उनका जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के फरीदपुर में हुआ था। कोलकाता से भौतिकशास्त्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव, पत्रकारिता और साउंड रिकार्डिंग सरीखे कई काम किए। फिल्मों में जीवन का यथार्थ रचने वाले और पढ़ने के शौकीन मृणाल सेन ने फिल्मों के बारे में गहराई से अध्ययन किया था। उन्होंने सिनेमा पर कई पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें ‘न्यूज आन सिनेमा’ और ‘सिनेमा, आधुनिकता’ चर्चित हैं।

मृणाल सेन ने फिल्म निर्देशन की शुरुआत 1956 में बांग्ला फिल्म ‘रात भोरे’ से की थी। 1958 में उनकी दूसरी सफल फिल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ आई। 1960 में उनकी फिल्म ‘बाइशे श्रावण’ आई, जो 1943 में बंगाल में आए भयंकर अकाल पर आधारित थी। फिल्म ‘आकाश कुसुम’ (1965) से मृणाल सेन की पहचान एक महान निर्देशक की बनी। उनकी अन्य सफल बांग्ला फिल्में थीं- ‘इंटरव्यू’, ‘कलकत्ता ’71 और ‘पदातिक’, जिन्हें ‘कलकत्ता त्रयी’ कहा जाता है। मृणाल सेन की कई फिल्मों में कोलकाता शहर का प्रमुखता से चित्रण है। उन्होंने कोलकाता को एक चरित्र और एक प्रेरणा के रूप में दिखाया है।

बांग्ला फिल्मों की तरह ही मृणाल सेन हिंदी फिल्मों में भी समान रूप से सक्रिय रहे। हिंदी में उनकी पहली फिल्म 1969 में बनी ‘भुवन शोम’ थी। यह फिल्म एक अड़ियल रईसजादे को एक पिछड़ी हुई ग्रामीण महिला द्वारा सुधारने की हास्य-कथा है। साथ ही, यह फिल्म वर्ग-संघर्ष और सामाजिक बाधाओं की कहानी भी प्रस्तुत करती है। इस फिल्म से भारत में ‘नई धारा सिनेमा आंदोलन’ की शुरुआत हुई।

इसके बाद उन्होंने जो भी फिल्में बनार्इं, वे अनिवार्य रूप से राजनीतिक थीं। इस तरह उन्होंने एक मार्क्सवादी कलाकार के रूप में ख्याति अर्जित की। यह पूरे भारत में बड़े पैमाने पर राजनीतिक अशांति का समय भी था। खासकर कलकत्ता में और उसके आसपास, इस अवधि को अब नक्सली आंदोलन के रूप में जाना जाता है। इस चरण के बाद उनकी फिल्मों की एक नई शृंखला आई, जिनमें उन्होंने अपना ध्यान बाहर के दुश्मनों के बजाय, अपने मध्यवर्गीय समाज के भीतर दुश्मन की तलाश पर केंद्रित किया। निश्चित रूप से यह उनका सबसे रचनात्मक चरण था।

मृणाल सेन को भारत सरकार द्वारा 1981 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 2005 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनको 1998 से 2000 तक मानद संसद सदस्यता भी मिली। उन्हें सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार चार बार मिला। अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी उन्हें कई पुरस्कार मिले। उनमें फिल्म ‘खारिज’ के लिए कान्स में ‘द प्रिक्स ड्यू ज्यूरी’ सम्मान भी शामिल है।

2004 में मृणाल सेन ने अपनी आत्मकथा ‘आलवेज बिंग बार्न’ पूरा किया। 2008 में उन्हें ओसियन सिने फैन फेस्टिवल और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल द्वारा ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट’ सम्मान से सम्मानित किया गया। 1982 में वे बत्तीसवें बर्लिन अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में निर्णायक मंडल के सदस्य थे। 1983 में वे तेरहवें मास्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में निर्णायक मंडल के सदस्य थे।

मृणाल सेन की प्रमुख फिल्में हैं- रात भोरे, नील आकाशेर नीचे, बाइशे श्रावण, पुनश्च, अवशेष, प्रतिनिधि, अकाश कुसुम, मतीरा मनीषा, भुवन शोम, इच्छा पुराण, इंटरव्यू, महापृथ्वी, अंतरीन, 100 ईयर्स आफ सिनेमा, एक अधूरी कहानी, कलकत्ता 1971, बड़ारिक, कोरस, मृगया, ओका उरी कथा, परसुराम, एक दिन प्रतिदिन, चलचित्र, खारिज, खंडहर, एक दिन अचानक आदि।