भारत जैसे देश में जो लोग इस बाजार के अंजाम पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें जयपुर साहित्य महोत्सव की शुरुआत से लेकर पूरे देश में फैले ऐसे महोत्सवों को देखना चाहिए जहां अति महंगे होटल में ‘मैकबुक’ पर ‘वह तोड़ती पत्थर’ कविता पढ़ते सत्यापित जनसरोकारी साहित्यकार मिल जाएंगे। गोष्ठी व चाय-समोसों से उठ कर पंचतारा होटलों वाले साहित्य-महोत्सवों के बाजार वाले भारत में संभ्रांतता के सत्यापन के बाजार के फलने-फूलने की पूरी संभावना है। सत्य और कथा की तीसरी कड़ी में मस्क-युग पर चर्चा। समयानुसार यह मस्क है, वैसे इसे ऐसे भी पढ़ सकते हैं, ‘यह मस्ट है।’
साहित्य, पत्रकारिता व इंटरनेट पर पिछले स्तंभ में चर्चा के दौरान ट्विटर का मालिकाना हक बदलने का शोर हो चुका था। शोर के मूल में था ट्विटर के सत्यापित नीले निशान वाले खाते के लिए आठ डालर के भुगतान की बात। यही भुगतान की बात हिंदी पट्टी के पत्रकारों से लेकर साहित्यकारों को छलनी कर गई। लगा, इनकी साख को बिकाऊ बनाया जा रहा है।
आस्ट्रेलिया में हिंदी के प्रोफेसर व सहिष्णु खेमे के पैरोकारों में से एक इयान वुडफोर्ड ने डालर के भुगतान का प्रतिरोध करने के लिए एलन मस्क के खाते का “क्लोन” बना डाला। वुडफोर्ड ने भोजपुरी गाना “लालीपाप लागे लू” तक मस्क के नाम से पोस्ट किया और आठ डालर चुकाने की अवधारणा का मजाक उड़ाया।
एलन मस्क के इस फर्जी खाते के रीट्वीट शुरू हो गए। धीरे-धीरे पता लगने लगा कि यह मस्क का फर्जी खाता है। इस फर्जी खाते का वायरल होना वही स्थिति है जिसके बारे में ट्विटर खरीदने से पहले मस्क चिंतित थे। ट्विटर के नियम-कायदों के तहत वुडफोर्ड का खाता निलंबित कर दिया गया।
पिछले हफ्ते हमने राजनीति व समाज में “इंटरनेटीय” साहित्य की जिस प्रवृत्ति की बात की थी, इस हफ्ते इयान वुडफोर्ड उसके उदाहरण के रूप में हमारे सामने हैं। उनका प्रतिरोध खाते के प्रतिबंधित होते ही खत्म हो गया।
हिंदी पट्टी में आठ डालर के भुगतान को नैतिक समस्या के रूप में देखा गया कि यह तो पैसे खर्च कर कोई भी ले लेगा? हिंदी पट्टी में मुद्रा यानी बाजार ही वह लक्ष्मण रेखा है, जहां आज के दौर में पत्रकारिता व साहित्य आमने-सामने है। युवाल नोआ हरारी ने फेसबुक के मालिक मार्क जुकरबर्ग के बारे में कहा था कि वे बहुत सरल व्यक्ति हैं। अभी एलन मस्क की छवि भी कुछ ऐसी ही बच्चे जैसी है कि जो ठीक लगे बोल देते हैं। मार्क और मस्क में यह समानता है कि दोनों को आने वाले बाजार की समझ है।
बाजार में छवि को लेकर जुकरबर्ग और मस्क की महत्वाकांक्षा थोड़ी अलग है। सबसे पहले हम जुकरबर्ग और मस्क के व्यक्तित्व के अंतर को ही समझने की कोशिश करें। व्यक्तिगत छवि के स्तर पर जुकरबर्ग एक शांत कारोबारी रहे हैं। उनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना रहा है।
जुकरबर्ग ने कभी इस बात की कोशिश नहीं कि दुनिया में उन्हें किसी तरह के वैश्विक संवाद को आगे बढ़ाने वाले पैरोकार के रूप में देखा जाए। वहीं, एलन मस्क को इस बात की खासी परवाह है कि मुनाफे के साथ दुनियावी विमर्श में उनका नाम सबसे आगे की पंक्ति में हो।
आने वाली दुनिया का सबसे बड़ा सहारा अगर अक्षय ऊर्जा का क्षेत्र होगा और इस क्षेत्र में बड़े प्रयोग होने शुरू हो गए हैं तो उस प्रयोग के कर्ताधर्ता के रूप में एलन मस्क का जिक्र जरूर हो। फेसबुक पर उपयोगकर्ताओं को अपनी पहुंच के बारे में खासी चिंता होती है, लेकिन जुकरबर्ग ने खुद को लेकर कभी इस बात की परवाह नहीं की कि वे दुनिया भर के अखबारों में कितने नंबर पर छपते हैं। उनकी यही परवाह रहती है कि उनके मुनाफे का सूचकांक कितना ऊपर गया?
पत्रकारिता से लेकर साहित्य के क्षेत्र में एलन मस्क अपनी समझ के हिसाब से विमर्श खड़ा करना चाहते हैं। वह अच्छा या खराब हो सकता है। ट्विटर के साथ सौदे के समय उनका पहला कदम यही था कि फर्जी खातों की संख्या मांगी। प्रचार के संस्कार के आदमी की पहली चिंता फर्जी खाते क्यों थे?
असली और नकली की फिक्र दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी
इसके पहले न तो पत्रकारिता और न ही साहित्य ने फर्जी खातों को लेकर कोई विमर्श खड़ा किया था। मस्क ने यह विमर्श खड़ा कर ही दिया। अगर किसी ने ट्वीट डाला और चंद घंटों के अंदर उसके तीन लाख रीट्वीट हो गए तो ये तीन लाख लोग कौन हैं, मस्क यह जानना चाहते थे। ये असली हैं या नकली हैं? इस असली और नकली की फिक्र दुनिया के सबसे बड़े कारोबारी को हुई।
ट्विटर के पुराने कर्ताधर्ता इसका सटीक जवाब नहीं दे पाए थे तो लंबे समय तक यह सौदा अधर में लटका रहा। अब जल्दी ही ट्विटर पर फर्जी खातों को हटाने की मुहिम शुरू होगी जिसके बाद कई हस्तियों के लाखों अनुयायी होने का बुलबुला भी फूटेगा।
ट्विटर के सत्यापित खातों के लिए आठ डालर की बात कहने के बाद मस्क अपने तरीके से उन लोगों का मजाक उड़ाने लगे जो इसके विरोध में जुटे थे। उन्होंने एक मीम डाला कि कुछ लोग “स्टारबक्स” का कोई उत्पाद आठ डालर में आराम से खरीद लेते हैं, जिसे तीस मिनट में खा-पी जाते हैं, पर तीस दिन के लिए आठ डालर देने के नाम से चीख रहे हैं।
आठ डालर भुगतान के प्रतिरोधियों पर लगातार मजाकिया तरीके से वार कर वे यही संदेश दे रहे हैं कि अब इस ग्रह पर कुछ भी मुफ्त नहीं मिलने वाला है। जिस तरह से आप खाने, पीने, स्वस्थ रहने के लिए पैसे खर्च करते हैं तो सोशल मीडिया पर अपनी अभिव्यक्ति के लिए भी पैसे खर्च कीजिए।
ट्विटर ने भुगतान वाले सत्यापित खातों के लिए जिन सुविधाओं की पेशकश की है उससे ही पता चलता है कि मस्क पहले अभिव्यक्ति का बाजार खड़ा करेंगे और बाजार के साथ उपभोक्ताओं की कदमताल उनकी नियति होगी।
ट्विटर दृश्य और श्रव्य श्रोताओं के लिए अलग खिड़की बनाएगा
सोशल मीडिया पर तकनीक की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है। ट्विटर दृश्य और श्रव्य श्रोताओं के लिए अलग खिड़की बनाएगा। इसी खिड़की के जरिए कोई अपनी कविता, कहानी, भाषण या किसी भी अभिव्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचा सकेगा। अभी तक ट्विटर पर लंबे वीडियो नहीं डाले जा सकते थे। लेकिन आठ डालर के भुगतान के बाद ये सारी सुविधाएं मिल सकती हैं। खासकर पत्र-पत्रिकाएं भी ट्विटर के साथ करार कर अपने पाठक वर्ग का दायरा बढ़ा पाएंगे।
एलन मस्क बाजार का वही समीकरण दोहरा रहे हैं जो पहले कई फोन कंपनियां भी अपना चुकी हैं। पहले तो आपको फोन सेट के साथ बात करने और इंटरनेट की सुविधा मुफ्त दी जाएगी। लेकिन जब आप उसके आदी हो जाएंगे फिर फोन कंपनी अपना शुल्क बढ़ा देगी। बाजार पहले किसी भी उत्पाद को आपकी आदत में शामिल करता है, और फिर उसके लिए अपने मुनाफे के हिसाब से शुल्क वसूलता है।
उपभोक्ताओं की जेब से पैसे निकालने के लिए बाजार दो तरीकों से चलता है। एक तो मध्यवर्ग के बाजार पर छाने वाली चिप्स, बिस्किट और मैगी जैसी कंपनियों का तरीका जो कीमत बढ़ाने के बजाए अपने चमकीले पैकेट के अंदर सामान की मात्रा कम कर देती हैं। पैसे की निकासी उतनी ही हो रही है, लेकिन सौ ग्राम चिप्स की जगह सत्तर ग्राम ही मिल रहे हैं। चिप्स, बिस्किट उपभोक्ताओं की बुनियादी जरूरत नहीं बल्कि स्वाद भर का मामला है तो उपभोक्ताओं को ज्यादा बोझ महसूस नहीं होता है।
मस्क खास सेवा के लिए शुल्क देने को सामाजिक साख से जोड़ेंगे
वहीं बाजार का दूसरा तरीका है महज उपभोग के स्तर पर समाज के खास समूह को ऊपरी पायदान पर रख देना। मस्क ट्विटर उपभोक्ताओं का ऐसा संभ्रांत वर्ग तैयार करना चाहते हैं, जिसके लिए किसी खास सेवा के लिए शुल्क देना उसकी सामाजिक साख की बात होती है। जैसे फोन के बाजार में ऐपल कंपनी ने किया था एंड्रायड के बरक्स आइओएस का बाजार तैयार कर।
पिछले एक दशक में आइफोन उपभोक्ताओं का ऐसा संभ्रांत वर्ग तैयार हुआ जिसकी नजर उस फोन की अगली पीढ़ी आने पर टिकी रहती है। आम लोगों के लिए भले आइफोन लेने के लिए गुर्दे बेचने का चुटकुला बन गया हो लेकिन भारत जैसे देश में भी एक बड़ा वर्ग ऐसा है जो दिवाली में पूरे परिवार के लिए नई पीढ़ी के आइफोन लेता है।
इसी सामाजिक साख पूंजीवाद की कड़ी में मस्क दुनिया की सबसे महंगी कार लेकर आए। मस्क की कार इतनी महंगी है कि फिलहाल वो भारत में उसका बाजार नहीं देख पा रहे हैं।
अक्सर मसखरी कर खबरों की दुनिया में छाए रहने वाले एलन मस्क जिस बाजार का आकलन कर पा रहे हैं वह है आने वाले समय में ट्विटर के संभ्रांत वर्ग वाली साख का। याद करिए, जयपुर साहित्य महोत्सव (लिट-फेस्ट) की जब शुरुआत हुई थी, तब लगा ही नहीं था “लिट-फेस्ट” हिंदी पट्टी तक में नया वर्ग तैयार कर देगा जहां किसी छोटे सभागार में गोष्ठी नहीं रिजार्ट और होटलों में “वह तोड़ती पत्थर” पर चर्चा होगी।
मस्क इन्हीं उपभोक्ताओं से उत्साहित हैं जो गोष्ठी से महोत्सव तक पहुंचे हैं। वे बुनियादी आठ डालर के साथ अपनी संभ्रांत छवि के लिए और भुगतान के लिए भी तैयार होंगे। जो वर्ग कहता है कि उसका हाथ सिर्फ “मैकबुक” पर ही चल सकता है और उसी पर कविता लिख सकता है वो उतने डालर चुकाएगा जितना मस्क उससे संभ्रांत सभ्यता का वासी होने के लिए मांगेंगे। (क्रमश:)