Supreme Confrontation: प्रशांत भूषण (Prashant Bhushan) ने महाराष्ट्र (Maharashtra) के औरंगाबाद (Aurangabad) में बापू साहेब कलदाते (Bapusaheb Kaldate) की स्मृति में आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेते हुए कहा कि जब सरकार को लगता है कि कोई न्यायाधीश उनके हिसाब से काम नहीं करेगा, तो वह ऐसे न्यायाधीशों को शीर्ष स्थान पर नियुक्त करने की अनुमति नहीं देती है। वकील और सामाजिक कार्यकर्ता ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि आयोग से अथवा अन्य निकायों से सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों को नियुक्ति का लालच देकर उनके निर्णय को प्रभावित करने की कोशिश की जाती है, लेकिन वर्तमान सरकार ने नया तरीका अपनाया है। अब सभी न्यायाधीशों की फाइल तैयार की जाती है और आईबी (IB), आयकर विभाग (Income Tax Department), सीबीआई (CBI), प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Department) जैसी जांच एजेंसियों से न्यायाधीशों या उनके रिश्तेदारों की कमजोरियों का पता लगाने के लिए कहा जाता है। उन्होंने दावा किया कि यदि ऐसी कोई कमजोरी सामने आती है तो उसका इस्तेमाल उस जज को ब्लैकमेल (Blackmail) करने के लिए किया जाता है।

“सरकार चाहती है कि किसी तरह सुप्रीम कोर्ट उनके अधीन हो”

वरिष्ठ पत्रकार एनके सिंह (Senior Journalist NK Singh) सोशल मीडिया के प्लेटफार्म से कहते हैं कि सरकार साम-दाम-दण्ड-भेद और बदनामी करके चाहती है कि किसी तरह सुप्रीम कोर्ट उनके अधीन हो। उनका कहना है कि एक निष्पक्ष बची हुई संस्था सुप्रीम कोर्ट ही थी, जहां रात-रात भर फाइलों को पढ़कर अथक परिश्रम करके न्यायाधीश निष्पक्ष निर्णय देते हैं। यह बात केंद्र सरकार को गवारा नहीं है, और इससे उसको डर पैदा हो गया है। श्री सिंह का कहना है कि सारी समस्या की जड़ में एक व्यक्ति विशेष की चरण वंदना है। सरकार से जुड़े सभी चाहते हैं कि इस व्यक्ति विशेष की जो जितनी चरण वंदना करेगा, वह उतना प्रभावशाली आज के समय में माना जाएगा। साथ ही यह भी कहा जाता है कि समस्याओं में एक सर्वाधिक विशेष समस्या आज कोलेजियम सिस्टम की है। तो आइए अब समझने का प्रयास करते हैं कि कोलेजियम सिस्टम (Collegium System) है क्या ?

कैसे बना Collegium System और क्या है Role?

कोलेजियम भारत के चीफ़ जस्टिस (Chief Justice Of India) और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों का एक समूह (Group Of Four Senior Most Judges Of The Supreme Court) है। ये पांच लोग मिलकर तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में कौन जज होगा। ये नियुक्तियाँ हाईकोर्ट (High Court) से की जाती हैं और सीधे तौर पर भी किसी अनुभवी वकील (Experienced Lawyer) को भी हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया जा सकता है। कॉलेजियम सिस्टम 1993 में अपनाया गया था। भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनाई गई न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम प्रणाली 1993 में न्यायिक प्रणाली में लोकतंत्र (Democracy In The Judicial System) सुनिश्चित करने के लिए स्थापित की गई थी। भारत में कॉलेजियम प्रणाली को “न्यायाधीश-चयन-न्यायाधीश (Judges Selecting Judges)” भी कहा जाता है, यह वह प्रणाली है जिसके द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण केवल न्यायाधीशों द्वारा किया जाता है। कॉलेजियम प्रणाली न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है जो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है, न कि संसद के अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा। सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम का नेतृत्त्व देश के प्रधान न्यायाधीश (Chief Justice) द्वारा किया जाता है और इसमें न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश (Senior Most Judges) शामिल होते हैं।

सरकार से केवल सुझाए गए नामों पर हस्ताक्षर/अनुमोदन की उम्मीद न करें : कानून मंत्री

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट्स में जजों की नियुक्ति के मैकेनिज्म पर हमला करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू (Union Law Minister Kiren Rijiju) ने पिछले दिनों कहा कि कॉलेजियम प्रणाली भारत के संविधान से अलग है और देश के लोगों द्वारा समर्थित नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार से केवल कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों पर हस्ताक्षर/अनुमोदन की उम्मीद नहीं की जा सकती है। कानून मंत्री ने कहा “अगर आप उम्मीद करते हैं कि सरकार केवल कॉलेजियम द्वारा सिफारिश किए जाने के कारण न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किए जाने वाले नाम पर हस्ताक्षर करेगी, तो सरकार की भूमिका क्या है? हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि सरकार कॉलेजियम प्रणाली का सम्मान करती है और यह तब तक ऐसा करना जारी रखेगी जब तक कि इसे एक बेहतर प्रणाली द्वारा प्रतिस्थापित नहीं किया जाता है।

कार्यपालिका और न्यायपालिका में टकराव से इंकार, कहा- सवाल राष्ट्र सेवा का है

उन्होंने यह भी कहा कि सर्वोच्चता (कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच) के लिए किसी भी लड़ाई का कोई सवाल ही नहीं है, और एकमात्र सवाल राष्ट्र की सेवा का है। इसके अलावा, इस आरोप का जवाब देते हुए कि सरकार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की विभिन्न सिफारिशों पर ‘बैठती’ है, कानून मंत्री रिजिजू ने कहा कि यह कभी नहीं कहना चाहिए कि सरकार फाइलों पर बैठी। जजों की नियुक्ति और कोलेजियम सिस्टम को लेकर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice D.Y. Chandrachud) और कानून मंत्री किरन रिजिजू के बीच बयानबाजी चल रही है।

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संसद में कॉलेजियम सिस्टम पर बोलते कानून मंत्री किरेन रिजिजू। (फोटो- पीटीआई)

सरकार ने जजों की नियुक्ति पर कई सवाल उठाए हैं। वहीं, सुप्रीम कोर्ट सरकार के सवालों से बचाव कर रही है और अपने स्तर पर तर्क दे रही है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू के एक बयान पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के लिए कोई मामला छोटा नहीं है। अगर हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Personal Freedom) के मामलों में कार्रवाई नहीं करते हैं और राहत देते हैं, तो हम यहां क्या कर रहे हैं?”

न्यायपालिका की स्वतंत्रता के उल्लंघन के प्रयास पर भी है मतभेद

न्यायिक नियुक्तियों (Judicial Appointments) के विषय पर कार्यपालिका के साथ न्यायपालिका (Judiciary With Executive) के बढ़ते टकराव के बीच सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन लोकूर (Justice Madan Lokur) कहते हैं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के उल्लंघन के प्रयास काम नहीं करेंगे। न्यायपालिका की आलोचना करने वाले कानून मंत्री किरेन रिजेजू के हाल के बयानों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि ये पूरी तरह से अकारण है, इसलिए यह बयान चौकाने वाला है।

पूर्व न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है। इसलिए यदि किसी कारणवश न्यायपालिका की स्वतंत्रता छीनने का कोई प्रयास किया जाता है तो यह लोकतंत्र पर हमला है। वरिष्ठ वकील और राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) ने भी यह साफ कर दिया है कि वर्तमान कोलेजियम में बेशक कमियां है, लेकिन सरकार का इसे पूर्ण स्वतंत्रता देना उपयुक्त तरीका नहीं है।

वैज्ञानिक इस साक्ष्य को स्वीकार करते हैं कि जब आसमान में दो नक्षत्र टकराते हैं तो उसका असर पृथ्वी पर रहने वाले मानव सहित छोटे-छोटे जीव-जंतुओं पर निश्चित रूप से पड़ता है। जो स्थिति फिलहाल विधायिका और न्यायपालिका के बीच बनती जा रही है उसका प्रभाव तो सामान्य जनता पर पड़ना स्वाभाविक ही है । वैसे न्यायपालिका और सरकार के मध्य टकराव से आम जनता अनजान है, लेकिन क्या ऐसा लंबे समय तक रह सकेगा ? बात तो कुछ समय बाद सार्वजनिक होगी ही। फिर विधायिका के साथ-साथ न्यायपालिका की प्रतिष्ठा पर क्या प्रभाव पड़ेगा ? एक सामान्य राय पता करने पर जो जानकारी मिली वह मंथन करने योग्य है-कुछ लोगों का कहना है कि यदि न्यायपालिका अपने जजों की नियुक्ति स्वयं करती है तो उससे सरकार को क्या फर्क पड़ता है? क्योंकि विश्व के प्रायः सभी देशों में न्यायपालिका को स्वतंत्र माना जाता है। भारत में भी यही माना जाता है।

इसमें विधायिका के हस्तक्षेप का क्या औचित्य ? वहीं कुछ राजनीतिज्ञ सोच वालों का कहना है कि यदि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति में हस्तक्षेप करती ही है तो उससे न्यायिक प्रक्रिया पर क्या फर्क पड़ेगा ? न्यायमूर्ति को ईश्वर का प्रतिरूप भारत में माना गया है, इसलिए वे उस रूप में अपने धर्म का निर्वाह करें। जो भी हो इस पर शीघ्र से शीघ्र दोनों पक्षों को बैठकर जनहित में निर्णय लेना होगा। क्योंकि;जितनी देरी होगी दोनों पक्षों में कटाक्ष उतना ही बढ़ेगा और समाज का उतना ही अहित होगा। चूंकि दोनों पक्षों में श्रेष्ठ बुद्धिजीवी वर्ग के व्यक्ति ही शामिल हैं, अतः भारतीय जन-मानस की रक्षा करना उनका ही दायित्व है,और इस बात को किसी भी कीमत पर प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनाया जाना चाहिए। इसलिए मामले का हल ढूढ़ने का कार्य शीघ्र से शीघ्र किया जाना चाहिए- आज देश हित में यही सर्वश्रेष्ठ होगा।

Senior Journalist Nishi Kant Thakur

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं )