दिल्ली के सबसे मशहूर शायर मिर्जा गालिब का एक शेर पिछले हफ्ते मुझे बहुत याद आया, जब उनके घर से थोड़ी ही दूर जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर ठंडी, अंधेरी रात में पुरानी दिल्ली की औरतों ने इकट्ठा होकर राष्ट्रगीत गया। गालिब का शेर है : ‘जहां हम हैं वहां दार-ओ-रसन की आजमाइश है, वफादारी में शेख-ओ-बरहमन की आजमाइश है’। यह शेर याद आया मुझे इसलिए कि ऐसा लगा उन ठंड में ठिठुरती औरतों को राष्ट्रगीत गाते हुए, अपनी देशभक्ति सिद्ध करने के लिए, कि जैसे राष्ट्रीयता में सरकार और प्रदर्शनकारियों के बीच जबर्दस्त आजमाइश हो रही है इन दिनों।

एक तरफ हैं प्रधानमंत्री मोदी और उनके सिपाही, जिन्होंने कई बार साबित करने की कोशिश की है, जबसे नागरिकता कानून का विरोध शुरू हुआ है, कि असली राष्ट्रवादी वही हैं और दूसरी तरफ हैं ‘देश के गद्दार’। उधर हैं प्रदर्शनकारी, जिन्होंने तिरंगा उठा कर, संविधान को दूसरे हाथ में रख कर साबित करना चाहा कि राष्ट्रवादी वे भी हैं। प्रदर्शनकारियों में अभी तक ज्यादातर मुसलमान दिखे हैं, तो इसलिए कि संसद ने नागरिकता कानून ऐसा पारित किया है, जो मजहब को नागरिकता से जोड़ता है।

ऊपर से भारतीय जनता पार्टी के कई प्रवक्ताओं ने खुल कर कहा है बहुत बार कि मुसलमान कभी देशभक्त नहीं हो सकते। मोदी सरकार के मंत्रियों से हमने ‘रामजादे, हरामजादे’ जैसे नारे सुने हैं। औरों की बात क्या करनी, जब प्रधानमंत्री कई बार चुनाव प्रचार के जोश में आकर कह चुके हैं कि उनके विरोधी पाकिस्तान के समर्थक हैं। अब जब देश भर में प्रदर्शन होने लगे हैं उनकी सरकर के खिलाफ तो उन्होंने काफी हद तक अपनी भाषा बदल डाली है, लेकिन सोशल मीडिया पर उनके समर्थक हर मुसलमान को जिहादी कहते फिर रहे हैं अब भी।

अचानक नहीं बना है यह तनावपूर्ण माहौल। मोदी के पहले कार्यकाल में मुसलमानों को बर्दाश्त करनी पड़ी है गोरक्षकों की निर्मम हिंसा। मोदी का दूसरा दौर शुरू होते ही तबरेज अंसारी को खंभे से बांध कर इतना पीटा गया कि उसकी मौत हो गई। मारते वक्त जय श्रीराम का नारा बुलवाया गया उससे, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर डाल दिया उसके हत्यारों ने। उनकी अपनी नजरों में उन्होंने अपराध नहीं, नेक काम किया। इसी किस्म की बातें मैंने बहरोड़ के लोगों से सुनीं, जब मैं पहलू खान की हत्या के बारे में तहकीकात करने गई थी। उत्तर प्रदेश के मुसलमानों में और भी ज्यादा खौफ रहा है, इस लिए कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीति में आने का एक ही मकसद था: रामजन्मभूमि आंदोलन में शिरकत। राम मंदिर के निर्माण के लिए उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी तैयार की है, जिसने गोरखपुर के मुसलमानों को डरा-धमका कर काबू में रखा है वर्षों से।

कोई इत्तेफाक नहीं है कि पुलिस की गोलियों से सबसे ज्यादा प्रदर्शनकारी उत्तर प्रदेश में मारे गए हैं। ऊपर से योगी ने उन लोगों की जमीन-जायदाद जब्त करना शुरू कर दिया है, जिनके चेहरे पुलिस वालों के कैमरों में नजर आते हैं। हो सकता है कि ये सिर्फ तमाशबीन थे, लेकिन अब उनको साबित करना होगा बिना किसी अदालत में सुनवाई के कि उन्होंने न हिंसा की न तोड़फोड़। मैंने जब ट्वीट करके कहा कि ऐसा करना गलत है, कानूनी कार्रवाई के बाद ही किसी की निजी संपत्ति जब्त होनी चाहिए, तो इतनी गालियां सुनने को मिलीं कि हैरान रह गई।

जेएनयू में हुई हिंसा के बाद जब दीपिका पादुकोण वहां पहुंचीं छात्रों से हमदर्दी जताने, तो उनके पीछे पड़ गए मोदी के मंत्री और प्रवक्ता। स्मृति ईरानी ने यहां तक एक सम्मेलन में कहा बॉलीवुड की इस अभिनेत्री के बारे में कि वे समर्थन कर रही हैं उनका जो देश के ‘टुकड़े-टुकड़े’ करना चाहते हैं। इस तरह का आरोप क्या किसी वरिष्ठ मंत्री को शोभा देता है? क्या इससे यह नहीं साबित होता है कि प्रधानमंत्री और उनके समर्थक अब खुद काफी घबरा गए हैं नागरिकता कानून का इतना विरोध देख कर? लेकिन अब सवाल यह है कि राष्ट्रवादी कौन हैं और देश के टुकड़े करने वाले कौन! अब राष्ट्रीयता को लेकर एक अजीब स्पर्धा शुरू हो गई है, जिसमें जीत फिलहाल उनकी हो रही है जो सड़कों पर उतर कर आए हैं तिरंगा और संविधान हाथ में लिए।

हैदराबाद में असद्दुदीन ओवैसी, जिनकी गिनती मुसलिम कट्टरपंथियों में है, अब अपनी आम सभाओं में संविधान का ‘प्रीएंबल’ पढ़वाते हैं लाखों लोगों से और संविधान की रक्षा करने की शपथ दिलवाते हैं अपने समर्थकों को। दुनिया के अखबारों में बड़े-बड़े लेख छपे हैं इन प्रदर्शनों और विश्वविद्यालों में पुलिस की ज्यादती के। इससे नुकसान अगर हुआ है तो मोदी की छवि को। जिस राजनेता के बारे में कल तक दुनिया के बड़े नेता कहा करते थे कि यही वह राजनेता है, जो भारत को किसी न किसी तरह इक्कीसवीं सदी में लेकर जाने की क्षमता रखता है, अब मोदी को एक तानाशाह कहने लगे हैं। मोदी अगर अपनी छवि सुधारना चाहते हैं तो उनको चाहिए कि उन लोगों से खुद जाकर मिलें, जो ठंडी रातों में बैठे रहते हैं खुले मैदानों में। इनमें औरतें भी हैं, बच्चे भी हैं। प्रदर्शन करने सिर्फ इस डर से आए हैं ये सब कि उनकी देशभक्ति पर कोई शक न करे।


कब तक चलेंगे ये प्रदर्शन, कहना मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं हम अभी से कि मोदी को निजी तौर पर पहली बार इतने कठिन समय का सामना करना पड़ रहा है। वे अब भी चुप्पी साधे हुए हैं और अपने प्रवक्ताओं से अपनी बात कहलवा रहे हैं। लेकिन अगर उनको विरोध की इस आंधी को थामना है, तो उनको खुद उतर कर आना होगा मैदान में आम लोगों को आश्वस्त करने।