दारू से दिल्लगी ही पंजाब की शान मानी जाती है। शेखी इस हद तक मारी जाती है कि ‘छड़ेयां दे दो ठिकाने, या ठेके या थाने’। केजरीवाल की प्रयोगशाला तो दिल्ली ही है। दारू पर जोश इस कदर रहा कि दिल्ली में ठेकों और थाने का गणित ही गड़बड़ा गया। आलम यह हो गया कि थाने कम पड़ गए और ठेके गली-गली। इस प्रयोग के नशे में भगवंत सिंह मान को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाने का जोखिम भी उठाया। अब अगर उस जोखिम पर हंगामा है बरपा तो शराबदिली से आरोप का जवाब देने के बजाय केजरीवाल द्वारा मान के महिमामंडन पर बेबाक बोल।
‘हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है’
शराब ऐसी शै है जिस पर हमने शायरों को कलम तोड़ते देखा है। किसी भी जबान की अदब से गुजरेंगे तो शराब पीने वाला, उसकी शान में लिखने वाला शायद यही मासूम तकरीर करेगा कि नशा शराब में होता तो नाचती बोतल। लेकिन, शुचिता संहिता बनाने वाली आम आदमी पार्टी के नेता मकबूल शायरों की मेहनत पर शराब फेरते हुए यह साबित करने में तुले हैं कि नशा तो शराब में ही होता है।
भगवंत मान पर संसद के अंदर भी शराब पीकर आने के आरोप लग चुके हैं
पिछले कुछ सालों में सोशल मीडिया पर न जाने कितनी बार ऐसे वीडियो वायरल हुए, जिसमें भगवंत मान नशा-नृत्य में झूमते हुए दिखे। यहां तक कि संसद के अंदर भी उन पर शराब पीकर आने के आरोप लगे। 2016 में आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता हरिंदर सिंह ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से अपनी सीट बदलने की अपील करते हुए खत लिखा और कहा कि वे भगवंत मान की बगल में नहीं बैठ सकते क्योंकि उनसे शराब की बू आती है। मान ने कई मौकों पर साबित किया कि नशा तो शराब में ही होता है।
शराब पीना संवैधानिक कदाचार में नहीं आता है। यह किसी की जीवनशैली का निजी मसला है। पंजाब में इसके पहले भी जो मुख्यमंत्री रहे, अपनी शराबनोशी के लिए जाने जाते रहे। लेकिन, उनकी यह आदत कभी सार्वजनिक बहस का हिस्सा नहीं बनी। उनके साथ कभी ऐसा हादसा नहीं हुआ जो अफवाह और खबर के बीच की भगदड़ बन जाए।
जब अमेरिका में शराबबंदी थी, तब राष्ट्रपति चर्चिल बेल्जियम दूतावास में जाकर पीते थे
दुनिया भर में कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों की शराबनोशी के बारे में खुल कर लिखा गया है। विंस्टन चर्चिल के बारे में कई किस्से चर्चित हैं। एक वक्त ऐसा था जब अमेरिका जैसा आधुनिक देश भी शराबबंदी के दायरे में था। उस वक्त राष्ट्रपति हर्बर्ट क्लार्क हूवर शराब पीने के लिए बेल्जियम के दूतावास में चले जाते थे क्योंकि उस परिसर में अमेरिकी कानून लागू नहीं होते थे।
दार्शनिक कार्ल मार्क्स से लेकर शायर मिर्जा गालिब की मकबूलियत में शराब का जिक्र एक खुशनुमा मिजाज के साथ है। लेकिन, जब नशा निजता की चौखट से बाहर निकल कर सार्वजनिक उच्छशृंखलता में बदल जाता है, वहीं से शराब की रूमानियत खत्म हो जाती है। बोरिस जानसन कोविड काल में ही निजता को तोड़ कर सार्वजनिक रूप से मनोरंजक आयोजन करने के दोषी पाए गए। बोरिस जानसन को प्रधानमंत्री के पद से हाथ धोना पड़ गया।
जनप्रतिनिधियों की शराबनोशी इतनी आम बात रही है तो मान के मुद्दे पर हंगामा है क्यों बरपा? वह इसलिए कि पंजाब में विपक्षी दल के नेता व अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ट्वीट करते हैं-सह-यात्रियों के हवाले से मीडिया में आई खबरों में कहा गया है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को लुफ्थांसा के विमान से उतारा गया क्योंकि वे बहुत नशे में थे और चलने की हालत में भी नहीं थे। इस रिपोर्ट ने पंजाबियों को दुनिया भर में शर्मिंदा किया है। हरियाणा के गृह व स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने इस घटना से जुड़े पत्रकारों के सवाल पर कहा कि आम आदमी पार्टी बनी ही पीने और पिलाने के लिए है।
जब सुखबीर सिंह बादल ट्विटर पर ये आरोप लगाते हैं तो विपक्ष के हाथ बड़ा मुद्दा लग जाता है। आम आदमी पार्टी के नेता भगवंत सिंह मान पंजाब की अगुआई कर रहे हैं। वह पंजाब, जो नशे को लेकर संवदेनशील क्षेत्र है। पंजाब का इलाका अपनी खास जीवनशैली के लिए जाना जाता रहा है।
हरित क्रांति के बाद वहां एक नवधनाढ्य वर्ग पैदा हुआ जिसमें खानपान को लेकर किसी तरह की वर्जना नहीं थी। वहां के हर तीसरे घर का बच्चा विदेश जाने लगा और कई तरह की संस्कृतियों का मिलन हुआ। सूबे में अन्य मादक पदार्थों के सेवन का चलन इतना बढ़ा जो आगे चलकर बड़ी सामाजिक समस्या बना और राजनीति के लिए मुद्दा।
आम आदमी पार्टी पंजाब को नशा-मुक्त करने के वादे के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी। तब तक भगवंत मान के नशे में रहने के आरोप सरेआम हो चुके थे। इन सबके बावजूद अरविंद केजरीवाल ने भगवंत मान को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया। 2019 में बरनाला की रैली में मान ने शराब छोड़ने का एलान किया था। केजरीवाल ने दावा किया कि हमने चुनाव के पहले सर्वेक्षण करवाया था, जिसमें 93.3 फीसद लोगों ने मुख्यमंत्री पद के चेहरे के लिए भगवंत सिंह मान को पसंद किया था।
हालांकि, आम आदमी पार्टी के लिए ‘सर्वेक्षण’ अफीम के नशे की तरह काम करता है। दिल्ली जीतने के पहले आम आदमी पार्टी ने सपना दिखाया था कि किसी भी इलाके में शराब के ठेके खोलने से पहले वहां की महिलाओं के बीच सर्वेक्षण करवाया जाएगा। महिलाओं की इजाजत के बाद ही मोहल्ले में ठेके खुलेंगे। लेकिन अरविंद केजरीवाल की विवादित आबकारी नीति ने दिल्ली के मोहल्लों को शराब के ठेकों से भर दिया।
93.3 फीसद लोगों की पसंद के बावजूद मान को सीएम बनाना जोखिम भरा काम था
कथित 93.3 फीसद लोगों की पसंद होने के बावजूद भगवंत मान को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना एक जोखिम भरा काम था। अरविंद केजरीवाल ने यह जोखिम उठाया। लुफ्थांसा विमानन कंपनी ने आधिकारिक तौर पर यही कहा कि देरी की वजह विमान बदलना था।
इसके बावजूद जर्मनी में विमान से उतारने वाली बात सोशल मीडिया पर वायरल है तो अरविंद केजरीवाल को खुद सामने आकर इसकी हकीकत बतानी चाहिए थी। उनके पास समय नहीं था तो राघव चड्ढा भी यह जिम्मेदारी पूरी कर सकते थे। लेकिन,केजरीवाल ने मामला सही है या गलत, यह बताने के बजाए मान का महिमामंडन किया।
केजरीवाल के मुताबिक पंजाब में पिछले छह महीने में जितना काम हुआ, उतना 75 सालों की सरकार ने नहीं किया। मान भी इस मुद्दे पर मौन हैं। अक्सर मौन को स्वीकृति मान लेने की प्रवृत्ति रही है।
यहां मुद्दा यह नहीं कि जर्मनी में लगे आरोप गलत हैं या सही। मुद्दा यह है कि केजरीवाल ने आगे आकर इसे खारिज नहीं किया। इस हंगामे के आगे एक बड़ा हंगामा पेश कर दिया। आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब विधानसभा में विश्वास प्रस्ताव पारित करने पर अड़ी है। इसकी अभी कोई जरूरत नहीं थी।
आम तौर पर विश्वास मत तब लिया जाता है जब ऐसा लगे कि सरकार के प्रति जनता या विधायकों का भरोसा नहीं रह गया। ऐसा नहीं होता है कि पार्टी के विधायक अचानक कहें कि बारिश हो गई, उमस कम हो गई चलो पकौड़े खाने के लिए विश्वास मत हासिल करने की पार्टी रख लेते हैं।
सरकार को कारण देना होता है कि वह विश्वास मत हासिल करने का प्रस्ताव क्यों ला रही है। या तो विपक्ष दावा करता है कि सरकार ने अपना विश्वास खो दिया है, या किसी मुद्दे से जनमत के संकट में आ जाने का अंदेशा होता है या फिर विधायकों के आंकड़ों के हिसाब से सदन का गणित बिगड़ गया हो। पंजाब विधानसभा में फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है। फिर एक दिन का विशेष सत्र बुलाने की खर्चीली कवायद क्यों?
आम आदमी पार्टी का इस समय सबसे बड़ा सपना राष्ट्रीय पार्टी बनना है। पंजाब विधानसभा ने इस सपने के करीब पहुंचाया भी है। अभी हिमाचल से लेकर गुजरात में केजरीवाल अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं। अगर आप इतने संवेदनशील मुद्दे को खारिज करेंगे तो आप पर सवाल उठेंगे ही।
आपने अपनी पीठ पर राजनीतिक शुचिता के बोझ को ढोने का वादा किया था। इसे अपनी पीठ पर रखते ही आप दिल्ली में ही बहुत जल्दी थक गए थे। जल्द ही आम आदमी पार्टी को शुद्धतावादी बनाए रखने की मांग करने वाले प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव जैसे संस्थापक सदस्यों के साथ राजनीतिक शुद्धता को भी पार्टी से विदा कर दिया। दिल्ली से लेकर पंजाब तक अनैतिकता के आरोपों पर झेप मिटाने के लिए विश्वास प्रस्ताव लाने की कवायद है। अपने विधायकों के विश्वास को जनता के विश्वास के रूप में दिखाने का यह स्वांग कितना कामयाब होगा यह देखना वक्त की बात है।