दीर्घायु जीवन पाना हरेक व्यक्ति की आकांक्षा होती है, लेकिन चिरकाल तक युवा रहने की जिद ने मानव सभ्यता के विकास पर सवाल खड़ा कर दिया है। सिलिकान वैली के सैंतालीस वर्षीय ब्रायन जानसन खुद को अठारह साल का युवा बनाने को तत्पर हैं। इस अरबपति ने युवा बनने की सनक पूरा करने के लिए ‘एजिंग प्रोजेक्ट ब्लूप्रिंट पर काम करने के लिए वैज्ञानिक को लगाया है। इसका मकसद बुढ़ापे को हराकर युवा बने रहना है। आज दीर्घायु जीवन पर दुनियाभर में शोध हो रहे हैं। इस पर सत्ताईस अरब डालर यानी दो हजार करोड़ से अधिक निवेश की संभावना है। इसके लिए पश्चिम में ‘सिंगुलरिटी मूवमेंट’ यानी विशिष्टता आंदोलन चलाया जा रहा है। वहां लोगों का विश्वास है कि एक समय के बाद मनुष्य और मशीन एक हो जाएंगे। आनलाइन कारोबार करने वाली कई कंपनियों के संस्थापक इस होड़ में शामिल हो गए हैं। सवाल है कि क्या व्यक्ति अमर हो सकता है! कोशिका के क्षय होने की गति को कम कर बुढ़ापे को रोका जा सकता है। बीमारियों पर काम कर मृत्यु को कम किया जा सकता है। पर चिरयौवन पूरी तरह प्रकृति के विपरीत कार्य है।
अमरता की तलाश का मसला नया नहीं है। मनुष्य की चिरंतन सुख और समृद्धि की ललक की यह पराकाष्ठा है। व्यक्ति अगर अमर हो गया, तो इस सभ्यता का और समूचे जगत की स्वाभाविक गतिशीलता का क्या होगा? जीन थेरेपी का प्रयोग कर कोई व्यक्ति डेढ़ या दो सौ साल जीवित रह सकता है, लेकिन अमर होने की जिद में कहीं हम इस मानव सभ्यता को ही संकट में तो नहीं डाल रहे है। ऐसा लगता है कि भविष्य में विनाश की वजह मानव सभ्यता बनेगी। चिरयौवन का आकर्षण इतना ज्यादा है कि भारत भी इसमें पीछे नहीं है। भारत में एम्स के जेरियाट्रिक विभाग ने ‘प्रोजेक्ट लान्गेविटी’ शुरू किया है।
परिवर्तन स्वभाविक प्रक्रिया है। यूनानी दार्शनिकों ने कहा है कि प्रकृति में हो रहे सभी परिवर्तनों के पीछे एक अदृश्य कारण बना रहता है। ऐसी कोई चीज है, जिससे और जिसके कारण चीजें प्रकट होती हैं, फिर वापस उसी में लौट जाती हैं। उस चीज की खोज हजारों साल से जारी है। आज भी वैज्ञानिक उस ‘ईश्वरीय कण’ को जानने में लगे हैं, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा है। उसी प्रकार यह अमरता की तलाश है। अगर शरीर अमर हुआ भी तो उसमें स्थित आत्मा को नूतन और नवीन बनाने का कोई तरीका विज्ञान के पास है? शायद नहीं!
मनुष्य की भौतिक इच्छाओं का अंत नहीं है। इस कारण उसकी चिरयौवन की लिप्सा भी खत्म नहीं होनेवाली है। ययाति को उसके पुत्र पुरूY ने अपना यौवन दे दिया और अपने पिता का बुढ़ापा ले लिया। इसके बाद भी ययाति के यौवन का एक दिन अंत हुआ। भीष्म के पिता शांतनु को भी धीवर कन्या सत्यवती के प्रति ऐसा आकर्षण जागा कि उन्होंने अन्न-जल ग्रहण करना भी छोड़ दिया। आखिर पुत्र भीष्म को पिता के सुख की खातिर आजीवन ब्रह्मचर्य पालन का व्रत लेना पड़ा। कठोपनिषद में नचिकेता और यम का संवाद है। इसमें मृत्यु और जीवन पर चिंतन है। यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में सबसे बड़े आश्चर्य पर सवाल उठता है, तो युधिष्ठिर कहते हैं कि मृत्यु शाश्वत सत्य है। इसके बाद भी लोग अपनी अमरता की तलाश करते हैं। कुछ वर्ष पहले माइकल जैक्सन ने भी ब्रायन जानसन की तरह ही चिर युवा रहने के लिए हरसंभव प्रयास किया था, लेकिन उन्हें भी इस धरती को छोड़कर जाना पड़ा।
ग्रीक साहित्य में सिसिफस की कहानी है, जिसने मृत्यु को कैद कर लिया था। परिणाम- व्यक्ति एक समय के बाद जरा-जीर्ण हुआ, चलना, खाना-पीना बंद, लेकिन मृत्यु नहीं आई। पेड़ सूखे नहीं, फूल झड़े नहीं! नए पेड़ और फूल तथा फल का आना बंद हो गया। प्रकृति में हाहाकार मच गया। लोगों ने अमरता के अनंत जीवन की त्रासदी की अनुभूति कर ली थी। चहुंओर लोग हाथ उठाकर मृत्यु की मांग करने लगे। लोगों को अहसास हो गया मृत्यु की आवश्यकता और अनिवार्यता का। एक सार्थक और सफल जीवन के बाद विराम की। फिर शक्ति से भरपूर नए जीवन के शुरूआत की। अनंत जीवन की यातना से अच्छी है जीवन की पूर्णता के बाद मृत्यु।
देवराज जीयस की आज्ञा से एटीज ने पराक्रम दिखाया और सिसिफस को पराजित कर बंदीगृह में डाल दिया। राजा प्लूटो ने सजा दी कि हेडीज घाटी के नीचे पड़े विशाल संगमरमर के चट्टान को सिसिफस ठेल कर गिरि शृंग के शीर्ष पर ले जाएगा। इसके बाद वह चट्टान फिर नीचे फेंक दिया जाएगा और सिसिफस उसे शीर्ष पर लाने का क्रम करता रहेगा। धरती पर अमरता लाने का अपराधी खुद अमर होने के बाद भी अर्थहीन दंड भोगने को अभिशप्त हो गया। यातना भोगते-भोगते वह पाषण बन गया। प्राकृतिक व्यवस्था को पलटने की कोशिश में सिसिफस विफल रहा। जबकि मृत्यु भय को जीतने वाले महात्मा बुद्ध की सीख से इस धरती के मानव का जीवन हराभरा हो रहा है।
भारतीय चिंतन में मानव काया में अमरत्व को लेकर चिंतन किया गया है। व्यक्ति अपने कर्म और चरित्र से कैसे अमर हो। ऐसे चरित्र इस धरती पर अनगिनत हैं, लेकिन हम काया में नहीं शरीर में अमरता की तलाश कर रहे हैं। जीवन का अर्थ अनंत या अमरता में नहीं है। पीड़ादायी शरीर के साथ अमर रहने से अच्छा है कि धर्म के लिए अपने अनंत शक्ति को समर्पित कर दें। बुढ़ापे को रोकने से बेहतर है कि जीवन को स्वस्थ और व्यक्तित्व को अमर बनाने पर काम किया जाए, ताकि समाज को एक सही दिशा दी जा सके।