बहुत कम कलाकार ऐसे होते हैं जो अपनी आवाज के साथ सीधे आत्मा तक उतरने की खूबी रखते हैं। उस्ताद राशिद खान उनमें से ही एक थे। शास्त्रीय संगीत के सरताज के बारे में जिक्र किया जाए तो उसमें राशिद खान का नाम हमेशा शामिल रहेगा। उस्ताद राशिद खान नौ जनवरी को दुनिया से अलविदा कह गए। उनके जाने से दुनिया भर में गायिकी की एक मुकद्दस किताब बंद हो गई।

उत्तर प्रदेश के बदायूं में जन्मे उस्ताद राशिद खान ने अपना प्रारंभिक प्रशिक्षण अपने नाना उस्ताद निसार हुसैन खान (1909-1993) से प्राप्त किया। वे मियां तानसेन की 31वीं पीढ़ी हैं। राशिद खान ने अपना पहला संगीत कार्यक्रम ग्यारह साल की उम्र में दिया। वे रामपुर-सहसवान घराने से ताल्लुक रखते थे। इस घराने के संस्थापक उस्ताद इनायत हुसैन खान थे, जो राशिद के परदादा थे। उन्हें अपनी गायिकी के खास अंदाज के लिए जाना जाता था। राशिद खान को साल 2006 में ‘पद्मश्री’ और ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ जबकि 2022 में ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से नवाजा गया था।

उस्ताद राशिद खान को शास्त्रीय संगीत की दुनिया का सरताज कहा जाता था। उन्होंने अपनी बुलंद आवाज से देश ही नहीं, दुनिया भर में नाम कमाया। एक संगीतकार के अलावा राशिद खान मशहूर गायक भी रहे, उन्होंने ‘राज 3’, ‘माई नेम इज खान’, और ‘मंटो’ जैसी कई फिल्मों में के गानों में अपनी मधुर आवाज दी। शाहरुख खान की फिल्म ‘माई नेम इज खान’ के लोकप्रिय गाने ‘अल्लाह ही रहम’ को उस्ताद राशिद खान ने ही गाया था।

इतना ही नहीं शाहिद कपूर की ‘जब भी मेट’ का ‘आओगे जब तुम ओ साजना’ गाने को भी राशिद ने अपनी आवाज दी थी। कहा जाता है कि जाने-माने पंडित भीमसेन जोशी ने ने राशिद खान को ‘भारतीय संगीत का भविष्य’ बताया था। बचपन में उस्ताद राशिद खान को संगीत में थोड़ी बहुत दिलचस्पी थी, उन्हें निसार हुसैन खान और गुलाम मुस्तफा खान से गाने का प्रशिक्षण मिला था।

राशिद खान ने अपने नाना-नानी की तरह अपने विलम्बित ख्यालों में धीमी गति से विस्तार शामिल किया और सरगम और सरगम तानकारी (पैमाने पर खेल) के उपयोग में असाधारण विशेषज्ञता भी विकसित की। राशिद खान ने शुद्ध हिंदुस्तानी संगीत को हल्की संगीत शैलियों के साथ मिलाने का भी प्रयोग किया। उन्होंने सितारवादक शाहिद परवेज और अन्य के साथ जुगलबंदी भी की है। उनके शास्त्रीय गायन ने अनभिज्ञ लोगों को भी आकर्षित किया।

उन्हें कई मौकों पर बागेश्री, यमन, मुल्तानी, बिलासखानी तोड़ी, दरबारी, जोगकौंस आदि गाते हुए सुना गया और हर बार रागों के व्यक्तित्व का एक अलग कोण दिया। चाहे एकल गायन हो या भीमसेन जोशी जैसे महान लोगों के साथ युगल गीत। फिल्मी गीत, ठुमरी, गजल और भजन सब राशिद खान ने दिल से गाया।

उन्होंने विभिन्न घरानों की बारीकियों को मिलाकर एक अलग पहचान बनाई। एक सहज कलाकार, वह यह नहीं बता सका कि किस कारण से उसने एक विशेष वाक्यांश गाया, जिस तरह से उसने गाया। उनका मानना था कि खुदा गाता है, हम गाते हैं। संगीत की दुनिया के सरताज उस्ताद राशिद खान के निधन से रामपुर-सहसवान संगीत घराने का एक अध्याय समाप्त हो गया।