भय क्या है? यह कहना बड़ा कठिन है। सवाल है कि भय है भी या नहीं, क्योंकि भय का कोई अस्तित्व नहीं होता। कोई साकार रूप नहीं होता। यह होता है बस। अंग्रेजी में कहें तो भय ‘इंटेंजिबल’ है। आशय यह कि इसे छुआ नहीं जा सकता। पर यह दिलचस्प है कि नहीं होते हुए भी भय होता है।
यह व्यक्ति को डराता है। जिस कारण को एक व्यक्ति भय कहता है, दूसरा उसमें आनंदित होता है! आमतौर पर कई लोग कीड़े-मकोड़ों से डरते हैं। सांप का नाम सुनकर ही जान निकल जाती है। अंधेरे में रस्सी को ही सांप समझ बैठते हैं और भाग खड़े होते हैं या उनकी चीख निकल जाती है। वहीं सपेरा इनसे खेलता हुआ प्रतीत होता है। सपेरे के बच्चे सांपों के साथ क्रीड़ा करते हैं!
चिंतक मानते हैं कि व्यक्ति की मानसिक, आत्मिक या शारीरिक हानि के विरुद्ध जो खड़ा होता है, वह भय के बाद की मनोस्थिति है। अपनों के अहित के विरुद्ध जो खड़ा है वह भी यही है। मृत्यु के कारण के विरुद्ध खड़ा भय सबसे बड़ा होता है। भय हर स्थिति में उपस्थित होता है। अनिष्ट में वह हमेशा रहता है। विकट परिस्थितियों में भय की उपस्थिति महसूस की जा सकती है।
भय से भरा हुआ व्यक्ति मरते दम तक संघर्ष करता है
जब हम कहते हैं कि भय नहीं है, तब वह साहस बनकर खड़ा होता है। तब फिर सवाल उठता है कि क्या ‘भय’ ही ‘साहस’ है? निर्भय या निर्भीक व्यक्ति को साहसी कहा जाता है। उनके भीतर भय नहीं होता, इसलिए वह साहसी कहलाता है। फिर ऐसा क्यों होता है कि भय से भरा हुआ व्यक्ति संकट की घड़ी में मरते दम तक संघर्ष करता है!
दरअसल, उसका संघर्ष उसके साहस का परिणाम होता है। साहस उसके भय के परिवर्तन की परिणति। जब बचने का कोई रास्ता न दिखे, तब विकट परिस्थितियों में व्यक्ति के मुख से निकलते हैं यह शब्द ‘अब जो होगा देखा जाएगा।’ उसके ये शब्द भय के साहस बनकर खड़े होने का उदाहरण है। ‘भय’ और ‘साहस’ को एक सिक्के के दो पहलू माना जा सकता है।
जीवन की कठिन परिस्थितियों में नियति एक अदृश्य सिक्का उछालती है जो व्यक्ति की तासीर के अनुरूप ‘चित’ या ‘पट’ गिरता है। तब वह व्यक्ति या तो भयभीत होकर भाग खड़ा होता है या फिर युद्ध के लिए साहस के साथ खड़ा हो जाता है। सवाल है कि क्या एक ही समय व्यक्ति के भीतर भय और साहस दोनों हो सकते हैं?
अक्सर भयभीत व्यक्ति साहस नहीं जुटा पाते और कभी ऐसा भी होता है कि साहसी व्यक्ति भी भयभीत हो जाते हैं। ‘भय बिनु प्रीत न होत गोसाईं। इसमें छिपा मर्म गहरा है। मर्मज्ञों ने इसकी व्याख्याएं की हैं। इसके अर्थ को ऐसा भी माना जा सकता है कि वह भय ही है जो प्रेम के लिए साहस बनकर खड़ा हो जाता है और प्रेम जैसे साहसिक कार्य कर पाता है।
भय कब साहस में बदलेगा? यह द्रव्य के वाष्प में बदलने जैसा मामला है। भिन्न द्रव्य के वाष्पीकरण का तापमान अलग-अलग होता है। इसलिए कई बार एक भयभीत व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में तुरंत अदम्य साहस का परिचय देता है और कोई मरते दम तक भयाक्रांत केवल चीखता रह जाता है। ऐसे व्यक्ति का संघर्ष दैहिक धरातल पर होता है, जबकि उसकी साहसिक चेतना शून्य रहती है।
आमतौर पर लोकप्रिय फिल्मों में खलनायक साहसी किरदार को प्रपंच रचकर भयभीत करने की कोशिश करता है। कभी-कभी कई जांबाजों को धूल चटाने वाला नायक कथानक की जरूरत के मुताबिक डर कर हथियार डाल देता है। उसका साहस भय में बदल जाता है। यह क्रिया पदार्थ के गलनांक के जैसा मामला है कि किस दबाव में कोई पदार्थ पिघलकर बिखर जाएगा।
विज्ञान के अनुसार यह दबाव अलग-अलग पदार्थ के लिए भिन्न होता है। हालांकि यह कतई जरूरी नहीं है कि किसी व्यक्ति का साहस भय में बदल ही जाए। आजकल भय की भक्ति का दौर चल रहा है। लोग भयभीत हैं। भय दिखाकर चालाक बाबा, ओझा और धर्म प्रचारक भक्तों की भीड़ जुटा रहे हैं। वे लोगों को दरिद्रता का भय, मृत्यु का भय, संतान न होने का भय, व्यापार में हानि का भय और न जाने कितने भय दिखाकर अपना भक्त बना रहे हैं। लोग डर की वजह से न केवल आस्था से जुड़ते हैं, बल्कि कुछ तथाकथित बाबा-बैरागियों के भक्ति में सब कुछ लुटाने को तैयार हो जाते हैं। लोगों के अंधविश्वास पर आधारित धारणाएं मजबूत होने के कई खमियाजा सामने आते रहे हैं।
भय पर आधारित ‘डिजिटल अरेस्ट’ वर्तमान की अधुनातन ठगी है। यानी इस तरह लूटने के लिए लोगों को पहले भयभीत ही किया जाता है और फिर उन्हें अपने मन-मुताबिक संचालित किया जाता है। लोगों का भय उन्हें मोबाइल की स्क्रीन से हटने नहीं देता। वे कई घंटे या फिर कई दिनों तक मोबाइल की कैद में जीते हैं। रोज कई लोग इसके शिकार हो रहे हैं।
सावधान रहने के जोर-शोर से प्रचार-प्रसार के बावजूद इन मामलों में कमी नहीं दिखाई देती। दरअसल, लोगों का अंदरूनी भय उन्हें चैतन्य नहीं होने दे रहा। वे लगातार भय में जी रहे हैं और ठगों की चल निकली है। भय-मुक्त प्रेम को ही निस्वार्थ प्रेम माना गया है। भय पर आधारित भक्ति निस्वार्थ-भक्ति नहीं हो सकती, क्योंकि निस्वार्थ भक्ति ही असल भक्ति है। लोगों की चैतन्य बुद्धि और जागृत मानसिक दशा से ही डर की दुकानों का कारोबार बंद होगा।