कैमरा, स्टिंग और सूचना क्रांति का इस्तेमाल कर भारतीय राजनीति के फलक पर उभरी आम आदमी पार्टी अपने ही तौर-तरीकों की शिकार है। अब पलटवार में ईमानदारी के ब्रांड अंबेसडर बने नेता टिकट के लिए और बड़े नेताओं से मुलाकात के लिए पैसे मांगते व महिलाओं के साथ आपत्तिजनक अवस्था में कैद हैं। मीडिया के कैमरे के सामने बच्चे के सिर की कसम खाने और रोज बीवी के पैर छूने की बातें करने वालों के आदर्श का गुब्बारा फूट गया है। दिल्ली जैसे ‘अर्द्ध राज्य’ के मुकाबले पंजाब में ‘पूर्ण राज्य’ की सत्ता पाने की जुगत भिड़ा रही आम आदमी पार्टी के ताजा हालात का विश्लेषण करता इस बार का बेबाक बोल।
दिल्ली में अपनी पहली सरकार बनते ही अति उत्साहित केजरीवाल ने लोगों से ‘कैमरा क्रांति’ का आह्वान कर सरकारी अधिकारियों के भ्रष्टाचार रिकॉर्ड करने को कहा। सरकारी अधिकारियों पर कार्रवाई का आंकड़ा तो नहीं मालूम, लेकिन दूसरी बार बनी आप सरकार के 18 महीने में छह में से तीन मंत्री बर्खास्त हो चुके हैं। कैमरे में सरकारी अधिकारी नहीं सरकार के महिला कल्याण मंत्री ‘आपत्तिजनक’ हालत में हैं। इससे पहले पंजाब में पार्टी के राज्य संयोजक सुच्चा सिंह छोटेपुर टिकट दिलाने के लिए पैसे मांगते हुए कैमरे में कैद हुए। आप के 15 विधायक नामजद और 12 गिरफ्तार हो चुके हैं। एक विधायक को गैरइरादतन हत्या मामले में 18 महीने की कैद की सजा भी सुनाई जा चुकी है।
अपनी टोपी को सबसे सफेद बताने वाली, भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के मुद्दे पर ही भारतीय राजनीतिक फलक पर उभरी, दिल्ली में सत्ता हासिल करने के बाद अब पंजाब फतह का ख्वाब देख रही आम आदमी पार्टी उसी तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों से दागदार है। पंजाब में छोटेपुर को लेकर उठे विवाद के बाद राज्य में पार्टी की दोनों परस्पर विरोधी पार्टियों – कांग्रेस और अकाली दल की बांछे खिल गई हैं। अकाली दल और भाजपा की साझा खुशी का गठबंधन तो है ही।
महज दो-तीन हफ्ते पहले तक छोटेपुर को पंजाब की हद के बाहर बहुत कम लोग जानते थे। लेकिन ‘आप’ की बदौलत अब लगभग समूचा देश उससे वाकिफ है। आखिर ईमानदारी के दूत की तरह खुद को पेश करने वाली आम आदमी पार्टी के राज्य संयोजक का पार्टी टिकट के बदले में नकदी लेना महज आरोपों से आगे सबूत के तौर पर ‘स्टिंग’ में सामने आ जाना बड़ी बात है। ‘आप’ जिस दावे के साथ भारतीय राजनीतिक फलक पर टिके होने का दावा करती है और इसी आधार पर उसे कहीं-कहीं समर्थन भी मिला है, उस लिहाज से यह पार्टी की छवि पर गहरा आघात है। हर आरोप के बाद चेहरा बचाने को लेकर हुई कार्रवाई के बाद ‘आप’ के नेता बोलते हैं कि भ्रष्टाचार को लेकर पार्टी में शून्य सहनशीलता है। लेकिन कई ऐसे मौके आए हैं, जिसके हवाले से यह पूछा जाने लगा है कि क्या इस शून्य के आगे-पीछे भी कोई और संख्या है?
बहरहाल, पंजाब में आम आदमी पार्टी के चुनाव अभियान को चुनाव से पांच महीने पहले जो धक्का लगा है, उस पर बात करने से पहले यह जानना जरूरी है कि ‘आप’ की राज्य के मौजूदा हालात में क्या जगह अनुमानित है। ‘आप’ का दावा है कि वह राज्य की 117 में से 100 सीटें जीतने की स्थिति में है। इसके लिए धन्यवाद दिल्ली! आखिर राजधानी की 70 में से 67 सीटें जीतने वाली पार्टी ऐसे दावे की हकदार है। ज्यादातर जमीनी रपटें इस बात की ओर इशारा कर रही हैं कि पंजाब में अकाली दल-भाजपा की सरकार नशे और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण आम जनता का भरोसा खो चुकी है। और पंजाब में कांग्रेस का करियर बनाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर के बायोडाटा में कहीं पंजाब से नकारात्मक टिप्पणी न हो जाए, इसलिए कांग्रेस ने प्रताप सिंह बाजवा को हटा कर अमृतसर से सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को चुनावी मोर्चे पर लगाया है। लेकिन ‘वेंटिलेटर’ पर लगी पार्टी के लिए फिर भी पूरी तंदुरुस्ती का लक्ष्य कहीं दूर है। राजनीतिक जानकार दावा कर रहे हैं कि ‘आप’ कम से कम 80 सीटों पर ठोस टक्कर देने की स्थिति में है।
हालांकि, ये सब अभी कयास हैं। राजनीति अब ऐसा खेल बन चुकी है जिसमें आखिरी नतीजों तक पहले के आकलनों का सही साबित होना बाकी रहता है। लेकिन यह सच है कि माघी मेले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को देखने-सुनने जनता जैसे उमड़ी थी, उससे पार्टी की बढ़ती ताकत का अंदाजा हो रहा था। लेकिन ऐसे में एक के बाद एक विवाद क्या इसकी उम्मीदों का पतन भी कर सकते हैं? इस चुनाव में उभरे संकेतों के दौर में यही मुद्दा अहम हो गया है। सच यह है कि जिन आदर्शों पर ‘आप’ ने खुद को खड़ा बताया है, वे आदर्श अब पार्टी के भीतर ही छीजते जा रहे हैं। यह लोगों को अब भी यही भुलावा दे रही है कि सरकार बनी तो खुद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री होंगे। दिल्ली मनीष सिसोदिया के कंधों पर रहेगी।
पंजाब में पार्टी को पहला झटका ‘युवा घोषणापत्र’ पर उठे विवाद से लगा। ‘आप’ नेता आशीष खेतान ने इसकी तुलना गुरुग्रंथ साहब से कर दी जिसके कारण उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने का मामला दर्ज हुआ। खेतान ने बाद में इसके लिए माफी भी मांगी। यह विवाद अभी थमा भी नहीं था कि पार्टी के सांसद भगवंत मान के संसद का वीडियो बनाने को लेकर बवाल मच गया। देश की सर्वोच्च लोकतांत्रिक संस्था की सुरक्षा को दांव पर लगाने को लेकर मान को सहयोगी सांसदों की आलोचना झेलनी पड़ी। एक महिला सांसद ने तो यह आरोप भी जड़ा कि वे जब भी संसद में आते हैं तो उनसे शराब की बू आती है।
ऐसे में पार्टी को नवजोत सिंह सिद्धू के रूप में एक जीवनरेखा दिखी थी। सिद्धू ने जिस आक्रामक अंदाज में देश में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी से किनारा किया और राज्यसभा की अपनी सदस्यता छोड़ी, उससे इस चर्चा को बल मिला कि वे आम आदमी पार्टी में जा रहे हैं। लेकिन सिद्धू को पंजाब में जो मुराद देने से भाजपा का इनकार था, उसे देने में ‘आप’ को भी गुरेज थी। सिद्धू शायद पंजाब का मुख्यमंत्री बनने का ख्वाब पाले हुए हैं और माना यह जाता है कि खुद केजरीवाल का भी यही मंसूबा है। दिल्ली जैसे ‘अर्द्ध राज्य’ के मुकाबले पंजाब जैसा ‘पूर्ण राज्य’ ही असली सत्ता सुख दे सकता है। लेकिन अब सिद्धू समर्थकों की ओर से ‘आवाज ए पंजाब’ नामक नया मोर्चा बनाने के संकेत से केजरीवाल के लिए नई चुनौती खड़ी हो सकती है।
छोटेपुर का जाना महंगा पड़ सकता है। छोटेपुर पुराने मंजे हुए अकाली हैं, जिन्होंने शुरुआती दौर में ही ‘आप’ का दामन थामा था। उनका दावा है कि उन्होंने ही पार्टी में जान फूंकी। लेकिन जो भी विवाद सामने आया और उसके बाद जो भी राजनीतिक फैसले किए गए, उसका सबसे बड़ा नुकसान यही है कि पार्टी के पास जो एक मजबूत सिख चेहरा रहा, उससे उसे महरूम होना पड़ा है। और यह सभी जानते हैं कि पंजाब में गैर-सिख मतों पर दांव खेल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं हासिल की जा सकती है। पिछले कई दशकों से कुर्सी और सत्ता की डोर सिखों के हाथों में ही रही है।
‘आप’ के लिए एक और गंभीर समस्या यह उभरी है कि पंजाब में पार्टी के कार्यकर्ताओं का मानना है कि यहां पार्टी को ‘बाहरी’ नेताओं के भरोसे चलाने की कोशिश हो रही है। ‘बाहरियों’ के नेता खुद केजरीवाल हैं, जबकि आशीष खेतान, दुर्गेश पाठक, संजय सिंह जैसे कई नाम हैं, जिनके हाथ में चुनाव अभियान की कमान है। ऐसे में छोटेपुर की मौजूदगी का जो आकर्षण और उनसे जो हिम्मत थी, वह जाती रहेगी। इससे पहले कम से कम पांच बड़े सिख नेता भी पार्टी का दामन छोड़ चुके चुके हैं। ‘आप’ के दो सांसद भी बगावत का झंडा बुलंद किए हुए हैं, जिनमें से एक खडूर साहब के हरिंदर सिंह खालसा हैं। खालसा का यह इल्जाम है कि ‘आप’ का दिल्ली नेतृत्व तानाशाह प्रवृत्ति का है। खालसा ने पार्टी के पटियाला से सांसद धर्मवीर गांधी के साथ ‘आप’ के बागियों की एक बड़ी प्रेस कांफ्रेंस भी की। गांधी का भी पार्टी से छत्तीस का आंकड़ा है और आजकल निलंबित चल रहे हैं। इनके अलावा, भाई बलदीप सिंह, दलजीत सिंह, सुमेल सिंह सिद्धू और हरदीप किंगरा जैसे नेता भी पार्टी से किनारा कर चुके हैं। कहना न होगा कि कांग्रेस इन सब पर अपनी नजरें गड़ाए हुए है। ‘आप’ के बागियों में से एक धर्मवीर गांधी ने तो हाल ही में एक नया मोर्चा भी खड़ा कर लिया है। छोटेपुर पर सबकी नजर है।
इसके बावजूद ‘आप’ का आत्मविश्वास इससे जाहिर हो रहा है कि राज्य में 117 सीटों में से 32 उम्मीदवार घोषित करने वाली वह पहली पार्टी है। किसी और पार्टी ने अभी ऐसी कोई सूची जारी नहीं की है। ‘आप’ ने छोटेपुर के खिलाफ कार्रवाई करके अपनी भ्रष्टाचार विरोधी छवि पुष्ट करने का प्रयास किया है। उसका कहना है कि यहां किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं। हालांकि ‘आप’ के अपने ही नेता दबे स्वर में दिल्ली के नेताओं के भ्रष्टाचार पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि कार्रवाई और संस्कृति में बहुत बड़ा फासला होता है। ‘आप’ ने भ्रष्टाचार विरोध की एक संस्कृति बनाने और देने का दावा किया था।
जो हो, यह सच है कि छोटेपुर इस समय अपने राजनीतिक करियर के बड़े नाजुक दौर में हैं। पार्टी से टिकट के लिए पैसे लेने के आरोप गंभीर हैं। लेकिन ‘आप’ के बागी नेता आनंद कुमार और प्रशांत भूषण छोटेपुर को कठघरे में रखने पर सवाल उठा चुके हैं। आनंद कुमार ने तो सीधे कहा कि ‘आप’ अपने कार्यकर्ताओं का ‘डायपर’ की तरह इस्तेमाल करती है। हालांकि अभी आरोपों की बरसात जारी है। इसी तरह के आरोपों के कारण आम आदमी पार्टी की कई जिला इकाइयों में बगावत का झंडा उठ रहा है। पार्टी स्वयंसेवक अपने मोर्चे बना रहे हैं और गांधी समेत कई और बड़े नेता उनके लिए अलग मोर्चा खड़ा करने के प्रयासों में जुट गए हैं।
इन सबके कारण पार्टी की चमक चुनाव के पहले से ही धूमिल पड़नी शुरू हो गई है। राज्य के लोगों को इस पार्टी में बदलाव की जो सकारात्मक झलक मिल रही थी, वह फिलहाल धुंधली पड़ रही है। खुद को अलग साबित करने के लिए कहीं न कहीं पर जरूरी होता है कि आप वह सब न कर रहे हों, जो बाकी कर रहे हैं। लेकिन अब बोध ऐसा ही हो रहा है। हालात यह है कि पंजाब के कई क्षेत्रों से अब बगावत की बू आ रही है। छोटेपुर राज्य के जमीन से जुड़े हुए नेता हैं, जिन पर ठोस इल्जाम हो तो साबित भी होना चाहिए और छोटेपुर की जांच की चुनौती के बाद उनके समर्थक भड़के हुए हैं। सुच्चा सिंह सच्चे हैं या नहीं, यह भी तय होना है। फिलहाल दौर आरोप-प्रत्यारोप का है और इसमें साफ निकले बिना लोगों में अपनी स्थिति बचाए रखना पार्टी के लिए इतना भी आसान नहीं होगा।
जिस तरह से पार्टी के अपने ही नेताओं की बातचीत को रेकार्ड करने की खबरें और आरोप सामने आए, इससे जमीनी स्तर के नेता अब खौफ खाने लगे हैं, कार्यकर्ता मायूस हैं। छोटेपुर ने तो दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को अरविंद केजरीवाल का ‘जासूस’ तक करार दे दिया। इन हालात में आदर्शों के गुब्बारे की निकली हवा अब पार्टी को लेकर ‘हवा’ भी बदल रही है। यह तय है कि इस नुकसान की भरपाई के लिए कोई मुनासिब और भरपूर कदम अगर पार्टी ने जल्दी नहीं उठाए तो पंजाब में इसका वही हाल हो सकता है जो पिछले लोकसभा चुनावों में राष्टÑीय स्तर पर हुआ है।
लुभावने वादों और बाहरी लोकप्रिय नेताओं के सहारे चुनाव प्रचार अभियान में बढ़त तो बनाई जा सकती है, लेकिन यह सरकार बनने की गारंटी नहीं है। और पार्टी के अंदर ही उसकी उस तरह की छवि कि उसे पंजाबियों पर ऐतबार नहीं, शायद ही कोई चुनावी लाभ दे पाए। पंजाब में ‘आप’ के ही एक प्रमुख नेता एचएस फुल्का ने साफ कहा था कि ‘आप’ नेतृत्व ने पंजाबियों पर भरोसा ही नहीं किया। केजरीवाल से मिलना तक दूभर है। एक मौका था, जब ऐसे कयास लगाए जाते थे कि फुल्का पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। लेकिन जैसे-जैसे पार्टी बढ़ती गई, उसके साथ लड़ने वाले बड़े चेहरे भी बढ़ते गए। और इसके साथ ही पार्टी की बढ़ती महत्त्वाकांक्षाओं के आगे इसके आदर्श सिकुड़ते गए।
बहरहाल, तीन साल पहले बनी आम आदमी पार्टी की आंदोलनकारी छवि पर अवसरवाद भारी पड़ चुका है। स्वराज और जनलोकपाल का नारा देने वाले केजरीवाल दूसरे अन्य दलों के मुखिया की तरह सत्ता और संगठन पर कब्जा जमाने की कोशिश करते दिखते हैं। आम दलों वाली इस पहचान के साथ ‘आप’ पंजाब में ‘दिल्ली’ की तरह ‘क्रांति’ कर पाएगी या नहीं, यह तो वक्त ही बताएगा।