378 दिनों तक चले किसान आंदोलन ने भारत की राजनीति में कई तरह की मिसाल कायम की। केंद्रीय सत्ता एक दुर्भाग्यपूर्ण मिसाल कायम कर रही है केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा ‘टेनी’ को पद पर बनाए रखने की। टेनी जिस तरह से असंसदीय भाषा बोलने का रेकार्ड बना रहे हैं वह पूरी लोकतांत्रिक गरिमा को ठेस पहुंचा रहा है। मुख्तार अब्बास नकवी ने मिश्रा का बचाव करते हुए कहा, ‘विपक्ष को ज्ञान देने की जरूरत नहीं है। संसद को परिवार की राजनीतिक प्रयोगशाला नहीं बनने दिया जाएगा।’ जांच आयोग के ताजा आरोप के बाद उसी पारिवारिक मामले को लेकर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री का इस्तीफा जरूरी लग रहा है। हाल ही में हुए लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में भारत की भागीदारी याद करते तो शायद नकवी लोकतंत्र में विपक्ष के ज्ञान को कमतर नहीं मानते। टेनी के संदर्भ में ‘मास्टर स्ट्रोक’ वाले मुहूर्त को लेकर प्रतीक्षारत बेबाक बोल।
मेरी कहानी के कई नाम हैं
इसमें छुपे कई पैगाम हैं
तुम न समझे हो, न समझ पाओगे
इसलिए तो मुझे अब तक
इंतजार-ए-उनवान है
‘अब तक की विवेचना व संकलित साक्ष्यों से यह प्रमाणित हुआ कि उपरोक्त अभियुक्तगणों द्वारा उक्त आपराधिक कृत्य को लापरवाही एवं उपेक्षा से नहीं बल्कि जानबूझकर पूर्व से सुनियोजित योजना के अनुसार जान से मारने की नीयत से कारित किया है, जिससे पांच लोगों की मृत्यु हो गई है और कई गंभीर रूप से घायल हुए हैं एवं कई मजरूबों के फ्रैक्चर होना पाया गया। प्रकरण में धारा 279,338,304ए का होना नहीं पाया गया बल्कि धारा 307,326,34 भादवि व धारा 3/25/30 शस्त्र अधिनियम का भी अपराध होना पाया गया है। इस कारण धारा 279,338,304ए का विलोपन किया गया एवं अन्य धाराओं के साथ धारा 307,326,34 आइपीसी व 3/25/30 भादिवि की बढ़ोतरी की गई।’
जनपद खीरी के मुख्य विवेचक विशेष अनुसंधान दल की इस रिपोर्ट की तकनीकी भाषा का लब्बोलुआब यह है कि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ के पुत्र और उनके सहयोगियों द्वारा जानबूझकर, सुनियोजित साजिश के तहत घटना को अंजाम दिया गया। एसआइटी के इतने गंभीर आरोप पर जब पत्रकार केंद्रीय गृह राज्यमंत्री से सवाल करते हैं तो वे असंसदीय भाषा में पूछते हैं- दिमाग खराब है बे। टेनी पत्रकार के सवाल से चिढ़ कर उस पर झपट्टा मारने की कोशिश भी करते हैं।
संसद के प्रतिनिधि लगातार असंसदीय व्यवहार कर रहे हैं वो भी गृह मंत्रालय के अतिरिक्त प्रतिनिधित्व के साथ। उनकी असंसदीय भाषा पर सरकार अभी तक जो सहिष्णुता की नीति अपना रही है उसे देख कर यह तय माना जा रहा है कि किसी कथित ‘मास्टर स्ट्रोक’ की तैयारी हो रही है। 2014 के बाद से यह देखा गया है कि केंद्र सरकार के मंत्री अपने कामों को लेकर निजी तौर पर ज्यादा मुखर नहीं होते हैं। अगर किसी ने ऐसी कोशिश की भी थी तो अब उनके नाम के आगे ‘पूर्व’ का पट्टा लग चुका है। ऐसे में उत्तर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक टेनी पर जो चुप्पी है उसे तोड़ने में इतनी देर न हो जाए कि हम संसदीय और असंसदीय का फर्क ही भूल जाएं।
अजय कुमार मिश्रा ‘टेनी’ ने जिस तरह से लोकतंत्र का मजाक उड़ा रखा है, उसे देखते हुए हम भी एक व्यंग्यात्मक सलाह देने की गुस्ताखी करते हैं। टेनी को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाने के लिए यही तरीका सूझ रहा कि उनके कामों की खूब तारीफ की जाए। जगह-जगह उनकी प्रशंसा के पोस्टर लगाए जाएं। उन्हें जननेता घोषित किया जाए। उनकी छवि इतनी अच्छी बनाई जाए कि वे अपने पद के लिए अयोग्य मान लिए जाएं। एक राष्ट्रीय अखबार के स्तंभ में इस तरह के मजाक की जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन जब एक मंत्री के लिए पूरी संसदीय गरिमा का मजाक बन रहा हो तो हमारे पास यही एक उपाय बच जाता है।
लखीमपुर खीरी कांड में ताजा जुड़ा ‘सुनियोजित’ शब्द अपने-आप में भयावह है। इस भारी-भरकम शब्द का भावार्थ हमारे पूरे लोकतंत्र को बोझिल करने के लिए काफी है। आरोप पर गौर करें तो हत्या की यह साजिश किसानों को डराने के लिए ही रची गई होगी। भयावह शब्द का इस्तेमाल इसलिए कि किसानों की हत्या के लिए बाकायदा साजिश रची गई। यानी किसान आंदोलन के खिलाफ, प्रदर्शनकारियों के खिलाफ संगठित अपराध का आरोप है।
किसान आंदोलन की भूल-चूक को लेकर उन्हें खालिस्तानी, आतंकवादी, नक्सली और न जाने क्या-क्या कहा गया। ये सारे आपत्तिजनक शब्द मुख्यमंत्री स्तर पर भी बोले गए। लेकिन किसान आंदोलन को डराने के लिए प्रदर्शनकारियों को कुचलने की साजिश का जो आरोप है उसे क्या नाम दिया जाएगा? तो क्या इस तरह की कथित असंसदीय राजनीतिक गतिविधि को अब सामान्य मान लिया जाएगा? अगर यह हत्या है तो जाहिर तौर पर राजनीतिक हत्या है। अगर यह साजिश है तो राजनीतिक साजिश है। राजनीतिक हत्या और राजनीतिक साजिश के लिए किन्हें लक्ष्य बनाया गया? उसके पीछे कौन है? अगर हम एक लोकतांत्रिक देश में रहने का दावा करते हैं तो ये सवाल हमारे लिए अहम हैं।
जिनके पुत्र पर किसानों की साजिशन हत्या का आरोप है, जो पत्रकारिता को सरेआम गाली दे रहे हैं, उनके उस वीडियो पर इस स्तंभ में हम पहले भी अपना रोष जाहिर कर चुके हैं, जिसमें वे विधायक और सांसद होने के पहले क्या थे के बारे में बता रहे थे। वे बता रहे थे कि किस तरह से दो मिनट में किसान आंदोलन को खत्म किया जा सकता है। उस वीडियो के बाद भी अगर वो विधायक और सांसद बने हुए हैं तो हमारे लोकतंत्र पर खतरा मंडरा ही रहा है।
अजय कुमार मिश्रा अपना हर असंसदीय अवतार दिखा चुके हैं। फिर भी उनका नाम गृह मंत्रालय में चमक रहा है। कृषि कानून वापसी जैसा मुश्किल कदम उठाने वाली सरकार आखिर अपने मंत्रिमंडल में इस दागदार चेहरे को बर्दाश्त क्यों कर रही है? महज इसलिए कि उत्तर प्रदेश में जातिगत समीकरण का प्रबंधन करना है? वे सार्वजनिक तौर पर बोल चुके हैं कि मेरा रेकार्ड देख लो। उनकी रेकार्ड की फाइल अभी तक गृह मंत्रालय खोल क्यों नहीं पाया है। उनके उसी रेकार्ड के कारण ही तो उनसे जुड़े लोगों में इस तरह की कथित साजिश करने की हिम्मत आई होगी।
उत्तर प्रदेश की जमीन से राज्य और केंद्र सरकार अपराधियों के खिलाफ संदेश दे रही है। जरा याद कीजिए, ये वही उत्तर प्रदेश की सरकार है जो नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलन में आंदोलनकारियों की तस्वीर अपराधियों की तरह लखनऊ के चौराहे पर लगा रही थी। वहां का प्रशासन बड़े गर्व से दावा कर रहा था कि पीठ पर पड़े टूटे डंडों का खर्च भी आंदोलनकारियों से वसूला जाएगा।
कोरोना के समय पुलिस की लाठियों को विसंक्रमित करने की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब प्रचारित हुई थीं। आगामी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर हो रहीं जनसभाओं में सूबे से लेकर केंद्रीय नेता उत्तर प्रदेश के अपराध मुक्त होने का ही दावा कर रहे हैं।
जिन कानूनों को लेकर सत्ता ने माफी तक मांगी है उसके आंदोलनकारियों के साथ अगर ऐसी साजिश रची गई तो इसे सत्ता के अहंकार का प्रचंड रूप माना जाएगा। टेनी ने राष्ट्रीय मीडिया के साथ जो व्यवहार किया, आप उस पर चुप्पी साधेंगे तो फिर अंतरराष्ट्रीय मीडिया से होने वाली शर्मिंदगी के लिए तैयार रहिए। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता फिर किसी रिहाना के बोलने के खिलाफ प्रेस नोट लिखने के लिए तैयार रहें।
देश के केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जब पत्रकारिता पर हमला करें, सारी मर्यादाओं का उल्लंघन करें तो क्या सिर्फ ब्राह्मण वोटों के समीकरण साधने के लिए ही उन्हें बर्दाश्त किया जा रहा है? अगर सिर्फ वोट प्रबंधन के लिए टेनी को प्रश्रय दिया जा रहा है, तो साफ-साफ दिख रहा है कि सत्ता ने किसान आंदोलन से कोई सबक नहीं सीखा है। टेनी के पद पर बने रहने के सवाल पर मुख्तार अब्बास नकवी कहते हैं, विपक्ष को ज्ञान देने की जरूरत नहीं है। नकवी भूल रहे हैं कि लखीमपुर में चार किसानों और एक पत्रकार की मौत के मामले में अदालत को फटकार देने की जरूरत पड़ गई थी जिसका नतीजा है जांच दल की रिपोर्ट।
किसान आंदोलन ने पहले ही सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाया है। टेनी को मंत्रिमंडल में बनाए रख आप उस नुकसान को बढ़ाने पर आमादा हैं। इस पर आप इतनी देर से कदम उठाएंगे भी तो उसे दुरुस्त है, दुरुस्त है, दुरुस्त है साबित करने में आपके प्रवक्ताओं के पसीने छूट जाएंगे। हम इंतजार करेंगे उस शीर्षक का जो गृह मंत्रालय की गरिमा बहाल होने के बाद हम लगा पाएं। तब तक…