अमेरिका का राष्ट्रपति चुने जाने के बाद डोनाल्ड ट्रंप का एक पत्रकार को बेइज्जत करता हुआ वीडियो वायरल हुआ था तो हम सब चौंके थे। उत्तर प्रदेश में मानव रहित रेलवे क्रॉसिंग के पास रेलगाड़ी से स्कूली बस के टकराने से 13 बच्चों की मौत हो जाती है। दुखी अभिभावक जब प्रदर्शन करते हैं तो सूबे के भगवाधारी अगुआ कहते हैं कि नौटंकी मत करो। इसके पहले गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों की मौत पर कहा गया कि अगस्त में बच्चे मरते ही हैं। इसके साथ ही सरकार बहादुर ने तंज कसा कि बच्चा पैदा करके सरकार के भरोसे छोड़ देते हैं। बलात्कार पीड़ित से भाजपा नेता मिलने जाते हैं तो पीड़ित परिवार से कहा जाता है कि आपसे मिलने सांसद आए हैं, उन्हें धन्यवाद तो दो। राजद नेता यौन उत्पीड़न की पीड़िता के साथ फोटो लेते हैं, वीडियो बनाते हैं।
अफ्रीकी मूल के लोगों पर हिंसा पर सवाल उठे तो संघ विचारक ने पूरे दक्षिण भारतीय मूल के लोगों को याद दिलाया कि उत्तर भारतीय ‘गोरे’ कितने सहिष्णु तरीके से काले लोगों से घिरे हुए हैं। कहा गया कि अगर हम नस्लवादी होते तो तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के लोगों के साथ कैसे रहते। वहीं आम आदमी पार्टी के नेता सोमनाथ भारती पर आरोप लगे कि दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन में अफ्रीकी मूल की महिलाओं के सामने वे पुलिस और न्यायपालिका की भी भूमिका निभाने लगते हैं। अभी-अभी पहाड़ पर लगे जनता दरबार में एक मुख्यमंत्री का विधवा शिक्षिका के साथ सामंतों जैसा व्यवहार देखा गया। उत्तराखंड एक पहाड़ी इलाका है और नक्शे पर एक छोटा सूबा। पहाड़ अपने पानी और जवानी के लिए जाना जाता है। शरीर से कर्मठ और जुबान से निर्मल। लेकिन उस सूबे के मुख्यमंत्री का तानाशाह सा व्यवहार बताता है कि सत्ता के अहंकार ने आपको इतना ऊंचा कर दिया कि आप लोकतांत्रिक मूल्यों से नीचे गिर गए। आखिर यह जनता दरबार किस मानसिकता के तहत आयोजित किया जाता है? भारतीय लोकतंत्र सिर्फ चुनावी मैदानों में ही लोकशाही के चरित्र में दिखता है। लेकिन सत्ता पाते ही वह सामंती अहंकार का ताज पहन लेता है जो जनता दरबार में लोकतंत्र की लाज नहीं रखता। यह ‘दरबार’ शब्द ही सामंती चरित्र का है। हम आजादी के सात दशक बाद भी इन शब्दों से मुक्त नहीं हो पाए हैं। दरबार में जो जाएगा उसकी हैसियत नागिरक की नहीं होगी। भारत जैसे देश में इतनी संवैधानिक संस्थाओं के होने के बाद भी जनता दरबार का क्या तुक है। आपकी संस्थाएं जितनी कमजोर होंगी जनता दरबार में उतनी ज्यादा भीड़ होगी। यह दरबार बादशाह की बादशाहत के लिए होते हैं, नागरिकों के अधिकारों के लिए नहीं।
फरियादी को रावत डांटते हैं कि नौकरी करते वक्त क्या लिख के दिया था कि एक जगह नहीं करूंगी। फरियादी कहती है, यह भी नहीं कहा था कि वनवास भोगूंगी। मुख्यमंत्री के इस दुर्व्यवहार की चौतरफा निंदा होने और यह खबरें सामने आने के बाद कि उनकी पत्नी पिछले 22 साल से एक ही स्कूल में हैं, के बाद भी सत्ता को शर्म नहीं आई। इस तानाशाही रवैए को न्यायोचित ठहराते हुए भाजपा विधायक दावा करते हैं-मुख्यमंत्री ने कोई गलती नहीं की है। शिक्षिका ने ही गलत व्यवहार किया और अपनी सीमाएं लांघीं, इसलिए उन्होंने महिला पर मामूली कार्रवाई करने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री का पद उच्चतर है। इसलिए उनकी जांच कैसे की जा सकती है? लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए मुख्यमंत्री रावत एक नागरिक को प्रजा की मुद्रा में रहने को कहते हैं। एक मुख्यमंत्री के रूप में वे अपने अधिकारों को विस्तार देते हुए अन्य संस्थाओं को कुंद कर देते हैं। ‘जनता दरबार’ में वे ऐसे व्यवहार करते हैं जैसे व्यवस्थापिका से लेकर कार्यपालिका और न्यायपालिका तक वही हैं। मौके पर ही निलंबित करने से लेकर हिरासत में लेने तक का आदेश दे डाला। रावत की राजसी मुद्रा के बरक्स एक नागरिक की हिम्मत और खासियत देखिए। रावत कहते हैं, ‘टीचर हो न’, तो उन्हें गुरु की महिमा भी देखनी पड़ी। महिला ने कहा कि वह शिक्षिका है और उसका काम है सवाल करना, सिखाना। यानी अपनी बात को दृढ़ता से रख और सवाल-जवाब को आगे बढ़ा वह अपने शिक्षण धर्म का ही पालन कर रही है। ऐसा लगा जैसे, जनता दरबार में खड़ी एक गुरु खुद को बादशाह समझ रहे मुख्यमंत्री को समझा रही है कि तुमसे पहले जो तख्तनशीं था, उसे भी अपने खुदा होने का यकीं था।
रावत अगर लोकतंत्र की गरिमा धूमिल कर रहे हैं तो वह शिक्षिका इसी लोकतंत्र का उज्ज्वल पक्ष भी दिखा रही है। लोकतंत्र के दायरे में एक जनप्रतिनिधि का हाव-भाव लोकतांत्रिक होना चाहिए, यही बात वह शिक्षिका कह रही थी। भारतीय सभ्यता और संस्कृति में गुरु की अपनी महिमा है। शिक्षक रहे सर्वपल्ली राधाकृष्णन राष्टÑपति जैसे सर्वोच्च पद पर पहुंचे। एक बुनियादी सिद्धांत है कि शिक्षक सवाल करना सिखाएगा, राज्य के लिए बेहतर नागरिक तैयार करेगा। जिस व्यवस्था ने एक शिक्षक को राष्ट्रपति बनाया आज वही एक शिक्षिका का मुंह बंद कर रही है। रावत ने राजा का दरबार तो लगा लिया लेकिन यह भूल गए कि राजदरबार में भी गुरु की महिमा राजा से ऊंची होती थी। लेकिन राजा साहब आज गुरु की भूमिका को अपने मातहत के रूप में देख रहे हैं। आज इस शिक्षिका की भूमिका जनतंत्र की जरूरत को साबित कर रही है। यह जनतंत्र ही है जिसने जनता को नागरिक बनाकर उसके अंदर साहस भरा, उसे आधुनिक चेतना से लैस किया। इसी जनतंत्र से रावत जैसे जनप्रतिनिधि राजा बनने का साहस कर बैठते हैं तो यही एक महिला को इतना सशक्त बनाता है कि पति के मरने पर अकेले परिवार को चलाती है। आज सवाल वह पूछ रही है जिसे सामंती समाज में सबसे हाशिए पर रखा गया था। यह जनतंत्र का दिया एक महिला का सशक्तीकरण है कि पति के मर जाने पर अकेले परिवार को चलाती है, अपने बच्चों की खातिर सत्ता से टकराती है। जनतंत्र ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर नौकरी करने का, गुरु बनने का अधिकार दिया। आज एक महिला के पास सवाल पूछने की योग्यता भी है और यह चेतना भी कि सवाल पूछना उसका अधिकार है।
उत्तराखंड से वायरल हुआ वीडियो सामंती मानसिकता और लोकतांत्रिक चेतना के बीच टकराव है। अगर रावत का व्यवहार लोकतंत्र पर हावी सामंती सुर का धब्बा है तो वह स्त्री अपनी गुरु की भूमिका निभाते हुए उन्हें लोकतांत्रिक बहाली की चेतावनी भी दे रही है। अपने अहंकार में डूबी सरकार को शायद वे सुना गर्इं, ‘लाजिम है कि हम भी देखेंगे/वो दिन कि जिसका वादा है/जो लौह-ए-अजल में लिक्खा है/जब जुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां/रुई की तरह उड़ जाएंगे’। पांच साल के लिए तख्तनशीं को शायद याद न हो कि कल इन्हीं के सामने आपको हाथ जोड़ कर जाना है। तब आपका पर्वत जैसा यह अहंकार रुई के फाहों की तरह उड़ जाएगा। लोकतंत्र में सत्ता का ताज पहनने के बाद अगर आप बेलाज बादशाह बनेंगे तो जैसा राजा वैसी प्रजा का परिणाम भी भुगतेंगे। सबकी लाज बनी रहे, बची रहे।