आमतौर पर लोगों ने अपने गांव, कस्बे और शहर की सड़कों पर सुबह सूरज उगने से पहले भोर में कुछ युवाओं को तेज गति से दौड़ते हुए देखा होगा। खेत-खलिहानों में मेहनत करते किसानों और कारखानों की खट-खट चलती मशीनों के बीच बड़े ध्यान से अपने श्रम का हुनर बिखेरते मजदूर भी दिख जाते हैं। कलावंतों के रियाज और नृत्य साधना से वैसे लोग जरूर परिचित होंगे, जो इन विषयों से सरोकार रखते हैं। ये सब मौन साधक अपने-अपने हिस्से का संघर्ष जी रहे होते हैं।
जीवन की प्रक्रिया का हिस्सा बने आगे बढ़ रहे हैं। ये सब यही सोचते हैं कि काम को पूरा करना जरूरी है, इसका परिणाम जो भी होगा, देखा जाएगा। व्यक्ति के संघर्ष की भाषा मौन होती है। संघर्ष जीवन का शाश्वत सत्य होता है। सफलता रूपी ताले की एक मात्र चाबी संघर्ष ही है। एक खास बात यह भी है कि संघर्ष कभी शोर मचाकर नहीं किया जाता है और न ही उसके ढोल पीटे जाते हैं।
संघर्ष के बिना मनुष्य की बड़ी सफलता की कल्पना नहीं
जिस तरह चमक के बिना सितारे, महक के बिना फूल, पानी के बिना नदियां, तार के बिना सितार, उसी प्रकार संघर्ष के बिना मनुष्य की बड़ी सफलता की कल्पना नहीं की जा सकती है। संघर्ष ही वह कसौटी है, जिस पर तप कर किसी को भी कुंदन बनना है। संघर्ष व्यक्ति को कटु और मधुर, सभी प्रकार के अनुभव प्रदान करता है। अपने और पराए की पहचान भी कराता है। बड़े-बड़े योद्धा, कर्मवीर, सफल उद्यमी और राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी संघर्ष की उपज कहे जाते हैं। सिनेमा उद्योग के कई मशहूर कलाकारों की शुरूआती दौर में एक के बाद एक नाकाम फिल्में आईं, मगर उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। परिणाम बाद में लोगों ने खुद देखा कि बाद में वही फिल्म जगत के चमकते सितारे बने। ऐसे अनेकानेक उदाहरण हमें अपने आसपास भी मिल जाएंगे।
कुछ पाने की चाह से नहीं होती सेवा, दिखावा करना जरूरी नहीं
आजकल की फटाफट भागती और रेडीमेड होती जा रही जिंदगी में रातों रात मशहूर सितारा बनने, अमीर होने और दुनिया को मुट्ठी में करने के सपने देखने वालों की भरमार है। हालांकि बिना मेहनत के इस तरह उड़ान भरना एक दिवास्वप्न ही कहा जाएगा। सोशल मीडिया और यूट्यूब के दौर में कुछ ऐसे घटनाएं सामने भी आई हैं कि कोई अचानक ही मशहूर हो गया। मगर यह भी संभव है कि किसी ईमानदार यूट्यूबर की संघर्ष गाथा कुछ तीव्र रही होगी। हमें अपने भविष्य का रास्ता चुनकर समर्पण भाव के साथ लग जाना चाहिए। फिर कोई कुछ भी कहे, निरंतर लक्ष्य प्राप्ति तक रुकना नहीं चाहिए।
सफलता मचाती है शोर
वर्तमान दौर में देश का बड़ा वर्ग दिग्भ्रमित-सा नजर आ रहा है। उसको नहीं पता कि क्या करना है। कई लोग दूसरों के पीछे लगकर अपना समय और श्रम दोनों व्यर्थ में गंवाते देखे जा सकते हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली में दसवीं-बारहवीं के स्तर पर भविष्य की पढ़ाई के बारे में सलाह देने वाले और अच्छी दिशा दिखाने वालों की बड़ी आवश्यकता है। बच्चों की योग्यता, क्षमता, अभिरुचि और संसाधनों के लिहाज से उचित करिअर का चुनाव बेहतर चुनाव हो सकता है। शुरूआती प्रशिक्षण गरीब और मध्यम वर्गीय युवाओं के लिए संजीवनी बन सकती है। स्वरोजगार के क्षेत्र में आने के लिए भी पर्याप्त प्रशिक्षण और अनुभव की जरूरत है। इतना तय हो होने के बाद बारी आती है व्यक्ति के दमखम, धैर्य, लगन और परिश्रम की। यही संघर्ष का काल होता है। समय, परिस्थिति और नियति किसी के संघर्ष को छोटा या बड़ा कर सकती हैं, पर डिगा नहीं सकते। व्यक्ति को निरंतर तपस्या में लीन रहना होगा। गंगा का कल-कल निनाद वही सुनेगा, जो वर्षों संघर्ष-साधना में लीन रहा हो।
जुबान पर रखें अपना कंट्रोल, बना बनाया काम बिगड़ने का होता है डर
किसी विचारक ने कहा है कि सफलता शोर मचाकर आती है, पर उसकी तैयारी मौन साधकर की जाती है। यहां पर आत्मावलोकन या अपने प्रयत्नों की समीक्षा भी बहुत जरूरी हो जाती है। हमें यह जानने के लिए उत्सुक होना चाहिए कि हमारे प्रयास में कमी कहां पर रह गई। सीखने के लिए सदैव तत्पर रहने की जरूरत है। सफल लोगों से संवाद करना और मार्गदर्शन लेते रहना चाहिए। अपने अंदर सकारात्मक ऊर्जा कम न होने देना चाहिए। हम दूसरों की प्रगति पर ईर्ष्यालु न हो जाएं, यह ध्यान रहे तो हम अपना ही भला करेंगे। अपने आपको संयत रखना प्राथमिक कसौटी होना चाहिए।
पढ़नी चाहिए सकारात्मक उर्जा की किताबें
ध्यान लगा कर कुछ बेहतर रचनाएं पढ़ने से व्यक्ति की सकारात्मक ऊर्जा और कर्मगति दोनों में आशातीत वृद्धि हो सकती है। अपनी मानसिक अवस्था के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना जरूरी है। कहा भी गया है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन और आत्मा का निवास होता है। हम योग, व्यायाम और खेलकूद से स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं। पौष्टिक आहार नियमित रूप से लेते रहना और अपनी नींद का भी ध्यान रखना बहुत सारी दिक्कतों से बचा सकता है। एक निश्चित दिनचर्या और छोटे-छोटे लक्ष्य हमें बड़ी सफलता के द्वार तक ले जाएंगे।
बदलते मौसम से तय होता है जीवन, रंगों की प्रकृति से समझा जा सकता है सत्ता परिवर्तन
हमारा यह मौन संघर्ष जब सफलता के सोपान चढ़ेगा, तब उसका नाद हम आसानी से सुन सकते हैं। यत्र-तत्र-सर्वत्र जय-जयकार होती है। स्वागत और अभिनंदन के कार्यक्रम रखे जाते हैं और विरुदावलियां गाई जाती हैं। यही मौन संघर्ष का मुखरित नाद होता है। जीवन को सही दशा और दिशा में रखने के लिए मौन संघर्ष बहुत जरूरी है। हम किसी योजना पर काम करते समय बहुत अधिक बोलने से बचें और हमारा पूरा ध्यान उसकी पूर्णता की ओर ले जाने पर रहे, तो कोई कारण नहीं कि हम अपने रास्ते और मंजिल को लेकर निश्चिंत हो सकते हैं।