G20 Summit 2023: इक्कीसवीं सदी ने अपने शुरुआती दशकों में ही बीसवीं सदी के बनाए ढांचे को पलटना शुरू कर दिया है। जिस वैश्विक संतुलन को दो ध्रुवीय, एक ध्रुवीय कहा जा रहा था, भारत जैसे देश के वसुधैव कुटुंबकम के घोष ने उसे बहु-पक्षीय बनाने की वकालत की है। भारत जब जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहा है तो 140 करोड़ भारतीय अतिथि देशों का स्वागत कर गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में जी-20 से जुड़े सम्मेलनों का आयोजन कर केंद्र सरकार ने इसकी मेजबानी पूरे 140 करोड़ लोगों को सौंप दी। जब पूरा विश्व जलवायु संकट से लेकर आर्थिक संकट से जूझ रहा है, रूस-यूक्रेन युद्ध पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है तब भारतीय नेतृत्व के प्रति दुनिया की उम्मीद भरी नजर वो माहौल बना रही है जो इक्कीसवीं सदी के आने वाले समय में वैश्विक शक्ति संतुलन का नक्शा बदल सकता है। वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की बदल रही भूमिका पर बेबाक बोल।
‘देवता दो प्रकार के होते हैं, एक रहस्यमय ईश्वर जिसके बारे में हम कुछ नहीं जानते, दूसरा वह ठोस शक्ति जिसके बारे में सब कुछ पता है।’
‘सेपियंस : मानव जाति का संक्षिप्त इतिहास’ के लेखक युवाल नोआ हरारी एक मौके पर जिस ठोस शक्ति की बात करते हैं उसकी अलग-अलग व्याख्या हो सकती है। आज जिस तरह से दुनिया बदल रही है, शक्ति व समृद्धि के नए समानार्थक शब्द निर्मित हो रहे हैं, उसमें एक अहम शब्द है जनसंख्या। पिछले दिनों जब खबर आई कि भारत, चीन को पछाड़ कर दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बनने की कतार में खड़ा है तो इस मुद्दे ने खास संदर्भ में एक बहस छेड़ दी।
इक्कीसवीं सदी के ‘पुनर्जागरण’ में जनसंख्या कोई नकारात्मक शब्द नहीं है। हाल के सालों में भारत की सरकार ने देश की जनसंख्या को विभिन्न वैश्विक मंचों से लेकर राष्ट्रीय निशान लाल किले के प्राचीर तक से सकारात्मक तरीके से देश की संपदा के रूप में लिया है। भारत के 140 करोड़ लोग बोलते ही भारतीय नेतृत्व की शक्ति का पलड़ा भारी दिखने लगता है।
भूखे देश से वैश्विक चुनौतियों को सुलझाने वाला देश बना भारत
आज से देश में जी-20 का शिखर सम्मेलन शुरू हो रहा है तो इस बार सही शब्दों में इन राष्ट्राध्यक्षों की मेजबानी उत्तर से लेकर दक्षिण तक, पूरब से लेकर पश्चिम तक के पूरे भारत की 140 करोड़ जनता कर रही है। जी-20 शिखर सम्मेलन को लेकर प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों अपने एक साक्षात्कार में कहा कि जिस भारत को अब तक सिर्फ एक बड़े बाजार के रूप में देखा जाता था वह अब वैश्विक चुनौतियों को सुलझाने वाले देश के रूप में देखा जा रहा है। लंबे समय तक, भारत को एक अरब से अधिक भूखे पेट वाले लोगों के देश के रूप में जाना जाता था। लेकिन, अब भारत को एक अरब से अधिक महत्त्वाकांक्षी मस्तिष्क, दो अरब से अधिक कुशल हाथों, करोड़ों युवाओं के देश के रूप में देखा जा रहा है।
जी-20 की शिखर बैठक के मद्देनजर प्रधानमंत्री के ये शब्द आने वाले भारत की तस्वीर है। औपनिवेशिक आजादी के बाद नब्बे के दशक में बदले समय में भारत की छवि दुनिया के सामने सबसे बड़े बाजार के रूप में तब्दील कर दी गई थी। विभिन्न वैश्विक मंचों पर भारत को सबसे बड़े उपभोक्ता बाजार के रूप में ही संबोधित किया जा रहा था। शीतल पेय से लेकर टीवी, फ्रिज, गाड़ी व विश्व सुंदरियों के सौंदर्य उत्पाद तक, भारत को दुनिया भर के उत्पादों के खपत केंद्र के रूप में देखा जा रहा था। यह एक संकीर्ण दौर में भारत पर थोपी गई एक संकीर्ण पहचान थी।
जब भारत की प्रकृति, संस्कृति व राजनीति की पहचान महज एक बाजार के रूप में बनाई जा रही थी उसी समय 1997 में पूर्वी एशिया के देश बड़े वित्तीय संकट से गुजरे।
इस संकट से निपटने के लिए एक आर्थिक मंच की स्थापना की गई जो आज जी-20 की शक्ल में है। कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूके और अमेरिका के वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक गवर्नरों ने जून 1999 में मुलाकात की। आर्थिक मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय संवाद और वैश्विक समन्वय के विस्तार का इरादा जताया गया। आज के समय में जी-20 दुनिया की बड़ी आर्थिक व्यवस्थाओं का समूह है।
जब छोटी जनसंख्या वाले देश खास भौगोलिक और ऐतिहासिक कारणों से भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश को महज बाजार मान कर चल रहे थे तब भारत हर वैश्विक मंच पर अपनी अलग राजनीतिक पहचान बना रहा था। अब वित्त की पहचान बदल चुकी है। वित्त टकसाल से निकलने वाली करंसी भर नहीं है जिस पर किसी देश के राष्ट्रीय प्रतीक छपे होते हैं।
अब वित्त वह देश है जहां की एक बड़ी जनसंख्या अपनी प्रकृति व संस्कृति के कारण कम उपभोग करती है तो जाहिर सी बात है कि इसके कार्बन पदचिह्न कम होंगे। यानी अब धरती बचाने की जिम्मेदारी में विकासशील देशों का पलड़ा भारी है। अब वित्त वह श्रम, बौद्धिक और कौशल शक्ति है जिसे लेकर भारतीय मूल के लोग पूरी दुनिया में राष्ट्रीय अध्यक्ष से लेकर वोट देने वाली जनता के रूप में दुनिया की राजनीति की शक्ल तय कर रहे हैं। वित्त घर से शुरू होनेवाली दयानतदारी है जो महामारी के समय में कनाडा से लेकर निकारागुआ, ब्राजील व अन्य देशों में वैक्सीन भेजती है। मुश्किल समय में युद्ध थोप कर फौज नहीं ‘वैक्सीन मैत्री’ का कारवां भेजा जाता है।
पापुआ गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने भारतीय प्रधानमंत्री के पांव छुए थे
पिछली मई में जापान में हुए जी-7 के शिखर सम्मेलन को याद करें। वहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पापुआ गिनी पहुंचे थे। हवाई अड्डे पर उतरते ही पापुआ गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने भारतीय प्रधानमंत्री के पांव छुए। भारतीय प्रतिनिधित्व के इस सम्मान के पीछे कोरोना के समय दिखाए सद्भाव का भी असर था।
मारापे ने कहा कि हम वैश्विक ‘पावरप्ले’ के शिकार हैं। मारापे ने भारतीय नेतृत्व को वह आवाज बताया जो उनके मुद्दों को उच्चतम स्तर पर पेश कर सकता है। उन्होंने भारत से वकील का किरदार निभाने की अपील की। आज के समय में वित्त वह छवि है जब भारत जैसे देश के मंच पर से उम्मीद की जाती है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के मसले पर कुछ सकारात्मक फैसला हो सके।
तेजी से बदलती दुनिया ने वित्त का वृत्त बदल दिया है। आज वित्तीय मंचों का सबसे बड़ा मसला पारिस्थितिकी चुनौती है। धरती से अकूत पैसा कमाया कथित विकसित देशों ने तो अब धरती को बचाने के लिए किन देशों को कितना पैसा खर्च करना चाहिए, अपने उपभोग में कितनी बड़ी कटौती करनी चाहिए यह सबसे बड़ा सवाल है। पर्यावरण संकट के इस गंभीर मसले पर अमीर देश आश्चर्यजनक दरिद्रता दिखा रहे हैं। उन देशों पर ज्यादा जिम्मेदारी थोपी जा रही है जिन्होंने धरती का सबसे कम नुकसान किया है।
ब्रिक्स में भारत अपना भविष्य देख रहा है
वित्त के बदले इसी वृत्त के केंद्र में अब ‘ब्रिक्स’ है। भारत जिस तरह ब्रिक्स में अपना भविष्य देख रहा है और इसे मजबूत बनाने में अपना योगदान दे रहा है उसका सकारात्मक नतीजा जल्द ही दिखेगा। ब्रिक्स से जुड़ने वाले देशों की संख्या जिस तरह बढ़ रही है वह आने वाले समय में राजनीतिक शक्ति का नया नक्शा तैयार कर सकता है।
कोविड संकट के दौरान पश्चिमी देशों पर आरोप लगे थे कि उन्होंने इस महामारी से बचाव के लिए बनी वैक्सीन की अपने स्वार्थ के लिए जमाखोरी की। कोरोना वह वैश्विक संकट था जिसके बाद वैश्विक शक्ति संतुलन के वर्तमान गठबंधनों पर सवाल उठने शुरू हुए और विकासशील देश अपनी जरूरतों व संसाधनों को लेकर जागरूक हुए।
आज जब दुनिया के सारे देश वित्तीय, आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं तो उन सबके पास अपना-अपना राष्ट्रवाद भी है। जाहिर सी बात है कि आने वाले समय में वैश्विक मंचों पर यह राष्ट्रवाद सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ा होगा, क्योंकि हर देश का राष्ट्रवाद उसकी भौगोलिक सीमा के बाद वहीं खत्म हो जाता है जहां से दूसरे देश का भूगोल और राष्ट्रवाद शुरू होता है। इस समस्या का समाधान भारत के जी-20 के शुभंकर में है-वसुधैव कुटुंबकम। भारत की वैश्विक छवि में वित्त वह वसुधा है जो सबको अपना कुटुंब मानती है।
भारत का वैश्विक मंचों पर संदेश- सबको एक साथ आना होगा
आज दुनिया के ज्यादातर देश महंगाई और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। वे इसे वैश्विक समस्या बता रहे हैं। कई देशों में वित्त और बेरोजगारी के संकट से निपटने के लिए सत्ता बदली लेकिन संकट ज्यों का त्यों है। देशों में सिर्फ नेतृत्व बदल रहा है, असल समाधान किसी के पास भी नहीं दिख रहा है। भारत ने बार-बार वैश्विक मंचों पर संदेश दिया है कि इन समस्याओं के समाधान के लिए सबको एक साथ आना होगा।
भारत के प्रधानमंत्री ने अपनी तरफ से एक संदेश दिया है। भारत की आबादी को महज एक बाजार नहीं मानने का संदेश। भारतीय नेतृत्व संदेश दे चुका है कि हम महज उपभोक्ता नहीं हैं, भीड़ नहीं हैं। हमारे जन सिर्फ संख्या नहीं समूह हैं। यह समूह है जी-140 करोड़। भू-राजनीति में भारत के भूगोल और राजनीति के साथ जी-140 करोड़ स्वागत कर रहे हैं मजबूत अर्थव्यवस्था वाले राष्ट्राध्यक्षों का। यह हमारा तीन दिनों का ऐसा राष्ट्रीय उत्सव बन चुका है जो आने वाले समय में अंतरराष्ट्रीय समस्याओं के समाधान का अहम हिस्सा होगा। आइए, हम जी-140 करोड़ महज बाजार की पहचान से निकल कर दुनिया को बदलने का औजार बनें।