सत्ता और व्यवस्था के खिलाफ पनपी लोक चेतना को पहचानने में आम आदमी पार्टी के अगुआ की नजर पारखी है। दुखद है कि इस चेतना के जरिए सत्ता में आते ही वह बदलाव को लेकर चैतन्य होने के बजाए जनता को रोमांचवादी शासन में उलझा देते हैं। दिल्ली की पारी में भ्रष्टाचार जैसा अहम मसला मोबाइल से खुफियागीरी में सिमटा दिया गया। दिल्ली की कानून-व्यवस्था केंद्र के हाथों में है लेकिन पंजाब में सत्ता के साथ पुलिस मिलते ही भगवंत मान सरकार वहां इसमें भी रोमांच पैदा करने में जुट गई। विशिष्टों की सुरक्षा को लेकर क्रांति करने के नाम पर पंजाब में वह मंजर पैदा कर दिया जो आगे के लिए आगाह कर रहा है। जिस व्यक्ति को राज्य सरकार को सुरक्षा देनी है उसे लेकर जनसंचार माध्यमों पर हल्ला मचा दिया गया कि इसकी सुरक्षा में कमी हुई। पंजाब जैसे संवेदनशील सूबे में सुर्खियों के सहारे सत्ता चलाने के प्रपंच पर बेबाक बोल

ये शहर है कि
नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला
बन के इश्तिहार मिला
-निदा फाजली

दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश का कोशांबी (जिला गाजियाबाद)। वहां के एक अपार्टमेंट से नीली वैगन आर निकलती थी, जिसमें दिल्ली के नए-नवेले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सवार रहते थे। गाजियाबाद की सीमा तक उत्तर प्रदेश की पुलिस वैगन आर को सुरक्षा देती थी जो बाद में दिल्ली पुलिस के सुपुर्द हो जाती थी। टीवी से लेकर अखबारों तक बड़ी सुर्खियों में दिखी नीली वैगन आर। जनता दरबार के लिए मुख्यमंत्री का सहयोगियों के साथ सचिवालय की छत पर चढ़ना और अति विशिष्ट संस्कृति को खत्म करने के लिए पूरी आम आदमी पार्टी की फौज का गरजना।

सुर्खियां बनना खत्म और दिल्ली वाले अध्याय का किस्सा हजम। अण्णा आंदोलन के समय पत्रकार से आंदोलनकारी बने लोग आज किताब लिखने के लिए मजबूर हैं कि क्या से क्या हो गए बेवफा तेरे प्यार में। पत्रकार से नेता बने फिर पत्रकार गति भए। अब आप में से कोई किताब में उनका सच लिखे, या कोई फिर से किसी चैनल की स्क्रीन पर लंबे वितान का नमस्कार कह चिल्लाए। आपकी भावनाओं का दोहन दिल्ली की सत्ता हासिल करने के लिए ही था। आप वो काठ की हांडी थे जो दोबारा नहीं चढ़ती। हर चुनाव में नया चूल्हा, नई आग और नई हांडी।

वह नीली वैगन आर फिलहाल आम आदमी पार्टी के सिद्धांतों के संग्रहालय में दर्शकों की बाट जोह रही है। लेकिन दर्शकों का मुंह अब पंजाब के दर्शन की ओर मोड़ दिया गया है। दिल्ली में भी खूब चला था, मोबाइल से रिकार्ड कीजिए और भ्रष्टाचार के क्लिप भेजिए। तो पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री को सुर्खी का सुर्खाब बना दिया गया और भ्रष्टाचार पर शून्य सहनशीलता की वाहवाही लूटी गई।

अब बारी थी वीआइपी संस्कृति भाग-2 की। भाग एक तो दिल्ली में हुआ था और वहां पुलिस व कानून-प्रशासन आम आदमी पार्टी के अगुआ के पास नहीं था। पंजाब के साथ त्रासदी यही हुई कि अब उनके पास सूबे की पुलिस व प्रशासन भी आया।

आज के दौर में जब पूरी दुनिया अपनी सीमाई सुरक्षा को लेकर फिक्रमंद है तो भारत में पंजाब जैसे राज्य की चिंता सबसे पहले होनी चाहिए। लेकिन जो जरूरी और सही चिंता करेंगे वे सुर्खियां कैसे बटोरेंगे। खुफिया व प्रशासनिक महकमा क्या करने वाला है उसका पूरा नक्शा मीडिया को थमा दिया गया। उन लोगों की सूची न्यूज चैनलों पर तैरने लगी जिनकी सुरक्षा वापस लेनी है।

एक ऐसा गीतकार, नेता जिसकी सुरक्षा संवेदनशील मामला थी सोशल मीडिया पर बताया जाने लगा कि उसकी सुरक्षा हटा कर कितना क्रांतिकारी काम किया। जो काम वक्त के तकाजे को देखते हुए चरणबद्ध व चुपचाप करना था उसके लिए ढोल-नगाड़ा बजा दिया, देखिए जी हम तो इन लोगों की सुरक्षा वापस ले रहे हैं। चलिए ताली बजाइए और हमारी तारीफ कीजिए कि हम एक ही दिन में विशिष्ट संस्कृति खत्म कर सबको आम आदमी बना देंगे। एक और क्रांति कर देंगे।

अभी सुर्खियां बनी ही थी, ताली बजी ही थी कि पंजाब गोलियों की आवाज से सहम गया। अपने गीत से पंजाबी युवाओं के नायक बने कांग्रेस नेता सिद्धू मूसेवाला की हत्या कर दी गई। जिसका डर था वही हुआ। हत्या के तार सरहद पार से भी जुड़े व गैंगवार, बंदूक संस्कृति पर बहस को लेकर पंजाब उलझ गया।

सुर्खियों की तमन्ना में सरकार ने सुरक्षा हटाई और हत्या की जिम्मेदारी ली बदमाशों के गिरोह ने। भगवंत सिंह मान के गैरजिम्मेदाराना फैसले के बाद असामाजिक तत्वों ने जिस तरह की ‘जिम्मेदारी’ दिखाई है उसके बाद हम सबको पंजाब को लेकर संजीदा हो जाना चाहिए।

यह ‘जिम्मेदारी’ वही खौफ है जिसका हम तब से इस स्तंभ में अंदेशा जता रहे हैं जब से आम आदमी पार्टी ने पंजाब में चुनाव प्रचार शुरू किया था और बड़े ही गैरजिम्मेदाराना तरीके से खालिस्तान समर्थकों को बहस में ला दिया था। केजरीवाल आतंक पर चुटकुलेनुमा भाषण दे रहे थे और हम उस भोगे हुए को याद दिला रहे थे जो यह देश दोबारा नहीं भोगना चाहेगा।

आम आदमी पार्टी जनभावनाओं के दोहन की सफल प्रयोगशाला चला चुकी है। भ्रष्टाचार हर आम भारतीय के लिए बड़ा खलनायक था तो वह कांग्रेस को इसका अग्रदूत बना कर उसकी जमीन पर कब्जा पा गई। इसी प्रयोग के तहत उसने अति विशिष्ट संस्कृति वाला मुद्दा चुना।

भारत में आजादी के बाद विशिष्टों की सुरक्षा आभिजात्य संस्कृति का हिस्सा बन गई। किसी के पास अगर सरकारी एजंसी से दी गई सुरक्षा है तो उसका रुतबा खास है। यही कारण है कि दुनिया के अमीरों में शुमार भारतीय भी सरकार से सुरक्षा मिलना अपनी शान समझते हैं।

अति कभी भी अपनी जगह पर शून्य नहीं छोड़ता है। अक्सर एक अति के बाद दूसरे अति का प्रवेश हो जाता है। सामाजिक शान वाली यह सुरक्षा जनता को मुंह चिढ़ाने लगी। जनता में संदेश जाने लगा कि आपराधिक छवि के लोग चुनाव जीत रहे हैं, मंत्रिपद पा रहे हैं। आम जनता के पैसे से उन लोगों की सुरक्षा पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं जिन पर खुद सुरक्षा के लिए खतरा बनने के आरोप हैं। आम भाषा में कहा जाए तो जनता को लूटने वाला उसी के पैसे से सुरक्षित है।

आम आदमी पार्टी ने जनता की इसी दुखती रग को पकड़ लिया। विशिष्टों के खिलाफ जो लोक चेतना थी उसे अपना नया राजनीतिक रोमांच बना लिया। जनता के पास संदेश दिया कि देखिए हम आपके हित में काम कर रहे हैं। लेकिन यह कथित हितकारी इतनी जल्दी हाहाकारी बन जाएगा इतनी बुरी भविष्यवाणी हम सपने में भी नहीं करना चाहते थे। लेकिन राजसत्ता की समझ के अभाव का हाहाकार पंजाब में मच चुका है।

लोक चेतना और सत्ता की समझ के मिश्रण को सुशासन कहते हैं। लेकिन आम आदमी पार्टी ने दिल्ली से लेकर पंजाब तक सिद्ध किया कि उसे शासन की समझ नहीं है तो ‘सु’ उपसर्ग लगाना ही पूरे राजनीतिक व्याकरण को व्यर्थ करना है।

सत्ता खास से लेकर आम की है। उसके लिए कोई अछूत नहीं हो सकता है। उसे आम और खास के बीच की खाई कम करनी चाहिए न कि खास के खिलाफ उत्पात मचाना शुरू कर दिया जाए। खतरा अमीर से लेकर गरीब तक को हो सकता है। सत्ता का चरित्र चाहे राजशाही का हो या पूंजीवादी, समाजवादी, साम्यवादी। चाहे वह अमेरिका हो, रूस, यूक्रेन, चीन, पश्चिम बंगाल या फिर कश्मीर सुरक्षा के सवाल को कहीं भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

भारत में उत्तर (इंदिरा गांधी) से लेकर दक्षिण (राजीव गांधी) तक में सुरक्षा की चूक का नतीजा रहा है दो नेताओं की शहादत। ऐसे बुरे अनुभव के बाद भी क्या देश के किसी भी हिस्से में रोमांचवाद का राज लाया जा सकता है? प्रचार के प्रपंच में लाया गया अपरिपक्व फैसला अदालत पहुंचा और पंजाब सरकार की किरकिरी हुई। फैसला तो वापस लिया गया लेकिन इससे जो नुकसान हुआ उसका दोषी कौन होगा? सुर्खियां बनाने के चक्कर में मान सरकार गलतियों का इश्तिहार बनती रहेगी?