दुख एक ज्वार की तरह जीवन में आता है, जिसमें मन का सारा उल्लास टूटे तिनकों की तरह बह जाता है। उदासी मन पर कितने दिन हावी रहेगी, यह दो बातों पर निर्भर करता है। एक दुख की तीव्रता क्या है, दूसरा इससे बाहर निकलने के लिए कोई कितना प्रयास करता है। दोनों ही बातों में समय लगता है, जैसे कि कोई भी फल स्वाभाविक रूप से पकता है। कहा जाता है कि समय कैसा भी हो, एक अध्यापक की तरह हमेशा कुछ न कुछ पाठ पढ़ा ही जाता है। दुख अगर उदासी के पारावार में डुबो दे रहा है, तो गहराई के दर्शन भी करा देता है। गंभीर और उदास लोगों ने जीवन को जितनी अच्छी तरह से समझा है, उतना खुद में मग्न और सुखी व्यक्तियों ने कभी नहीं।
जीवन मात्र सुख और भोगों में डुबा देने के लिए नहीं है। कोलाहल से तनिक परे हटकर, मेले से थोड़ी दूरी बना कर इस जीवन की सार्थकता या निरर्थकता पर विचार करने का सामर्थ्य उदास लोगों के जिम्मे आ गया। यह अपने आप में एक विशिष्ट गुण है। रास-रंग में डूबा रहने वाला व्यक्ति कभी दार्शनिक नहीं होता। उदास लोगों के चेहरे पर गंभीरता का सौंदर्य दमकने लगता है। उदास आंखों में जितनी गहराई होती है, उतनी कहीं भी नहीं।
उदास लोगों के पास प्रफुल्लित लोगों की तुलना में बहुत कुछ होता है, जो सुंदर है, प्रेरणादायक है और चुंबकीय है। उदास लोगों के मन में एक विशेष प्रकार की गंभीरता पकने लगती है।
वे मौके-बेमौके अनावश्यक बोलना पसंद नहीं करते। वे निष्प्रयोजन वृथा बात कभी नहीं कहते। उनकी ऊर्जा एक विशेष चिंतन प्रवाह की ओर चलायमान होने लगती है। उदास व्यक्तियों को मौन रहना, अपने दुख के साथ रहना, शोक मनाते रहना पसंद होता है। वे अपने आसपास की भीड़ को देखकर मनन करते रहते हैं कि ये इतने प्रसन्न क्यों हैं! सभी धारा के साथ एक दिशा में बहते जा रहे हों, जिनके लिए प्रसन्नता के मानक एक समान हों, उनमें कोई ऐसा हो जो धारा के विपरीत सोच सके। ऐसे लोगों में एक विरक्ति का भाव उपजने लगता है, उनका चिंतन गहराने लगता है।
सभी क्रिया-कलापों को दूर से निरीक्षण करना है पसंद
हालांकि उदासी की अपेक्षा कोई नहीं करता। करना भी नहीं चाहिए। यह कोई उचित और आकर्षक ठहराने वाली परिस्थिति नहीं है कि दुख या उदासी कोई महान चीज है। मगर एक भाव जरूर है, जो व्यक्तित्व को, जीवन को प्रभावित करता है। दरअसल, दुख उदासी लाता है तो अंतर्मुखी भी बना देता है। यह दुख का सबसे बड़ा उपहार है। दुनिया में जितने भी विचारक या दार्शनिक हुए हैं, वे सब अंतर्मुखी रहे हैं। प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात बचपन से ही गंभीर थे। वे अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेलना नहीं, बल्कि उन्हें चुपचाप देखना, उनके क्रिया-कलापों को दूर से निरीक्षण करना पसंद करते थे। उन्होंने एक बहुत सुंदर बात कही है, ‘कभी-कभी आप दीवारें दूसरों को दूर रखने के लिए खड़ी नहीं करते, बल्कि इसलिए खड़ी करते हैं कि आप यह देखना चाहते हैं कि इन्हें कौन तोड़ने की कोशिश करता है।’ अंतर्मुखी होना कुछ यों है कि नीरवता में प्रकृति की झांझर सुनने का प्रयास करना।
एक बहुत सुंदर कहावत है कि टूटे हुए लोगों ने दुनिया को सबसे अधिक सुंदर बनाने का प्रयास किया है। इसका एक विशेष कारण भी है। टूटे हुए लोगों के हृदय में करुणा के अंकुर फूट पड़ते हैं। उन्हें अपने जैसे दुखी लोगों के साथ एक बंधुत्व का अनुभव होता है। साझा दुख से बढ़कर आसंजक कुछ भी नहीं। सुख स्वार्थी बना सकता है, दुख निस्वार्थ होने की ओर प्रेरित करता है। जो प्रफुल्लित है, सुखी है, स्वयं में मगन है, उसके पास दूसरों का दुख देखने का समय कहां? और अगर देख भी लिया तो उसकी तीव्रता अनुभव करने लायक संवेदना कहां? जाके पैर न फटे बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई। करुणा एक शक्तिशाली संवेदना है, जो यह भाव देती है कि जैसे मैं दुखी रहा, वैसे दूसरों को दुखी नहीं रहने दूंगा। यह हृदय में सेवा की इच्छा को पल्लवित करती है।
उदासी का चुंबकत्व
उदास लोगों के पास एक विचित्र प्रकार का चुंबकत्व आ जाता है। उनकी गंभीरता आकर्षित करती है। उनका चिंतन प्रवाह दार्शनिक हो जाता है, जिसमें गोते लगाने से कुछ बेहद संघनित तात्त्विक दर्शन के मोती प्राप्त हो जाते हैं। हम अगर ऐसे लोगों के साथ थोड़ी देर बैठेंगे, तो पाएंगे कि जाने कितने घंटों के घोर चिंतन के बाद जो नवनीत उनके पास इकट्ठा हुआ है, वह कितना समृद्ध है, मूल्यवान है। उनके शब्दों के अर्थ कितने गहरे होते हैं। उनके जीवन के अनुभव का सारा रस उनकी वाणी को सराबोर कर देता है।
दुनिया मेरे आगे: उम्मीदों की जिंदगी, निराशा के बीच आशावान होना
यहां यह भी स्पष्ट कर देना उचित होगा कि जिन लोगों ने दुख सहा, उससे लड़ाई लड़ी, ईश्वर से दुखी होकर प्रश्न पूछे, स्वयं ही उत्तर खोजने की दिशा में चल दिए, वे उदास थे, दुख को समझने की चुनौती उठाने वाले लोग थे, अवसादी या मानसिक रोगी नहीं। अगर अवसाद या निराशा उनके जीवन में आई होगी तो उन्हें कमजोर नहीं बना सकी होगी। थोड़े दिनों में उन्हें इन बादलों के पार देखना पड़ा होगा। दुख तोड़ देता है तो हताशा जन्म लेती है, वहीं दुख कुछ लोगों के जीवन में एक फीनिक्स पक्षी की तरह आता है, वे शून्य पर सिमट जाएं तो भी पुनर्जीवित होते हैं, और अच्छे से लड़ाई लड़ने के लिए, दुनिया को कुछ देकर जाने के लिए। प्रसिद्ध विचारक विक्टर ह्यूगो ने एक सुंदर बात कही है- ‘मेलनकली इज द हैप्पीनेस आफ बीइंग सैड।’ मतलब उदासी दुखी होने का सुख है।