हम दिल्ली की सत्ता में आएंगे तो यहां की जनता को मुफ्त बिजली और पानी देंगे। आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने के बाद अपना यह वादा पूरा किया। लेकिन, यह वादा अधूरा था। दिल्ली की जनता को पूरा सच नहीं पता था। उसे यह नहीं बताया गया था कि बिजली-पानी से जो राजस्व का घाटा होगा उसे जनता को भरपूर शराब पिला कर पूरा करेंगे। बाजार आधारित दुनिया होने के बावजूद अभी खुले तौर पर नैतिकता को न नहीं कहा गया था। आम आदमी पार्टी की सरकार ने पैसे की तंगी का तर्क देकर शराब के कारोबार को पूरी तरह बाजार के हवाले कर दिया। शराब के बढ़े बाजार में खपाए जा रहे उपभोक्ता अभी तो सस्ती और एक के साथ एक मुफ्त की फाकामस्ती कर सोच रहे कि शायद इसी से जिंदगी कुछ बेहतर हो। लेकिन, नशा टूटने पर यह डर भी लगता है कि सरकार कल को कहीं पैसे के लिए जुआघर को भी जायज न ठहरा दे। आबकारी नीति के हाहाकारी असर पर बेबाक बोल

कर्ज की पीते थे मय
लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी
फाका-मस्ती एक दिन
-मिर्जा गालिब

सरकार किसी भी शराब की दुकान की मालिक नहीं होगी…दिल्ली सरकार की आबकारी नीति का सार।

देश और दुनिया कोरोना से कराह कर उबरने की कोशिश कर रहे थे। दुनिया भर के विद्वान लेख लिख रहे थे कि अब यह ग्लोब पूरी तरह बदल जाएगा, नागरिक और बाजार के बीच नागरिक की अहमियत बढ़ेगी। इसी बदलाव की उम्मीदों के बीच क्रांति की आंधी से आई अरविंद केजरीवाल की अगुआई वाली आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार नई आबकारी नीति लाती है, और अपने क्षेत्र में शराब के कारोबार को पूरी तरह बाजार के हवाले कर देती है।

केजरीवाल ने वादा किया था कि सरकार बनी तो भरपूर बिजली-पानी देंगे

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली वालों से वादा किया था कि अगर आम आदमी पार्टी सरकार में आई तो आम लोगों को खास मात्रा में बिजली-पानी मुफ्त देगी। दिल्ली की जनता इस वादे पर निसार हुई, और दिल्ली सरकार ‘आप’ की हुई। इसके बाद तो चुनाव में जाने वाले हर राज्य के लिए मुफ्त बिजली की पेशकश पहली मजबूरी सी हो गई। कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है जैसे मुहावरे का अर्थ सबसे अच्छी तरह अरविंद केजरीवाल ही समझते हैं, और इसे उन्होंने दिल्लीवालों को भी समझा दिया। मुफ्त बिजली-पानी और मोहल्ला क्लीनिक के प्रचार की आड़ में ऐसी आबकारी नीति लाए जिसने दिल्ली के गली-कूचों को आधुनिक मधुशाला का तोहफा दिया।

अब सरकार मुफ्त बिजली-पानी देगी तो वह अन्य काम के लिए राजस्व कहां से लाएगी? राजस्व हासिल करने का इससे आसान तरीका कुछ नहीं हो सकता था कि बिजली-पानी के बाद शराब भी भारी छूट व मुफ्त वाली मानसिकता के साथ मुहैया करवा दी जाए। चुनावों के वक्त दिल्लीवालों से मुफ्त बिजली-पानी का वादा तो अधूरा था। वह पूरा बाद में हुआ जब दिल्ली के नागरिक को कई जगहों पर एक बोतल के साथ दूसरी बोतल शराब मुफ्त मिलने लगी। और, पीने वालों की संख्या बढ़ाने के लिए शराब पीने की उम्र भी कम कर दी गई। दिल्ली में शराब पीने की उम्र की कानूनी सीमा को 25 वर्ष से घटाकर 21 वर्ष कर दिया गया।

सरकार के नियंत्रण से मुक्त हुई व्यवस्था

नई आबकारी नीति के बाद हर एक निर्धारित क्षेत्र में शराब की अधिकतम 27 दुकानें हो सकती थीं। इसके बाद जिस तरह से शराब की बिक्री धड़ल्ले से बढ़ी व कम उम्र के लोग इसके दायरे में आए उसके बाद दिल्ली वालों को होश आया कि यह आबकारी नीति समाज के लिए कितनी हाहाकारी है। एक पूरी व्यवस्था जो इसके पहले तक सरकार के नियंत्रण में थी, अरविंद केजरीवाल ने उसका पूरी तरह से निजीकरण कर दिया। चुनावी मैदान में बच्चे की कसम खाने वाले, नीति वचन बोलने वाले, रामधुन गाने वाले व गांधी-गांधी चिल्लाने वाले लोग नैतिकता-मुक्त हो गए।

किसी भी सरकार के लिए बाजार और राजस्व जरूरी है, लेकिन, यह नागरिक व समाज की कीमत पर नहीं हो सकता। हर चीज सिर्फ बाजार व मुनाफे के आधार पर जायज नहीं ठहराई जा सकती। अरविंद केजरीवाल के द्वारा शराब के बाजार को जिस तरह आवारा बना दिया गया, उसका असर समाज पर जल्द दिखने लगा।

दिल्ली सरकार की नीति का असर यूपी और हरियाणा में भी दिखा

दिल्ली सरकार की आबकारी नीति ने पिछले एक साल में जितना उलटफेर किया, चीजें प्रभावित हुईं वह उल्लेखनीय है। इसके कारण उत्तर प्रदेश व हरियाणा भी प्रभावित हुआ क्योंकि इसके नए व आधुनिक शहरी इलाके दिल्ली की सीमा से सटे हैं। दिल्ली की सस्ती शराब ने उत्तर प्रदेश व हरियाणा दोनों को खासा राजस्व घाटा पहुंचाया। अब ऐसा तो हो नहीं सकता था कि दोनों पड़ोसी राज्य दिल्ली से सटे अपने इलाकों के लिए अलग से आबकारी नीति अपनाते। आम आदमी पार्टी की अगुआई में आते ही आज पंजाब का जो सूरत-ए-हाल है उसे देख कर अब इन आरोपों में पूरा दम दिखता है कि दिल्ली की आबकारी नीति पंजाब के चुनाव को देखते हुए लाई गई थी। दिल्ली सरकार तर्क दे रही थी कि कोरोना की वजह से आर्थिक संकट हुआ और उसकी वजह से ऐसा फैसला लेना पड़ा। लेकिन, आबकारी नीति को पंजाब चुनाव के ठीक पहले ही बदला गया था। पंजाब चुनाव का खर्च और आबकारी नीति के बदलाव में अंतर्संबंध आसानी से दिख जाता है।

आबकारी नीति बदलने के साथ ही दिल्ली के माहौल को तेजी से बदलते हुए महसूस किया गया। नीति के तहत आठ सौ से ऊपर दुकानें खोली जानी थीं यानी हर गली-कूचे में अब इसकी पहुंच हुई। जिस तरह से आवासीय कालोनियों में भी अनियंत्रित तरीके से शराब की दुकानें खुलीं उससे बहुत तरह की सामाजिक दिक्कतें भी शुरू हुईं। जिस तरह का समाज होगा, उसके जैसे नैतिक मूल्य होंगे वे बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। शराब को लेकर जो सामाजिक धारणा है, आपने उसे दरकिनार करके बाजार के हवाले कर दिया। आपकी फिक्र ज्यादा से ज्यादा बिक्री, ज्यादा से ज्यादा मुनाफा, ज्यादा से ज्यादा राजस्व थी। इसकी ओर जाने का दुष्परिणाम भी दिखने लगा है। लोगों के बीच आपराधिक प्रवृत्ति बढ़ रही है।

महिलाओं पर अत्याचार बढ़ाने का अघोषित लाइसेंस!

भारत जैसे पितृसत्तात्मक देश में शराब के नशे का सीधा संबंध घरेलू हिंसा से है। पुरुषों की शराब तक आसान, सस्ती और एक पर एक मुफ्त पहुंच उन्हें घर की महिलाओं पर अत्याचार बढ़ाने का अघोषित लाइसेंस भी दे देती है। नैतिकता को दरकिनार कर हर जगह, हर दिन, हर वक्त शराब की उपलब्धता गली-गली पहुंचेगी तो हर तरह की वर्जना भी टूटेगी। महिलाओं के साथ छेड़खानी, अश्लील टिप्पणियां, चौराहों पर जानलेवा मारपीट की घटनाओं में इजाफा इस नैतिकता मुक्त नीति का परिणाम है। आम आदमी पार्टी की जनविरोधी आबकारी नीति के कारण ही भाजपा को मौका मिला कि वह केजरीवाल सरकार का विरोध करे।

नगर निगम में बढ़त के कारण भाजपा ने वहां हस्तक्षेप भी किया और कई सारी दुकानें बंद हुईं। दिल्ली के उपराज्यपाल ने जब आबकारी नीति को सीबीआइ जांच के लिए भेज दिया तब अरविंद केजरीवाल पीड़ित पत्ता लेकर आ गए कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया जा सकता है। लेकिन इस नशे के पत्ते पर शायद ही उन्हें दिल्ली के लोगों का नैतिक समर्थन मिल पाए।

भारत जैसे विकासशील देश में समाज, सत्ता और शराब का आनुपातिक संबंध रहा है। यहां जिस तरह की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक गैरबराबरी है उसे देखते हुए शराब की बिक्री पर नियंत्रण होना ही चाहिए। लेकिन, अरविंद केजरीवाल की सरकार ने सत्ता की जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए शराब की दुकानों में मुनाफे को अहम बना दिया।

दिल्ली में शराब की दुकानों में कुछ ब्रांड को सीमित कर दिया गया है। कई दुकानों पर ग्राहक खास कंपनी की शराब ही लेने के लिए मजबूर हैं। इस आपाधापी में शराब की खुदरा दो-ढाई सौ दुकानें ही बची हैं क्योंकि कुछ खास लोगों का एकाधिकार होने लगा है।

शराब के कई छोटे विक्रेता अपनी दुकान का शटर गिरा चुके हैं। उनका आरोप है कि इस क्षेत्र के बड़े खिलाड़ी अपनी दुकानों पर भारी छूट दे रहे हैं, जिससे उनके लिए कारोबार करना नामुमकिन सा हो गया है।

खुदरा शराब बेचने वालों का आरोप है कि अब दिल्ली के शराब बाजार में साठगांठ को बढ़ावा मिल रहा है। राजस्व के नाम पर केजरीवाल सरकार नागरिक को जिस तरह सिर्फ उपभोक्ता की नजर से देख रही है वह नैतिकता के किसी भी मापदंड पर खड़ा नहीं उतरता है। सीबीआइ जांच में कोई अनियमितता सामने आती है या नहीं यह तो बाद की बात है, फिलहाल यह आबकारी नीति नैतिक अनियमितता और नैतिक घोटाले के अग्रदूत की तरह दिख रही है।