Analysis Of Voters Mood In Himachal Pradesh: आज भी धर्मशाला (कांगड़ा) का वह होटल धौलाधार याद है, जहां पूरे हिमाचल प्रदेश विधानसभा के प्रत्येक राजनीतिज्ञ और प्रशासनिक अधिकारी को आमंत्रित किया था। सभी आए थे और साथ में सबने खूब राजनीतिक, सामाजिक, पारिवारिक चर्चा भी की थी। उस तारीख को वह होटल एक तरह से विधान सभा में तब्दील हो गया था। उस रात्रिभोज में स्वर्गीय वीरभद्र सिंह, जीएस बाली भीं उपस्थित थे। दोनों स्वर्गीय हो गए हैं। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।
प्रो. प्रेम कुमार धूमल की कविताएं अब भी याद है। यह प्रदेश देवभूमि है। इस प्रदेश के निवासियों में ईश्वर के प्रति आस्था कूट-कूट कर भरी है, अतः ईमानदारी और विनम्रता की सभी प्रतिमूर्ति हैं। इसलिए वहां विधान सभा चुनाव हो और उस पर कुछ लिखा न जाए यह कैसे हो सकता है?
तो आइए, जानने का प्रयास करते हैं कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा की स्थिति क्या बनती है। 68 विधान सभा और 4 लोकसभा वाले राज्य हिमाचल प्रदेश में 2008 के परिसीमन के बाद कुल 68 सीटों पर चुनाव होते रहे हैं, जिनमें 17 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं और 3 निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जन-जाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं। 2017 में हुए विधान सभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 44 सीटों पर और कांग्रेस ने 21 सीटें जीती थी।
बहुमत से जीत के कारण भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर बने। कांग्रेस ने विपक्षी दल नेता के रूप में मुकेश अग्निहोत्री को सदन में अपना नेता बनाया। 12 नवंबर का मतदान हिमाचल प्रदेश के लिए चौदहवीं विधानसभा का चुनाव है। परिणाम 8 दिसंबर को आना तय है, जिस दिन यह निर्णय होगा कि प्रदेश की जनता ने पांच वर्ष तक के लिए अपने प्रदेश को किसके हाथ में सौंपने का निर्णय लिया है।
हर पांच साल में सत्ताधारी पार्टी परिवर्तन की रही है परंपरा
हिमाचल प्रदेश की राजनीति में 1985 के बाद से अब तक हुए विधानसभा चुनाव में हर बार सत्ता परिवर्तन हुआ है। हिमाचल में पांच साल कांग्रेस तो पांच साल भारतीय जनता पार्टी शासन करती रही है। मौजूदा समय में बीजेपी सत्ता पर काबिज है, जिसके चलते कांग्रेस का आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है। उसे सत्ता में वापसी की उम्मीद दिख रही है, लेकिन बीजेपी इस इतिहास को बदलने के लिए हर संभव कोशिश में जुटी है।
बड़े नेताओं ने दिखाई गदा-तलवार की ताकत: अमित शाह और मल्लिकार्जुन खड़गे। (PTI)
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का गृह राज्य हिमाचल है, जिसके चलते बीजेपी के लिए काफी अहम माना जा रहा है। जो अब तक देखा गया है उससे तो यही लगता है कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा तो अपने राज्य में प्रभावहीन हैं, लेकिन उसी क्षेत्र से आने वाले अनुराग ठाकुर प्रो. प्रेम कुमार धूमल के पुत्र और युवा भारतीय जनता पार्टी के तेज-तर्रार और प्रभावशाली नेता माने जाते हैं।
ज्ञातव्य है कि प्रो. धूमल प्रदेश में कई बार प्रभावशाली मुख्यमंत्री रहे हैं, वैसे वह आपसी कलह में पिछला चुनाव हार चुके हैं और इस बार उन्होंने स्वयं चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। इसलिए यदि प्रदेश में कुछ उथल पुथल या कुछ अप्रत्याशित होता है, उसका सारा दारोमदार अनुराग ठाकुर का ही माना जाएगा।
लंबे समय तक रहा है कांग्रेस का शासन
सच तो यह है कि प्रदेश में लंबे समय तक कांग्रेस का शासन और दबदबा रहा है, लेकिन आपातकाल के बाद से सियासी दशा बदल गई। प्रदेश में 1952 से लेकर 1977 तक कांग्रेस का शासन रहा, जिसके कारण यशवंत सिंह परमार और रामलाल ठाकुर कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री बनते रहे। 1977 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा और जनता पार्टी की अगुवाई में सरकार बनी।
जनता पार्टी की सरकार में शांता कुमार मुख्यमंत्री बने और इस तरह पहली बार गैर-कांग्रेस सरकार बनी। यह परिवर्तन आपातकाल के बाद से शुरू हो गया। आपातकाल के बाद 1980 में कांग्रेस सत्ता में वापसी की और 1985 में दोबारा सत्ता में काबिज हुई, लेकिन इसके बाद से ही सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड शुरू हुआ। 1990 के विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी 46 सीटें जीतकर सत्ता में आई, लेकिन अयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद 1992 में सरकार बर्खास्त कर दी गई।
नेताओं की लोकप्रियता: प्रियंका गांधी और जयराम ठाकुर संग समर्थकों की भीड़। (PTI)
ऐसे में 1993 में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस वापसी करने में कामयाब रही और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। पांच साल के बाद 1998 में विधानसभा चुनाव हुए। बीजेपी ने कांग्रेस को मात देकर सत्ता में वापसी की और प्रो. प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने।
वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल के इर्द-गिर्द ही घूमती रही सत्ता
हिमाचल में कांग्रेस और बीजेपी के बीच ही नहीं, बल्कि वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल के इर्द-गिर्द भी सत्ता घूमती रही है। 2003 में विधानसभा चुनाव हुए, कांग्रेस ने बीजेपी को मात देकर फिर से सत्ता में वापसी की और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में कांग्रेस 43 सीटें जीती तो बीजेपी 16 सीटों पर सिमट गई थी। इसके बाद साल 2007 में विधानसभा चुनाव हुए तो बीजेपी को 41 और कांग्रेस को 23 सीटें मिलीं।
इस तरह बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब रही और फिर प्रो. प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने। पांच साल के बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस वापसी करने में कामयाब रही। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36 और बीजेपी को 26 सीटें मिली थी। कांग्रेस से वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने और पांच साल के बाद चुनाव हुए तो अपनी कुर्सी नहीं बचाकर रख पाए। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी मात खानी पड़ी और बीजेपी सत्ता में वापसी करने में कामयाब रही।
बीजेपी सत्ता में आई, लेकिन प्रो. धूमल चुनाव हार गए। बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई तो जयराम ठाकुर के सिर सत्ता का ताज सजा। जयराम ठाकुर मुख्यमंत्री की लंबी सूची में नया नाम जुड़कर आया है, लेकिन अब पांच साल के बाद उनके इम्तिहान की घड़ी है। हर पांच साल में सत्ता बदलने की परंपरा ने बीजेपी के लिए चिंता जरूर बढ़ा दी है, लेकिन बीजेपी ट्रेंड को तोड़ने के लिए हर संभव कोशिश में है। हिमाचल विधानसभा में इस बार 55 लाख मतदाता नई सरकार का फैसला करेंगे?
देखना यह है कि इस बार किसकी सरकार बनती है, लेकिन जो सूत्रों के हवाले से जानकारी है उससे तो यही लगता है कि फिर से पुराना ट्रेंड वापस आ रहा है और इस बार फिर से कांग्रेस का पलड़ा भारी है। वैसे भारतीय जनता पार्टी ने अपने अश्वशाला के सारे घोड़े खोल दिए हैं, जिसके तहत केंद्रीय सत्ता अपने पूरे दम-खम से हिमाचल प्रदेश में ही घूम घूम कर रैली और प्रचार करते रहे।
अन्य राजनेताओं की बात कौन करे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री ने प्रदेश के इस चुनाव को अपनी नाक की लड़ाई मान कर ताबड़तोड़ कई चुनावी सभा और रैलियां कर चुके हैं। जो भी हो जनता का निर्णय तो 8 दिसंबर को ही सामने आएगा; क्योंकि इस लेख के प्रकाशित होने तक तो सभी के भाग्य कंप्यूटर में लॉक हो चुके होंगे। अब बस तब तक सब अपनी अपनी राजनीतिक खिचड़ी पकाते रहिए और उसकी खुशबू से अपने मन को आनंदित करते रहिए।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)