इस तरह के सम्मेलन अपने सामूहिक उद्देश्यों को धरातल पर क्रियान्वित करने में सदा विफल रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि समूह सात के सदस्य देश एकत्र तो सामूहिक संकल्पों को पूरा करने के लिए होते हैं, पर सम्मेलन में सदस्य देशों के प्रमुखों की व्यक्तिगत रुचि अपने-अपने हित साधने में ही होती है।

समूह सात देशों का उनचासवां सम्मेलन जापान के हिरोशिमा शहर में संपन्न हो गया। इसके साथ ही अमेरिका, भारत, आस्ट्रेलिया और जापान के क्वाड समूह ने भी अपना सम्मेलन हिरोशिमा में ही संपन्न कर लिया। क्वाड समूह की बैठक पहले आस्ट्रलिया में प्रस्तावित थी, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने घरेलू ऋण संकट के कारण क्वाड बैठक में सम्मिलित होने में असमर्थता प्रकट की थी।

जी-7 ने सम्मेलन में जिन संकल्पों को पूरा करने के लिए सामूहिक प्रस्ताव पारित किया, उनमें रूस द्वारा यूक्रेन पर थोपे गए अवैध युद्ध का विरोध करना, हर संभव तरीक से यूक्रेन का समर्थन करना, सार्वभौम सुरक्षा हेतु नाभिकीय शस्त्रों से मुक्त एक विश्व का अंतिम लक्ष्य प्राप्त करने के लिये निरस्त्रीकरण और परमाणु अप्रसार का प्रयास करना प्रमुख थे।

इसके साथ ही आर्थिक उदारता और सुरक्षा के लिए समूह के विचारगत प्रस्ताव का समन्वय करना, समूह के सदस्य और बाहरी देशों के सहयोग द्वारा भविष्य की स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्थाओं के मध्य सहयोग को बढ़ावा देना, अनुकूल वैश्विक खाद्य सुरक्षा हेतु भागीदार देशों के साथ मिलकर कार्य योजना शुरू करना भी है। वैश्विक अवसंरचनात्मक निवेश के लिए साझीदारी से गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना के वित्तपोषण के लिए छह सौ अरब डालर एकत्र करने का लक्ष्य प्राप्त करना भी प्रमुख हैं।

इस सामूहिक प्रस्ताव में एक सशक्त और अनुकूल वैश्विक आर्थिक सुधार को बढ़ावा देने, वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और जीविकाओं तथा सतत विकास का संवर्द्धन करने के लिए साथ कार्य करने, गरीबी कम करने तथा जलवायु और प्रकृतिगत संकट का समाधान निकालने का लक्ष्य है। सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में तेजी लाने, बहुपक्षीय विकास बैंकों (एमडीबी) को विकसित करने, अफ्रीकी देशों के साथ अपनी साझीदारी बढ़ाने तथा बहुपक्षीय मंचों पर अधिक से अधिक अफ्रीकी प्रतिनिधित्व का समर्थन करने, अपने ऊर्जा क्षेत्र के अकार्बनीकरण में तेजी लाने और नवीकरणीय ऊर्जा अपनाने पर बल है। प्लास्टिक जनित प्रदूषण को समाप्त करने तथा महासागरों की रक्षा करते हुए पृथ्वी को सुरक्षित बनाने, वन, प्रकृति और जलवायु हेतु ‘न्यू कंट्री पैकेजेज’ के माध्यम से सहयोग को अधिक करने पर जोर दिया गया है।

इतना ही नहीं, जी-7 ने दुनिया की हर प्रमुख समस्या को अपनी भावी कार्ययोजना का हिस्सा बनाया गया है। इसमें, विश्वभर में टीका निर्माण क्षमता के माध्यम से वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश करने, एक महामारी कोष बनाने, महामारी रोकथाम के लिए भावी अंतरराष्ट्रीय अनुबंध करने, सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा (यूएचसी) का लक्ष्य प्राप्त करने की तैयारी करने, अंतरराष्ट्रीय प्रवासन पर सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया गया है।

इसके अलावा मानव तस्करी के विरुद्ध प्रयासों को सुदृढ़ करने, समावेशी कृत्रिम मेधा (एआइ) शासन स्थापित करने, परिचित लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुसार एआइ की विश्वसनीयता के संबंध में अपने सामान्य दृष्टिकोण और लक्ष्य की प्राप्ति करने, इस संबंध में पारस्परिक परिचालन के संदर्भ में उन्नत अंतरराष्ट्रीय संवाद स्थापित करने पर जोर है।

दुनिया में कहीं भी बल या शक्तिपूर्वक क्षेत्रों की स्थिति बदलने और उस पर एकपक्षीय अधिकार के प्रयास करने तथा क्षेत्र पर अधिग्रहण करने का निषध करने, सार्वभौमिक मानवाधिकारों, लैंगिक समानता और मानव गरिमा को बढ़ावा देने, शांति, स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका और अंतरराष्ट्रीय सहयोग सहित बहुपक्षवाद के महत्त्व को दोहराने, नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली को मजबूत करने और डिजिटल प्रौद्योगिकियों के विकास के साथ तालमेल रखने जैसे संकल्प भी लिए गए हैं। जी-7 के अनुरूप, अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ एक ऐसी दुनिया बनाने का प्रयास होगा, जो मानव-केंद्रित, समावेशी और अनुकूल हो, जिसमें कोई भी पीछे न छूटे।

भारत की ओर से प्रधानमंत्री ने सम्मेलन में अपनी दस सूत्रीय कार्य योजना रखी, जिसके तहत एक समावेशी खाद्य प्रणाली तैयार कर दुनिया के सर्वाधिक अधिकारहीन लोगों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। इस दस सूत्रीय कार्ययोजना में खाद्यान्न की बर्बादी कम करने, वैश्विक उर्वरक आपूर्ति शृंखला का अराजनीतिकरण, मोटे अनाज, समग्र स्वास्थ्य सुविधा का संवर्द्धन करने, डिजिटल स्वास्थ्य सुविधा को सुदृढ़ करने तथा विकासशील देशों की जरूरतों के अनुरूप अंतरराष्ट्रीय विकास माडल तैयार करने जैसे बिंदु हैं।

पहले के शिखर सम्मेलनों की तरह जी-7 का यह सम्मेलन भी औपचारिकताओं में दब गया। वास्तव में, इस तरह के सम्मेलन अपने सामूहिक उद्देश्यों को धरातल पर क्रियान्वित करने में सदा विफल रहे हैं। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि समूह सात के सदस्य देश एकत्र तो सामूहिक संकल्पों को पूरा करने के लिए होते हैं, पर सम्मेलन में सदस्य देशों के प्रमुखों की व्यक्तिगत रुचि अपने-अपने हित साधने में ही होती है।

फिर सार्वदेशिक, सार्वभौमिक समस्याओं के लिए जो भी देश दोषी हैं, उनसे समूह के सदस्य देशों के द्विपक्षीय व्यावसायिक, आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक संबंध भी होते हैं। इसलिए कभी भी समूह के देश सामूहिक रूप में समस्याओं के लिए दोषी देशों के विरुद्ध कठोर अंतरराष्ट्रीय कार्रवाई नहीं कर पाते हैं। यों ही समय व्यतीत होता रहता है और राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय समस्याएं विसंगत से विसंगततर होती जाती हैं।

जी-7 में सम्मिलित अमेरिका, जापान, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूनाइटेड किंग्डम (इंग्लैंड) किसी न किसी रूप में चीन और रूस से दुष्प्रभावित हैं और इसीलिए इनके जी-7 के सामूहिक प्रस्तावों में हर वर्ष चीन और रूस के विरुद्ध प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप में कोई न कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव भी होता ही है। इनके विपरीत विकासशील देश तटस्थ होते हैं, जो दुनिया के उसी देश के समर्थन में खड़े होते हैं, जिनसे उन्हें आर्थिक या अन्य प्रकार की सहायता मिलती है।

ऐसे ही सहायकों के रूप में चीन और रूस भी सामने आते हैं। इन परिस्थितियों में भारत और आस्ट्रेलिया जैसे देश, जो विकसित होने से कुछ कदम दूर हैं, वे कई गुटों और समूहों में विभाजित देशों के लिए बड़े समर्थक या विरोधी सिद्ध हो सकते हैं। इसीलिए जी-7 हो, क्वाड या जी-20, पिछले साढ़े नौ वर्षों से भारत की भूमिका हर जगह महत्त्वपूर्ण हो चुकी है।

इसमें भारत की प्रगति की बड़ी भूमिका है। यह विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध प्रारंभ होने से लेकर अब तक सऊदी अरब को पीछे छोड़ कर बड़े परिष्कृत पेट्रोलियम तेल का निर्यातक बन चुका है। घरेलू अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने, राजकीय भ्रष्टाचार का अंत करने और विश्व में मानवता के आधार पर एक स्थिर, पारदर्शी, वैध और बहुसमावेशी अर्थव्यवस्था बनने की ओर निरंतर बढ़ते भारत के प्रभाव का भला कौन-सा देश अपने हित में उपयोग नहीं करना चाहता।

जी-7 और क्वाड में चीन और रूस सम्मिलित नहीं थे, पर जी-20 में तो ये उपस्थित होंगे। इसीलिए जी-20 में दूसरा ही परिदृश्य देखने को मिलेगा। जो देश जी-7 में चीन का नाम लिए बिना हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी एकाधिकारवादिता का विरोध कर रहे हैं, वही देश उसके साथ जी-20 के इतर द्विपक्षीय वार्ता करते दिखाई देंगे।

इसी प्रकार जी-7 के जो सदस्य देश यूक्रेन के समर्थन में रूस के प्रति विद्रोही बने हुए हैं, कल जी-20 में उन्हीं में से कुछ अपने हित साधने रूस के साथ द्विपक्षीय या त्रिपक्षीय वार्ता करते मिलेंगे। इस तरह की विरोधाभासी स्थितियां भला, जी-7 हो या जी-20, किसी भी समूह के लिए अपने सामूहिक लक्ष्य की प्राप्ति में कैसे सहायक हो सकती हैं! इस दृष्टि से देखने पर तो यही लगता है कि जी-7 के सार्वभौमिक उद्देश्य अभी पूरे नहीं हो सकते हैं।