कमलेश भारतीय
अभी कल तक वह बड़े-बड़े नेताओं के रंगीन पोस्टर चिपकाने वाले जोशीले पार्टी कार्यकर्ताओं की गिनती में आता था। कब वह उन नासमझ किस्म के कार्यकर्ताओं की भीड़ में से निकल कर उनमें आ मिला, जो झंडा उठाए दूसरों को नारे लगाने के लिए उकसाते रहते हैं, कुछ पता ही नहीं चला। और कब वह झंडा उठाए, नारे लगाते-लगाते वह सबसे आगे आ निकला और बाकी सब उसे नेता मान कर उसके इशारों का इंतजार करने लगे, कुछ मालूम न हो पाया! कब उसके इर्द-गिर्द ईमानदारी, सत्यता, सादगी और भलमनसाहत जैसे शब्दों को जोड़ कर, कहानियां गढ़ कर एक प्रभामंडल बना दिया गया, उसे खुद इन सबकी खबर कतई नहीं लगी!
इस सबकी खबर अर्से बाद तब लगी, जब उसे आने वाले विधानसभा के चुनाव की तैयारियां करने की हिदायत दी गई! इलाके से उसके नाम की सिफारिश जोरदार ढंग से ऊपर पहुंची! और धीरे-धीरे वह बदल गया। उसकी रोजमर्रा की जिंदगी बदल गई। कहीं घेराव, कहीं प्रदर्शन, कहीं धरना तो कहीं उद्घाटन। यहां मोर्चा, वहां भाषण। इलाके भर में नित नई हलचल, नित नई गहमागहमी! एक के बाद एक वह राजनीति की सीढ़ियां फलांगने में इतना मग्न हो गया कि जिस घर का वह मुखिया था, उसी घर में क्या हो रहा है, उसी की सुध नहीं ले पाया। उसका अपना घर किन हालात में घिर गया है, किस भंवर में डोल रहा है, जान ही नहीं पाया। जब मालूम हुआ, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
एक समारोह में मुख्यमंत्री आने वाले थे। वह पार्टी के सैकड़ों कार्यकर्ताओं के साथ काले झंडे उठाए उनके विरुद्ध प्रदर्शन की तैयारी में था। तभी डीएसपी उसके कंधे पर आत्मीयता का बोझ डाल उसे एक तरफ ले गया और रहस्यभरे अंदाज में पूछा था- ‘अपने छोटे भाई के बारे में कुछ मालूम है आपको?’ ‘क्या बात है? क्या मामला है? क्या किया है उसने?’ ‘किरायेदारनी के इश्क में गिरफ्तार है। अगर यही हाल रहा, तो कुछ ही दिनों में हम गिरफ्तार कर लेंगे उसे। समझाइए उसे। हमें शर्म आती है कि वह आप जैसे लोकप्रिय नेता का भाई है। वह आपके नाम पर धब्बा है।’
‘कैसा मामला? कैसी गिरफ्तारी? आप मुझे उलझना चाहते हैं, ताकि मैं यहां से अपने कार्यकर्ताओं को लेकर हट जाऊं और मुख्यमंत्री महोदय आराम से अपनी भड़ास निकाल कर जा सकें। जाते-जाते आपकी पीठ थपथपाते जाएं! मैं ऐसा हर्गिज…’‘मेरे भाई, मेरी बात तो सुन लो। हम आपकी नेतागीरी की कद्र करते हैं। हमें मालूम है कि कल आप ही मुख्यमंत्री की अगुआई किया करेंगे। इसलिए कोई ध्यान नहीं दे रहे, वर्ना आपके विरोधी रोज नई शिकायत की अर्जी टिका जाते हैं आपके भाई के खिलाफ। कल अखबारों में अगर यह खबर आ गई कि तीन बच्चों की मां नौजवान प्रेमी के साथ गिरफ्तार, तो हमें बुरा-भला न कहिएगा! आपको आगाह करना हमारा फर्ज था, आगे आपकी मर्जी।’
कंधे से टिकाए काले झंडे की कालिख मानो सरेआम मुंह पर पुत गई थी। पसीना पोंछने के बहाने जैसे उसने कालिख पोंछी हो। जैसे-तैसे कार्यक्रम निपटा कर घर की राह लेते-लेते रात हो गई।डीएसपी की जानकारी झूठी नहीं थी। किरायेदारनी और भाई को रंगे हाथों एक ही कमरे में, एक ही बिस्तर पर अस्त-व्यस्त हालत में देखा। गुस्से की लहरें ठाठें मारने लगीं। भाई को वहां से भगा दिया और किरायेदारनी को बिठा कर लगा पूछताछ करने।
‘यह क्या तमाशा चल रहा था?’
‘जब आपने देख ही लिया तो पूछने की जरूरत क्या?’ उसने तुनक कर जवाब दिया।‘शर्म नहीं आती? तीन बच्चों की मां और यह करतूत?’
‘जब आपको सब मालूम हो ही गया तो शर्म कैसी और किससे?’‘नमकहराम! अगर तेरे पति को बता दूं तो तेरी जिंदगी खराब नहीं हो जाएगी? कभी सोचा है बच्चों का क्या होगा? तुम कहां जाओगी?’‘पति को बताएगा कौन?’‘मैं, और कौन?’‘नहीं। आप नहीं बता सकेंगे।’‘क्यों?’
‘मैं कह दूंगी कि आप ही मुझसे जोर-जबर्दस्ती कर रहे थे कि छोटे भाई ने आकर मुझे बचाया। फिर? बोलिए, क्या सबूत होगा आपके पास मेरे खिलाफ? आपका ही भाई आपके खिलाफ खड़ा होगा। डीएसपी का डर आपको ही सताएगा।’हद हो गई! किस बेशर्मी से ये बेहया सब कुछ कहे जा रही थी और वह काला झंडा झुकाए खड़ा था। कोई नारा नहीं, कोई र्इंट पत्थर नहीं। गली गली में चर्चा होगी। गली गली में पोस्टर होगा। हर अखबार में चर्चा होगी। हे राम! सारे किए-कराए पर एक मामूली औरत पानी फेर देगी?
आखिर चतुर राजनेता ने मौका तलाश ही लिया। एकदम से बोले- ‘देखो! तुम दोनों राजी हो तो मैं कौन? कबाब में हड्डी नहीं बनूंगा। सब कुछ करो, लेकिन दुनिया से बच के। लोगों को खबर न लगे। मेरे भाई के बारे में खबर उड़ गई, तो मेरा राजनीति में टिके रहना मुश्किल हो जाएगा। मैं डीएसपी को कह दूंगा कि ऐसी वैसी कोई बात नहीं, पर गली-मुहल्ले वाले तो झूठ में मेरा साथ नहीं देंगे न!’
‘गली-मुहल्ले वालों को मारो गोली। कौन आपके होते हुए थाना कचहरी जाने की हिम्मत करेगा। बस मेरे राजा, तुम बुरा मत मानना…’ और इतना कहते-कहते उसने नेता को अपनी बाहों की गिरफ्त में ले लिया था।फिर पलक झपकते सब कुछ हो गया था! कब वह उसकी बाहों में आया, उसे कुछ भी होश न रहा।पता तब चला जब सब कुछ हो चुका था और वह अपनी जीत पर बड़ी बेहयाई से मुस्करा रही थी, इतरा रही थी।
बाहर अंधेरा था, सन्नाटा भी। उसे लगा कि राजनीति की बड़ी मेहनत से पार की एक-एक सीढ़ी एकबारगी ही उस मामूली औरत ने उसके नीचे से खिसका दी हो। उसे धड़ाम से नीचे गिरा दिया हो और लोग देख रहे हों, खी खी, थू थू कर रहे हों।ऐसा कुछ नहीं था। वह बिस्तर पर मानो बार-बार आमंत्रित कर रही हो, जैसे कृतज्ञता व्यक्त कर रही हो! और वह नेताई मुद्रा में हाथ उठाए धन्यवाद कर रहा हो!
डीएसपी से मिलना-मिलाना होता रहता, वही चर्चा बार-बार। वह जबाब देता कि ‘तीन बच्चों की मां की इज्जत का सवाल है, साहब। भाई का क्या है! वैसे वह सुधर रहा है। खुद रात को निगरानी करता हूं। अब भी अगर कोई आपको कोई ऐसी वैसी खबर देता है, तो वह मेरा राजनीतिक विरोधी ही होगा। मामला एकदम खल्लास है।’रोज रात उसकी निगरानी में उस औरत के साथ कटती। रोज वह भाई और किरायेदारनी को डांटता! रोज रात वह उसकी या वह उसका शिकार होता और रोज सुबह उसका नया भाषण!
इस तरह अपनी सत्यता, सादगी, ईमानदारी, चरित्र, सज्जनता और ऐसी अन्य विशेषताओं के चलते वह चुनाव जीतने में सफल रहा।अब वह सरकार का अंग था। इससे पहले कि डीएसपी फिर कभी इस प्रसंग की चर्चा कर उसे शर्मिंदा करे, उसने उसे प्रमोशन दिलवा दी। इससे पहले कि किरायेदारनी उससे रातों का हिसाब मांगे, उसने उसके पति का दूर-दराज तबादला करवा दिया।डीएसपी प्रमोशन पाकर नेता जी की जगह-जगह प्रशंसा करते नहीं थकता और किरायेदारनी जहां गई है, वहीं उसके चरित्र का बखान करते नहीं थकती।