महिला पहलवानों के सवालों पर सत्ता पक्ष के नेता और मंत्री भागना शुरू कर देते हैं तो खुद बृजभूषण शरण ने सवालों से खफा होकर पत्रकार की माइक ही तोड़ डाली। किसान से लेकर पहलवान तक, सत्ता पक्ष की रणनीति बन चुकी है कि मौन रह कर उनके विरोध को मूर्छित कर दो। इतनी लंबी चुप्पी बरतो कि विरोधी खेमा थक कर चुप हो जाए। लेकिन, जब चारों तरफ थके-हारे लोग ही दिखने लगेंगे तो आपके मौन पर सवाल उठेंगे। फिर सत्तायुक्त के सामने वह सत्ताच्युत आकर्षण बनेगा, जिसकी आवाज ही इन दिनों उसकी पहचान बन रही है। मौन के महिमामंडन से लेकर मातम तक के हालात पर बेबाक बोल

‘कौन समझाए किस पे क्या गुजरी
शम्मां खामोश राख परवाना’

संयम को शास्त्रों में श्रेष्ठ गुण की तरह देखा गया है, लेकिन वही शास्त्र अति की चेतावनी भी दे गए हैं। अति का भला न बोलना, अति की भली न चुप। आगे की पंक्तियों को तो हम जलवायु संकट की तरह देख ही रहे हैं कि कहीं बारिश की अति है तो कहीं धूप ने सूखा डाल रखा है।

जिस मौन को राजनीति का नया व्यावहारिक मौसम माना जा रहा था, वह अब यहां भी राजनीति के पर्यावरण का संकट ला चुका है। बृजभूषण शरण सिंह पर दिल्ली पुलिस के आरोप-पत्र आ चुके हैं। आरोप वही हैं जिनके बारे में जंतर-मंतर पर महिला पहलवान रो-रो कर बता रही थीं और सत्ता पक्ष उनकी शिकायतों को देश का अपमान करार दे रहा था। देश की उड़न-परी ने भी नए राजनीतिक वितान में नैतिकता को उड़ान भरने देने से परहेज कर शिकायत को ही अपराध मान लिया था। आंखों में आंसू लेकर खिलाड़ी तमगों को गंगा में तिरोहित करने पहुंची थीं।

वहीं, उड़न-परी की भूमिका कानून की जानकार उन केंद्रीय मंत्री को निभानी पड़ी, जिनसे पत्रकार ने पहलवानों से जुड़े सवाल पूछ लिए। बस फिर क्या था मंत्री मीनाक्षी लेखी न, न कह कर दौड़ने लगीं। बृजभूषण शरण सिंह तो सवालों से दौड़ती मंत्री जी को देख कर आशावान हो गए होंगे कि अब गांव-कस्बों से माड़-भात खा कर आई खिलाड़ियों को ओलंपिक में भेजने की जरूरत नहीं रहेगी।

Wrestlers Protest | BrijBhushan Sharan Singh |
केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी (बाएं) और उड़न-परी पीटी उषा (फोटो – इंडियन एक्सप्रेस पार्थ पॉल और अनिल शर्मा)

सवालों को सुनते ही भागते नेता और मंत्री किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में दौड़ कर पदक ला सकते हैं। भारतीय राजनीति में सवालों से दौड़ने का इतना सफल ‘ट्रायल’ इससे पहले कभी हुआ भी तो नहीं था। इससे सांसद महोदय का उत्साह इतना तो बढ़ ही सकता है कि सवालों पर महिला पत्रकार के साथ भयंकर बदतमीजी से पेश आएं और अपने तरफ बढ़ाई गई माइक भी तोड़ दें।

दिल्ली पुलिस के आरोप-पत्र में बृजभूषण शरण सिंह पर गंभीर आरोप हैं

दिल्ली पुलिस के आरोप-पत्र में बृजभूषण शरण सिंह पर जिस तरह के आरोप हैं, उन्हें हम शब्दों में इस स्तंभ में नहीं लिख सकते। जनसंचार माध्यमों पर उपलब्ध इन आरोपों को पढ़ कर अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर ये आरोप सही सिद्ध होते हैं तो महिला पहलवानों ने कैसा दोहरा उत्पीड़न झेला है। उनके साथ उस इंसान ने ऐसा किया जिसकी जिम्मेदारी उनकी सुरक्षा की थी। उस उत्पीड़न को और कष्टदायक इस देश की राजनीति ने बना दिया। जिस आदमी पर देश के पदकवीरों की जिम्मेदारी थी, वह इनके पदकों को 15 रुपए का बता रहा था।

जंतर मंतर पर जुटी महिला पहलवानों के साथ क्या नहीं हुआ। उनकी एकता में फूट डालने की कोशिश की गई। फोटो और वीडियो संपादन कर उनका चारित्रिक हनन किया गया। इन सबके बाद भी वे डटी रहीं तो उन्हें नौकरी का डर दिखाया गया। ऐसा माहौल पेश किया गया जैसे किसी सरकारी नौकरी पर उस पार्टी का अहसान होता है, जिसे जनता पांच साल के लिए चुनती है। अगर आप सरकारी नौकरी में हैं, और सरकार से जुड़े लोग आपके साथ गलत करते हैं तो आपको चुप्पी साध लेनी चाहिए। इन्हीं सब चीजों को देखते हुए विनेश फोगाट ने ट्वीट किया था-सुनो द्रौपदी शस्त्र उठा लो, अब गोविंद न आएंगे…।

‘गोविंद’ तो शायद पुरुष ही निकले। लेकिन, उस महिला व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय का क्या जिनकी अगुआ महिला पर तो कम से कम इस मुद्दे को लेकर बोलने की जिम्मेदारी थी? अब यह सच है कि पिछले लंबे समय से उन्होंने अपना अघोषित मंत्रालय चुन रखा है। मंत्रालय का नाम है-नेहरू/गांधी विरोध मंत्रालय।

इस मुद्दे पर सरकार से लेकर संस्थाओं तक के मौन ने वह किया, जिसका अंदेशा था। खेल के मैदान में बच्चियों की सुरक्षा के उलट उस पाक्सो कानून के खिलाफ माहौल बनाया गया जो इस लोकतंत्र में अधिकारों की लंबी लड़ाई का हासिल है। बृजभूषण शरण सिंह के शक्ति प्रेम में कुछ साधु-संत भी आ गए और पाक्सो कानून के खिलाफ आंदोलन का एलान कर दिया। हालांकि, यह दूसरी बात है कि प्रशासन ने उन्हें ऐसी किसी तरह की रैली करने की इजाजत नहीं दी।

सवाल यह है कि जो जांच व्यवस्था दिल्ली के पूर्व उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को बीमार पत्नी की देखभाल के लिए इस तर्क पर जमानत का विरोध कर रही थी कि वे गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं, उसे इस बात की चिंता नहीं थी कि पाक्सो का आरोप लगाने वाली नाबालिग होती है। उस बच्ची पर अपने बयान से मुकरने का दबाव डाला गया तो?

अगर मनीष सिसोदिया से गवाहों को प्रभावित करने का खतरा, तो बृजभूषण से क्यों नहीं?

आज इस आशंका की पूरी गुंजाइश बनती है कि नाबालिग और उसके परिवार पर दबाव तो नहीं डाला गया था? पुलिस-प्रशासन की लंबी खामोशी व देरी ने बृजभूषण सिंह को एक सख्त कानून के शिकंजे में आने से बचा तो नहीं लिया? वह नाबालिग भविष्य में कभी और बड़ी होकर, और मजबूत होकर बोल दे-‘मी टू’ तो फिर बीस साल बाद सवाल किया जाएगा कि पहले क्यों नहीं बोली? पहले क्यों नहीं बोली का जवाब बृजभूषण शरण सिंह का उदाहरण होगा कि लड़कियां पहले बोलने से परहेज क्यों करती हैं? जिन्होंने बोला भी उनका अपने बोले पर कायम रहना कितना मुश्किल होता है।

स्त्री-उत्पीड़न के गंभीर आरोपों के बाद भी बृजभूषण शरण सिंह का बचाव क्यों? क्योंकि वे उत्तर प्रदेश में कुछ सीटें जीत सकते हैं। इसी आधार पर अजय मिश्र टेनी का भी बचाव किया गया था, उनके पुत्र पर लगे हत्या के आरोपों की अनदेखी करते हुए। टेनी की अगुआई में उनके क्षेत्र की सभी विधानसभा सीटें भाजपा जीत गई। आप येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीत सकते हैं तो फिर आपके खिलाफ मौन साध लिया जाएगा? अगर वे सत्ता पक्ष के लिए चुनाव जीत सकते हैं तो फिर किसी भी गवाह को प्रभावित नहीं कर सकते हैं। गवाह घर में बैठे-बैठे ही सोच लेता है कि अब अपना बयान बदल देना चाहिए।

आज चुनाव जीतने के कारखाने में नैतिकता वह पुरानी मशीन है जिसे, शुभ लाभ के निशान के साथ लाल कपड़े में बांध दिया गया है। राजनीति के नए रंगरूटों को दिखाया जाता है, कि कभी यह भी काम करती थी। अब तो सिर्फ इसकी पूजा करनी है। चुनावी मैदान में बस इसकी शोभा-यात्रा निकालनी है, और उसके बाद नैतिकता के भगवान के पट बंद कर दिए जाते हैं।

Manipur Violence, CM N. Biren Singh
सोमवार, 3 जुलाई, 2023 को इंफाल में पत्रकारों से बात करते हुए मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह (बीच में)। (पीटीआई फोटो)

पिछले दिनों मणिपुर के मुख्यमंत्री ने नैतिकता की रस्म निभाने में भलाई समझी। जितने ताम-झाम के साथ इस्तीफा देने निकले, उतने ही हो-हल्ले के साथ समर्थकों ने इस्तीफा फाड़ भी दिया। महाराष्ट्र में जब रातों-रात नई सरकार ने शपथ-ग्रहण कर लिया था तो किसी को भनक तक नहीं लगी थी। महाराष्ट्र की जनता को पता भी नहीं चला था कि सुबह सूरज उगने के बाद वे नई सरकार के शासन में होंगे। मंत्रिमंडल में जब फेरबदल होता है, तो शपथ लेने के बाद ही नए मंत्री का नाम और काम मालूम चलता है।

Manipur Violence, CM N. Biren Singh Supporters
शुक्रवार 30 जून, 2023 को इंफाल में पद से इस्तीफा देने राजभवन जा रहे मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को रोकने के लिए इकट्ठा हुए उनके समर्थक। (पीटीआई फोटो)

ऐसी खुफिया राजनीति वाले माहौल में जब बीरेन सिंह इस्तीफा देने जा रहे थे तो उसे फाड़ने का न्योता पूरी समर्थक मंडली को दे दिया गया था। जब पूरा राज्य जल रहा हो तो बीरेन सिंह वहां की कुर्सी पर सत्ता-सुख कैसे ले सकते हैं, इस मौन का जवाब आज नहीं तो कल उन्हें इतिहास के पन्नों पर दर्ज करवाना ही होगा। आज तो अपने समर्थकों से इस्तीफा फड़वा दिया, लेकिन जिम्मेदारी के इतिहास में अपने गैरजिम्मेदार इतिहास को नहीं फड़वा पाएंगे। किसान से लेकर पहलवान तक सत्ता की रणनीति रही है कि चुपचाप देखते हुए इनके विरोध को मूर्छित कर दो। मौन रह कर विरोध के शब्दों को इतना थका दो कि फिर उनकी भी आवाज निकलनी बंद हो जाए।

सत्ता का सबसे कमजोर विषय इतिहास ही होता है। इतिहास की किताब को बंद कर वह इस चेतावनी को भूल जाना चाहती है कि बाद में उसके मौन पर ही एक मातमी अध्याय होगा। मातम की आवाज कितनी मार्मिक होती है, कृपया एक बार मणिपुर की तरफ कान लगा कर सुन लीजिए। फिर आकर्षण उसकी तरफ जाएगा जो न तो सांसद है, न मंत्री न किसी पार्टी का अध्यक्ष। जो बिना किसी आधिकारिक पद के मणिपुर गया। आपके सत्तायुक्त मौन के खिलाफ वह सत्ताच्युत कह रहा है- मेरी आवाज ही मेरी पहचान है। मैं राहुल गांधी हूं।