संसार में समय का महत्त्व बहुत से लोग जानते हैं। अक्सर बुजुर्ग और अनुभवी लोग, जिन्होंने स्वयं जवानी में काफी समय बर्बाद किया होता है, अपना उदाहरण देते हुए समय की उपयोगिता का उपदेश देते हैं, लेकिन कोई भी उदाहरण तब तक प्रभावी नहीं होता, जब तक आप उसको अपनाकर उदाहरण पेश न करें। आज की युवा पीढ़ी ही नहीं, घर की महिलाओं और बुजुर्गों के पास समय व्यतीत करने और वक्त काटने के कई संसाधन मौजूद हैं। हालांकि यह सब संसाधन समय की बर्बादी के अस्त्र-शस्त्र ही हैं। मोबाइल या कंप्यूटर पर निरुद्देश्य कुछ न कुछ खोजते या देखते रहना, ओटीटी चैनलों या वेबसाइटों और अन्य टीवी चैनलों पर कार्यक्रम, मोबाइल पर गेम की लत आदि ऐसे ही समय खपाने वाले साधन हो चुके हैं।
समय को गंवाना दरअसल जीवन के उन अवसरों को गंवाना है जो आपका भविष्य पलट सकते हैं। समय वह मूल्यवान संपत्ति है, जिसे गंवाने के बाद पूर्ति हम कभी भी नहीं कर सकते। विदेश में समय की पाबंदी पर बहुत महत्त्व दिया जाता है, जबकि हमारे देश में समय पर किसी काम को पूरा करने, कहीं पहुंचने को लेकर एक प्रकार की उदासीनता पाई जाती है। समय को लेकर आमतौर पर लापरवाही का बर्ताव देखा जाता है। अमूमन बैठकों या मीटिंग में देर से पहुंचना और काम को समय पर पूरा न करना सामान्य आदतें हैं, जो कर्मचारियों में देखी जा सकती हैं। सरकारों का रवैया भी इस संदर्भ में बहुत उपेक्षा से भरा हुआ है। जन सामान्य में कहावत है कि आखिर सरकारी काम है। सरकारी काम के बारे में माना जाता है कि चलताऊ रवैया और धीमी गति। ऐसे आरोप आम रहे हैं कि सुबह का मूल्यवान समय आमतौर पर कर्मचारी बातचीत, चाय-पानी और अखबार पढ़ने में व्यतीत कर देते हैं। हालांकि ऐसे कर्मचारियों के बीच ही कई लोग बेहद कर्मठ भी होते हैं।
समय को बचाने के लिए कई पुस्तकें ‘टाइम मैनेजमेंट’ यानी वक्त का प्रबंधन पर लिखी गई हैं। समय प्रबंधन के लिए कुछ लोग सलाह देते रहे हैं। मसलन समय को बचाने के लिए हमें पहले से ही रूपरेखा बना लेनी चाहिए। एक रात पहले ही सुबह संपन्न किए जाने वाले कार्यों की सूची बना लेनी चाहिए। एक-सी प्रकृति के कार्य एक साथ कर लेने चाहिए। जिस बहुउद्देश्यीय या बहुआयामी काम को कारपोरेट जगत में बहुत उपयोगी और अनिवार्य माना जाता है, उसको लेकर कुछ विद्वान नकारात्मक विचार रखते हैं। कई काम एक साथ करना व्यक्ति को एक चीज पर केंद्रित नहीं रहने देती और इससे उसकी एकाग्रता में कमी आती है। इससे हम लंबे और गंभीर काम नहीं कर सकते हैं। इस तरह एक साथ कई काम करने से विचार करने और सोचने-समझने की क्षमता या आइक्यू भी कम होता है।
समय की बर्बादी को कम करना है तो हमें फोन पर भी संक्षिप्त बातचीत करनी चाहिए। सीधे बातचीत के मूल मुद्दे पर आना चाहिए, न कि एक छोटी बात कहने के लिए लंबी भूमिका बनाते रहें। ध्यान रखने की जरूरत है कि दुनिया उनका ही ध्यान रखती है जो अपने समय का ध्यान रखते हैं और समय कभी सबका एक तरह नहीं रहता। कहा जाता है कि एक वक्त के बाद किसी के भी दिन फिरते हैं। तो क्या नैनो सेकंड की गणना करने वाली दुनिया में हमारे पास इतना समय है कि हम दस या बारह वर्ष या इससे ज्यादा का इंतजार किस्मत के भरोसे करते रहें। कवि मैथिलीशरण गुप्त ने लिखा था- ‘संसार में किसका समय है एक-सा रहता सदा, हैं निशि-दिवा-सी घूमती सर्वत्र विपदा-संपदा।’ यानी समय परिवर्तनशील है। वह बदलता रहता है। मगर समय उनका ही बदलता है जो इसको कर्म की ताकत से बदलने की चाहत रखते हैं। हाथ पर हाथ धरे भाग्यवादियों का समय कभी नहीं बदलता। समय को बदलने के लिए साहस भी चाहिए और दृढ़ संकल्प शक्ति भी। नियम और अनुशासन भी चाहिए।
इससे संबंधित एक अहम पहलू यह है कि समय के महत्त्व को न केवल हमें समझना होगा, बल्कि दूसरे के समय की कीमत भी पहचाननी होगी। कामकाजी पेशेवर, चिकित्सक, कलाकार और वकील आदि के पास समय की बहुत कमी होती है और इसे हमें व्यस्तता का अभिनय नहीं, उसकी मजबूरी समझ कर सम्मान करना चाहिए। हम जीवन का बहुत-सा हिस्सा व्यर्थ की बातों में गप्पें मारने, सोने और आलस में बर्बाद कर देते हैं। समय की अहमियत तब समझ में आती है, जब कुछ पल की देरी की वजह से हम कई बेहद अहम अवसर चूक जाते हैं। याद कर सकते हैं किसी खिलाड़ी के सेकंड के सौवें हिस्से से किसी पदक से चूक जाना। यह सब समय की महत्ता के उदाहरण हैं।
समय की वाणी और नब्ज की समझ भी सबको होनी चाहिए। उचित अवसर देख कर अपनी बात कहनी चाहिए। रहीम ने लिखा है- ‘अब दादुर वक्ता भए हमें पूछिए कौन?’ समय की यह समझ भी जरूरी है आजकल। समय ही है जो इंसान को महान और रंक दोनों बनाता है। कुछ लोग जब सफल नहीं होते हैं तो परिस्थितियों को कोसते रहते हैं। जबकि अपने समय प्रबंधन को ठीक करने की जरूरत है। हम समय को मुट्ठी में करें, उस पर राज करें, न कि उसके गुलाम बनें। उसके लिए हमें कामों को तेजी से निपटाना होगा। योजनाबद्ध काम करने होंगे।