रगों में दौड़ते फिरने के
हम नहीं काइल
जब आंख ही से न टपका
तो फिर लहू क्या है
-मिर्जा गालिब
जब मौत होती है तो मरने वाले पर बात की जाती है। लेकिन, भारतीय राजनीति अब शोक-सभा में वैसे लोगों के प्रशस्ति-गान में मशगूल हो गई जो प्लास्टिक-युग के प्रतिनिधि हैं। इनकी प्लास्टिक के पन्नों की डिग्री के अंक किसी के आंसू और खून से नहीं धुलते। पटरी पर हादसे के बाद दिखे राजनीतिक हादसे पर बेबाक बोल।
उस मंजर को देख कर पत्थर भी खून के आंसू रो दिए। वहां कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्हें उसके बाद पानी में भी खून नजर आ रहा था, और कुछ ऐसे भी थे जिनकी आंख में शर्म का पानी सूख गया था।
हादसे की तस्वीरें विचलित करने वाली हैं, बच्चे और कमजोर दिल वाले इन्हें न देखें…रेल हादसे में मृतकों की तस्वीरें जिस वेबसाइट पर डाली गई है, वहां सरकार ने ये निर्देश जारी किए हैं। ये तस्वीरें उन लोगों के लिए जारी की गई हैं जिनके परिजन बालासोर के रेल हादसे में मारे गए। लेकिन, तस्वीरों से भी बात नहीं बन रही थी। जिस शव को तस्वीर देख कर किसी ने अपना बताया पता चला उसे कोई और अपना मान कर ले गया। अब इंतजार है डीएनए जांच का। ज्यादातर शवों की हालत ऐसी थी जिन्हें पहचानना मुश्किल था।
पटरी पर मृत मां-बाप पड़े थे और बगल में रो रहे बच्चे की भी जान निकल गई
पटरी पर मां-बाप पड़े हुए थे और बच्चा उनकी निर्जीव देह के पास रो रहा था। रोते-रोते बच्चे की भी मौत हो गई। एक वेबसाइट पर इस खबर के साथ कोई तस्वीर नहीं लगी है। लेकिन, इन शब्दों को पढ़ते हुए कुछ देर के लिए आपको अपने दिल की धड़कन रुकी हुई सी लगेगी, आपका मन कुछ और पढ़ने और देखने को नहीं करेगा। आंखें इतनी गर्म हो सकती हैं कि आप डर जाएं शायद आंसू की जगह रगों से खून न आ जाए।
लेकिन, यह हमारी-आपकी, आम जनता की बात है। अब सरकार के प्रतिनिधियों, मंत्री के आंख-कान किसी प्लास्टिक जैसे पदार्थ से बने होते हैं। खूब टिकाऊ। पटरियां खून से लाल हो गई, लेकिन पटरियों के जिम्मेदार मंत्रालय के अगुआ ने इन सबकी जिम्मेदारी लेनी जरूरी नहीं समझी। पद छोड़ने की पेशकश…यह तो हादसे के बाद हाल के दिनों तक सुने गए थे, लेकिन इस बार उस औपचारिकता की भी जरूरत महसूस नहीं हुई।
सवाल तो उठेगा कि मां-बाप के शव के पास रोते-रोते मर जाने वाले बच्चे की मौत का जिम्मेदार कौन है? ट्रेन पर चढ़ने से पहले बच्चे कितने उत्साहित होते हैं। घर से निकलने के पहले अपने पसंदीदा खिलौनों, और जिस टीवी पर कार्टून देखते हैं उसे भी भी बाय बोल कर जाते हैं। ट्रेन में चढ़ते ही बच्चा चंचल होता है और बोगी में शैतानी करने लगता है, सहयात्री थोड़ा दुलारते हैं, थोड़ा खीजते हैं और मां तंग आकर एलान करती है आगे से तुम्हें कभी ट्रेन में नहीं लाऊंगी।
इस धमकी से बच्चा थोड़ा परेशान होता है। कहता है, ‘सॉरी मम्मा, सॉरी मम्मा।’ और, जब उस बच्चे की रोते-रोते मौत होती है तो इस देश के कर्णधारों में से कोई उसे ‘सॉरी’ बोलने वाला नहीं है। कोई यह कहने वाला नहीं है कि इनकी जिम्मेदारी मैं लेता हूं। मैं अपने पद को छोड़ता हूं। भारतीय राजनीति की आंखों में कम से कम इतना पानी होने की मांग तो की जाती थी।
बच्चे को और जिंदगी मिली होती तो वह बड़ा होकर स्कूल की किताबों में लालबहादुर शास्त्री के बारे में पढ़ता। लालबहादुर शास्त्री, एक ऐसे रेल मंत्री हुए, जिन्होंने रेल हादसे के बाद नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए पद से इस्तीफा दे दिया था। नैतिक जिम्मेदारी…। इस शब्द के लिए भी स्कूल की किताबों में शायद इस तरह से लिखा जाएगा…बहुत समय पहले की बात है…भारत की राजनीति में नैतिक जिम्मेदारी होती थी। किसी को लगता था कि उसने अपनी जिम्मेदारी ठीक से नहीं निभाई वह अपने पद से इस्तीफा देता था। वह यह नहीं कहता था कि जब सिंधु सभ्यता नष्ट हुई, तब किसने इस्तीफा दिया था।
लालबहादुर शास्त्री…यह एक नाम नहीं है, एक बच्चे का संस्कार है
लालबहादुर शास्त्री…यह एक नाम नहीं है। यह एक बच्चे का वह संस्कार है जिसमें वह बड़े होते हुए ‘सॉरी’ और ‘थैंक्यू’ बोलना सीखता है। बच्चा कोई गलती करे तो बड़े सिखाते हैं कि इसके लिए दुखी हो, माफी मांगे। लालबहादुर शास्त्री वही माफी की तस्वीर हैं जो अब भारतीय राजनीति से पूरी तरह गायब हो रही है।
राजनीति तो जिम्मेदारी मुक्त हो गई है, इसलिए अब हमारे परिवार की बारी है कि लालबहादुर शास्त्री को कम से कम घरों में जिंदा रखें, उनके बारे में बताएं कि हां, यह हाड़-मांस का इंसान हिंदुस्तान की सियासत का हकीकत था। नहीं तो आने वाली पीढ़ी यकीन करना बंद कर देगी कि आजाद भारत में ऐसा भी कोई मंत्री हुआ था। घरों में जिंदा रखने की बात इसलिए कह रहा हूं कि पता नहीं कब स्कूलों के पाठ्यक्रम से लालबहादुर शास्त्री को ही गायब कर दिया जाएगा कि ये भी कोई पढ़ाने और बताने की चीज हैं। यह राजनीति के पाठ्यक्रम पर नैतिक बोझ सा है, जिसे जितना हल्का कर दिया जाए उतना अच्छा है।
रेल हादसों की विचलित करने वाली तस्वीरों के तुरंत बाद सरकार समर्थकों ने पूरे इंटरनेट को अश्विनी वैष्णव की तारीफी तस्वीरों से भर दिया। देखिए, देखिए, देखिए! इतने पढ़े-लिखे, आइआइटी की डिग्री वाले मंत्री कैसे दिन-रात हादसे की जगह पर डटे हुए हैं। तस्वीर के ‘आकस्मिक’ का दावा करते हुए। हादसा-स्थल से ‘आकस्मिक’ तस्वीरों की बाढ़ के बाद कोई मंत्री के इस्तीफे की मांग कैसे कर सकता है?
रही बात मंत्री जी की डिग्री की। रेल हादसे के बाद रेल मंत्री की डिग्रियों की नुमाइश हो रही है, देखिए कितने पढ़े-लिखे हैं। तो डिग्री और नैतिकता का कोई संबंध है क्या? चलिए, इसकी शुरुआत भी लालबहादुर शास्त्री से ही कर लेते हैं। लालबहादुर शास्त्री का मूल उपनाम वर्मा था, यानी लालबहादुर वर्मा। उन्हें शास्त्री की उपाधि अपनी शिक्षा के ही कारण मिली थी। काशी विद्यापीठ से स्नातक की डिग्री मिलने के बाद शास्त्री की उपाधि मिलती थी।
यह उस समय के मानक के अनुसार उच्च डिग्री थी। ऐसी डिग्री, जिसे परिवार और जातिगत कुलनाम से ज्यादा अहम समझा जाता था। तो, शिक्षा में ‘शास्त्री’ होने के बावजूद रेल हादसे के बाद लालबहादुर शास्त्री की डिग्री का हवाला नहीं दिया गया था कि इतने पढ़े-लिखे होने के बावजूद इस्तीफा क्यों दे रहे हैं।
अगर आपकी डिग्री, आपको नैतिक जिम्मेदारी लेने से रोकती है तो एक बार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान को भी अपने पाठ्यक्रम में संशोधन कर लेना चाहिए, ताकि राजनीति से नैतिकता को इसलिए नमस्कार न कर लिया जाए कि नेता जी के पास आइआइटी की डिग्री है। उच्च डिग्री अगर आपको इतना भी विनम्र न बना सकी, इतना भी नैतिक बल न दे सकी तो फिर वह समाज के लिए किस काम की?
आजादी के बाद के भीषण हादसों में से एक के होने के बाद जब आपकी प्रचार संस्था के सदस्य दूसरे मंत्रियों के रिपोर्ट कार्ड जारी करने लगते हैं तो फिर पिछले सत्तर साल और आपके अमृत-काल में फर्क ही क्या रह जाता है? आप तो सब कुछ बदलने के लिए आए थे, और अब बड़ी शान से कहा जा रहा है कि पिछले वाले ने इस्तीफा दिया था क्या? रेल मंत्रालय छोड़ने के बाद भी आपके पास दो मंत्रालय बचेंगे। लेकिन तीनों मंत्रालय पर काबिज रहने के लोभ में तो सिर्फ एक ही बात से इस्तीफा दिया जा सकता है, और वह है राजनीतिक नैतिकता।
तस्वीरों से आग्रह करके आपके पक्षकार आपको बचाने की कोशिश में हैं। लेकिन, अब जरा रेल मंत्रालय में प्रवेश के बाद एक बार अपने पुरखे का नाम और तस्वीर जरूर देखिएगा। लालबहादुर शास्त्री नैतिक मूल्य का जो पाठ पढ़ा गए हैं, उस कारण हर ऐसे हादसे के बाद उनकी तस्वीर ताजा हो जाती है। हर बार राजनीति में खत्म होती नैतिकता के बाद याद किया जाता है, एक थे लालबहादुर शास्त्री।
इसी राजनीतिक-स्मृति की वजह से रेल-हादसे के बाद नीतीश कुमार ने भी इस्तीफा दिया था, जिन्हें आज राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। रेल हादसों के बाद इस्तीफे की पेशकश करने वाले रेल-मंत्रियों की सूची भी है। इन सबके बीच, आज के रेल मंत्री जब रेल मंत्रालय में प्रवेश करेंगे, तो अपने पूर्ववर्तियों का नाम और तस्वीर देख कर यही कहेंगे-यह नया भारत है, यह नई रेलवे है।