने पति के साथ काफी खर्च करके आती-जाती रहती हैं।
लखनऊ की रेशमा को, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं कैंसर के इलाज के लिए दिल्ली का कोई अस्पताल नहीं मिला जहां फौरन इलाज शुरू हो जाए। जो मिले वे बहुत ही महंगे थे। लिहाजा उन्होंने गुड़गांव के एक अस्पताल को चुना जिसने उन्हें डिस्काउंट दिया। इलाज काफी खर्चीला साबित हुआ। बाद में जटिलताओं के कारण उनकी मृत्यु हो गई।
दिल्ली की अनन्या (बदला हुआ नाम) जब महज 19 साल की थी तो उनकी तबीयत खराब रहने लगी। मां प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका थी जिनकी आय से मुश्किल से घर चलता था। सरकारी अस्पतालों में जाकर लंबी भीड़ में लाइन लगना दुष्कर था। फिर प्राइवेट में जांच कराने से मालूम हुआ कि उनकी दोनों किडनियां बेकार हो चुकी हैं और ऐसे में डायलिसिस ही सहारा है। लेकिन डायलिसिस सरकारी अस्पताल में कराने में वही लंबी प्रतीक्षा का मामला था। काफी भागदौड़ के बाद एक चैरिटी अस्पताल में बात बनी। घर से करीब तीस किलोमीटर दूर आना-जाना महंगा सौदा था। किसी तरह से बात बनी और उसका जीवन सुरक्षित हुआ।
कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की जांच और इलाज की सुविधा सुलभ नहीं होने के सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे। ऐसे में गोवा देश को एक नई राह दिखा रहा हैै। महज 16 लाख की आबादी वाले गोवा के कुछ गांवों में भी कैंसर जांच की सुविधा उपलब्ध है। इसमें एनजीओ की ओर से मिल रही मदद का भी अहम रोल है।
गोवा के कई प्राइमरी हेल्थ सेंटर में कैंसर की बीमारी की जांच की सुविधा है। इसमें एनजीओ की भी मदद रही है। हाल ही में युवराज सिंंह फाउंडेशन (यूवीकैन) ने भी इसमें एक छोटी सी मदद की है। फाउंडेशन ने आईबीसी डिवाइस कही जाने वाली एक मशीन अस्पताल को दी है। यह एक छोटी सी मशीन है और इसमें कई सेंसर लगे हुए हैं। इसे आईब्रेस्ट एग्जाम यानी आईबीसी डिवाइस कहते हैं और यह प्रेशर सेंसरों पर काम करता है।
इस मशीन को इस्तेमाल करना मुश्किल नहीं है और यह रेडिएशन सेफ है। इसलिए प्राइमरी हेल्थ सेंटर में भी इसका उपयोग हो सकता है। इससे जांच में मरीज या अन्य को कोई दर्द नहीं होता है तथा रिजल्ट भी तुरंत मिल जाता है। यह बैटरी से चलता है और इसे मोबाइल इंटरनेट से जोड़ दिया जाता है तो डेटा भी एक जगह से दूसरी जगह भेजा जा सकता है।
इसकी टेक्नोलॉजी ऐसी है कि यह मनुष्य के शरीर के टिश्यू के लचीलेपन का पता लगा लेता है। इसके पीछे कारण यह है कि ब्रेस्ट लंप या ट्यूमर या फिर लेसिऑन सामान्य स्तन से ज्यादा सख्त होते हैं। इसे ही जांच कर ब्रेस्ट कैंसर के लंप का पता चल जाता है। बहुत सी महिलाएं रेडिएशन टेस्ट से बचना चाहती हैं। इसके अलावा ब्रेस्ट कैंसर की जांच करने वाला मैमोग्राफी टेस्ट महंगा भी है।
इस मशीन की कीमत लगभग आठ लाख रुपए है। इसलिए इसका इस्तेमाल बढ़ाए जाने के लिए केवल इच्छाशक्ति की जरूरत है। कैंसर भारत में तेजी से फैलने वाली बीमारियों में से एक है। 2022 में देश में कैंसर के कुल 14,61,427 मामले सामने आए। हर नौ में से एक आदमी को कैंसर का खतरा है। ऐसे में जांच और इलाज की सुविधा आसानी से मुहैया कराना समय की मांग बनती जा रही है।
