इस ब्रह्मांड में कुछ भी ऐसा नहीं है, जो संपूर्ण हो। चल-अचल, सजीव-निर्जीव-हर रचना में कोई न कोई खामी है और किसी न किसी मायने में हर वस्तु, व्यक्ति, जीव और परिस्थिति अधूरी या कमजोर है। फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि हमारे व्यक्तित्व, कार्यक्षमता, बौद्धिक-शारीरिक क्षमता या स्वभाव में कोई कमी न हो? इसलिए हमें अपनी कमजोरियों को लेकर विचलित, दुखी या निराश होने के बजाय इनको पहचानना चाहिए और इनके प्रति सहज रहते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ आगे की कार्ययोजना बनानी चाहिए।
आत्मविश्वासी बनने के बारे में सबसे गलत धारणा यह है कि निडर होकर जीना, जबकि आत्मविश्वास की वास्तविक परिभाषा इसके बिल्कुल विपरीत है। इसका मतलब है हम अपने लिए महत्त्वपूर्ण और मायने रखने वाले कार्याें को करते समय अपने भीतर की कमजोरियों एवं डर के साथ आगे बढ़ने को तैयार हैं। किसी बात को लेकर जब हमारे भीतर संशय हो और फिर भी हम आगे बढ़ने को तैयार हों तो इससे हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है, लेकिन अगर हम केवल वही काम करेंगे, जिसके बारे में हम आश्वस्त हैं तो हमारा आत्मविश्वास कभी पूर्व स्तर से आगे नहीं बढ़ सकता।
परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए
अगर लगातार बेचैनी महसूस कर रहे हैं, ठीक से नींद नहीं आ रही, दिमाग में बेलगाम विचार दौड़ रहे हैं तो इस स्थिति के जिम्मेदार हम खुद हैं। हम अपनी कमजोरी को नहीं पहचानते, इसलिए अपनी क्षमता से ज्यादा काम या जिम्मेदारियां अपने सिर पर ले लेते हैं। जब हम पर क्षमता से ज्यादा काम या जिम्मेदारियां आ जाती हैं तो तनाव होता है। इससे चिड़चिड़ापन गुस्सा या उदासी हो सकती है। नतीजतन, हमारी कार्य क्षमता पहले से भी कम हो जाती है। परिस्थितियों को अपने ऊपर हावी नहीं होने देना चाहिए। हम खुद ही अपनी परिस्थितियों को बदल सकते हैं।
हाल ही करिअर उपलब्धि सम्मान जीतने वाले अभिनेता-निर्देशक जैकी चान का कहना है कि जिंदगी हमें हराएगी, लेकिन उससे मुकाबला करना जरूरी है। हमारी पीड़ा और कमजोरियां कुछ कहने की कोशिश करती हैं। इनको समझने की कोशिश करना चाहिए। महत्त्वपूर्ण यह है कि हम इनकी आवाज को कितना समझते हैं और उस पर कितनी और कैसी प्रतिक्रिया देते हैं। अपनी कमजोरी से पार पाने के लिए हमें भावनात्मक शक्ति का प्रयोग करना होगा। भावनात्मक शक्ति का अर्थ कठिन अनुभवों या अहसासों से छुटकारा पाना नहीं, बल्कि उनके प्रति अपनी स्वस्थ प्रतिक्रिया देना है।
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हमें अपनी भावनाओं से ज्यादा एकाग्रता पर ध्यान देने की जरूरत है। भावनाएं हमारे प्रत्यक्ष नियंत्रण में नहीं होतीं, लेकिन हमें कहां ध्यान देना है, यह बात हमारे हाथ में है। भावनाओं पर जबरन नियंत्रण करना यानी तकलीफ को बढ़ाना। अगर हम भावनात्मक रूप से मजबूत बनना चाहते हैं तो अपनी भावनाओं को महत्त्व देना चाहिए और ध्यान को नियंत्रित करना चाहिए। हम यह पहचान सकते हैं कि हमारी कमजोरी या हमारा डर हमें अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने में किस तरह से मदद करता है या पीछे धकेलता है।
चर्चित पुस्तक ‘वाइ हैज नो बडी टोल्ड मी दिस बिफोर’ में जूली स्मिथ ने इस संदर्भ में बहुत गहरी बात कही है। उन्होंने लिखा है-आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि हम अपनी कमजोरी से दोस्ती करें, क्योंकि यह कुछ समय के लिए आत्मविश्वास के बिना रहने का एकमात्र तरीका है। आत्मविश्वास तभी बढ़ सकता है, जब हम इसके बिना रहने को तैयार हैं या जब हम डर के साए में कदम रख सकें। यही साहस हमारे आत्मविश्वास को जमीन से ऊपर उठाता है। साहस पहले आता है, आत्मविश्वास उसके बाद। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें खुद को परेशान करने का जोखिम उठाना है।
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आपकी कमजोरियां हमारी गोपनीयता सूची में सबसे ऊपर होनी चाहिए। व्यवहार विशेषज्ञ कहते हैं लोगों से अपनी तकलीफें और कमजोरी कहने की आदत नहीं डालें। किसी से ऐसा न कहें कि हम बीमार रहते हैं और भीतर से टूट चुके हैं, न ही किसी से अपनी विपरीत परिस्थितियों का जिक्र करें। अपने पुराने दुखों और संघर्षों की वजह से खुद को उदास और चिड़चिड़ा नहीं बनाना चाहिए। अपनी इच्छाओं और कमजोरी को पहचानना शुरू कर दिया जाए तो अपनी ऊर्जा का बेहतर इस्तेमाल किया जा सकेगा। खुद को वैसे ही स्वीकार करना चाहिए, जैसे हम हैं।
अपने साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, जैसा कि हम दूसरों के साथ करते हैं। अपने हर पहलू को स्वीकार करना सीखने से हम खुद के प्रति नरम और सकारात्मक हो जाते हैं। जब हम अपनी नकारात्मक भावनाओं और कमजोरी को कोई अनहोनी या डरने वाली बात मानना बंद कर देते हैं तो ये चीजें हमें ज्यादा निराश नहीं करतीं। फिर हमें झूठा दिखावा नहीं करना पड़ता कि हमारी जिंदगी संपूर्ण और समृद्ध है।
मनोविज्ञानी कहते हैं कि सावधानी से मनन करें और दर्ज करें कि हमारे जीवन के कौन से पहलू हमारे लिए निर्धारित सुविधा के दायरे में आ सकते हैं और कौन से कार्य चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं। इन्हीं के साथ अपनी शक्तियों और कमजोरियों को भी दर्ज करने की कोशिश करें। इससे सब कुछ आईने की तरह हमारे सामने होगा। जब हम आत्मविश्वास जगाने की कोशिश कर रहे होते हैं तो यह आत्मअवलोकन और आत्मस्वीकृति हमारी मदद करती है। यह परीक्षण हमारे व्यवहार और स्वभाव में संतुलन बनाने वाला कार्य होता है, जो हमेशा आसान नहीं लगता, लेकिन हमारी राह आसान कर देता है। एक बार पीछे हटने और एक बार अपनी कमियों को पूरा करने की क्षमता नवनिर्माण करने में मदद करती है।