ज़किया सोमन
बिलकिस बानो गैंगरेप और हत्या मामले में उम्रकैद की सजा पाने वाले 11 दोषियों को आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर रिहा कर दिया गया। गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत रिहाई की मंजूरी के बाद सभी दोषी गोधरा जेल से बाहर आ चुके हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने घोषणा की, ”राज्य सरकार ने उम्र, अपराध की प्रकृति, जेल में व्यवहार जैसे कारकों को ध्यान में रखते हुए उनकी रिहाई की अनुमति दी है। वे सभी पहले ही 14 साल जेल में काट चुके हैं।”
तीन साल की बच्ची सहित 14 बेगुनाहों के बलात्कारियों और हत्यारों को रिहा कर दिया जाना एक तरह से न्याय की मौत है। विडंबना यह है कि ऐसा तब हुआ जब प्रधानमंत्री ने उसी दिन लाल किले की प्राचीर से नारी शक्ति और महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने का आह्वान किया। ऐसा लगता है उनकी बातें अपने ही राज्य में नहीं सुनी गईं।
बिलकिस बानो के साथ क्या हुआ था?
27 फरवरी, 2002 को साबरमती एक्सप्रेस में आग लगने के बाद गुजरात सांप्रदायिक हिंसा में घिर गया था। हथियारों से लैस भीड़ ने जब पांच महीने की गर्भवती बिलकिस के पड़ोस पर हमला किया, तो वह परिवार समेत घर से भाग निकलीं। सभी एक खेत में छिपे हुए थे, तभी तलवार, लाठी और दरांती लिए 30-40 लोगों ने उन पर हमला कर दिया।
परिवार के सात लोगों की मौके पर हत्या कर दी गई। मुख्य आरोपी ने उनकी नवजात बेटी को पत्थर से कुचल दिया। बिलकिस के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। दंगाइयों को लगा बिलकिस मर गईं, लेकिन वह बच गई थीं। वह कुछ ग्रामीणों की मदद से थाने पहुंची।
एक साल से अधिक समय तक पुलिस ने मामले को छिपाने की कोशिश की। सार्वजनिक हंगामे के बाद दोषियों को 2004 में गिरफ्तार किया गया। 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने कुछ आरोपियों को सामूहिक बलात्कार, हत्या और एक गर्भवती महिला से बलात्कार की साजिश के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।
बिलकिस बानो गुजरात हिंसा में बचे लोगों के लिए आशा की प्रतीक बन गईं। उनके मामले में आए फैसले ने देश भर में क्रूर यौन हमलों से बचे लोगों को न्याय की उम्मीद दी। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार को बिलकिस को उनके संघर्ष के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था।
‘नृशंस अपराधों को धोया जा सकता’
राज्य सरकार द्वारा दी गई माफी जस्टिस सिस्टम में कोई मिसाल तो नहीं बन सकता लेकिन न्यायिक तंत्र में शामिल लोगों की मानसिकता को प्रभावित जरूर कर सकता है। राज्य सरकार का यह कदम संदेश दे सकता है कि सामूहिक बलात्कार और हत्या के दोषी 14 साल जेल की सजा काटकर मुक्त हो सकते हैं। इससे यह भी संदेश जा सकता है कि केवल जेल की सजा काटकर नृशंस अपराधों को धोया जा सकता है।
हमें याद रखना चाहिए कि 2002 की सांप्रदायिक हिंसा में एक हजार से अधिक लोगों की जान गई थी और कई अन्य घायल हुए थे। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि हजारों घर जला दिए गए और लाखों निर्दोष नागरिकों को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया। लोग राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हुए। भीड़ के हमले और हत्याएं तब भी जारी रहीं जब गांवों और शहरों में करीब 10 महीने तक कर्फ्यू लगा रहा।
राहत शिविरों में रहने वालों के लिए भोजन, राशन और दवाओं की कमी थी। पीड़ितों को शिकायत दर्ज कराने और प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए दर-दर भटकना पड़ा। राज्य मशीनरी इसके बावजूद हरकत में नहीं आया। एनएचआरसी और चुनाव आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ा ताकि प्रशासन विस्थापित महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सके। अंततः विस्थापितों को राहत और सहायता प्रदान करने के प्रयासों का नेतृत्व सिविल सोसाइटी, स्वयंसेवी समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने किया।
पीएम मोदी की सुने राज्य सरकार
महिलाओं के सम्मान के अलावा, प्रधानमंत्री ने अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में विभाजन की बुराइयों को दूर करने की आवश्यकता पर भी बात की। राज्य सरकार को पीएम की बातों पर ध्यान देने में अब भी देर नहीं हुई है। 2002 में बेगुनाहों के साथ की गई गलतियों को कम से कम स्वीकार तो किया जाना चाहिए। एक महिला और उसके निर्दोष परिवार के खिलाफ हिंसा की सबसे भीषण घटनाओं में से एक में आरोपी के लिए छूट, असहाय बचे लोगों के घावों पर नमक छिड़कने के समान है।
जब देश आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब एक बेटी जो अकथनीय क्रूरता और पीड़ा से गुज़री है। बिलकिस बानो जैसे कई और लोग जो न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं, राज्य की इस कार्रवाई से उम्मीद खोने जा रहे हैं। मैं केवल यह आशा कर सकती हूं कि गुजरात सरकार में शीर्ष पर बैठे लोग महिलाओं की गरिमा का सम्मान करने के लिए पीएम के आह्वान को सुनें और उसपर अमल करें।
लेखिका एक महिला अधिकार कार्यकर्ता और भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की संस्थापक सदस्य हैं।