दिवंगत होने के सत्ताईस वर्ष बाद नुसरत फतेह अली खां की गुमशुदा आवाज लौट आई है। बिल्कुल नया अंदाज। संगीत की दुनिया में इसे एक करिश्माई खोज भी कहा जा सकता है। किसी गुमशुदा संगीतमय आवाज का फिर से मिलना निश्चित रूप से एक सुखद खबर है। यह वर्ष 2021 की बात है। प्रख्यात ब्रिटिश संगीतकार पीटर गेब्रियल ने एक पुरानी मिल-बिल्डिंग के पुराने रेकार्ड में से एक गुमशुदा ‘टेप’ खोज निकाला। जब उसे थोड़ी मशक्कत के बाद चलाया गया तो पता चला कि इसमें कव्वाली सम्राट नुसरत फतेह अली खान की आवाज कैद है। अतीत की किसी भी एलबम में यह शामिल नहीं हो पाया था। गौरतलब है कि सत्ताईस वर्ष पहले अपने समय के इस अड़तालीस वर्षीय कव्वाली सम्राट ने आखिरी सांस ली थी।

अब ‘चेन आफ लाइट’ के नाम से यह एलबम बीस सितंबर को विश्वभर में जारी किया जा रहा है। जो जानकारी मिल सकी है, उसके अनुसार इसकी रिकार्डिंग एक स्टूडियो में उस्ताद की पसंद का माहौल बनाकर की गई थी। फिलहाल सबसे पहले इसका ‘डिजिटलीकरण’ किया जा रहा है, ताकि भविष्य में इस आवाज के गुम होने की आशंकाओं को खत्म किया जा सके।

उस्ताद के तत्कालीन मैनेजर अमंड़ा जोंस के अनुसार, ‘नुसरत साहब की सभी ‘लाइव रिकार्डिंग’ एलबमों में भरी रहती थी और उनके रखरखाव और जारी किए जाने आदि का भी सही ढंग से नियोजन होता था। अब यह टेप भी एलबम की शक्ल में ‘वोमैड’ नामक संस्थान को सौंपी जाएगा। गेब्रियल का यह संस्थान 1985 में उस्ताद के ही एक एलबम के साथ स्थापित हुआ था। गेब्रियल और जोंस के अनुसार, उस्ताद अक्सर आधी रात के समय मर्सिया नामक एक द्वीप पर हर कव्वाली का पहले अभ्यास करते और फिर गाते थे। फिर तीसरे चरण में किसी भावी एलबम के लिए रिकार्डिंग होती।

शहंशाहे-कव्वाली के नाम से पूरे उपमहाद्वीप में पुकारे जाने वाले नुसरत फतेह अली खान भी एक साझा पुल थे। उनका जन्म भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद 13 अक्तूबर, 1948 को फैसलाबाद में हुआ था। मगर उनके परिवार के सभी लोग भावनात्मक रूप से अपने गृह नगर जलंधर से जुड़े हुए थे। एक बार मिले तो जलंधर के बस्ती शेख और कुछ अन्य मुहल्लों के बारे में पूछते रहे। वे बताते थे कि ‘हमारे बुजुर्गों की वहां कब्रें भी हैं। मन चाहता है, जीते जी एक बार वहां फातिहा पढ़ आएं।’ उनका परिवार ‘कव्वाली’ को समर्पित था, मगर उनके अब्बा हुजूर चाहते थे कि नुसरत कव्वाल न बनें, बल्कि डाक्टर बनें। उन दिनों ‘कव्वालों’ को समाज में ज्यादा प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं थी। तेईस बरस की उम्र थी कि उनके अब्बा चल बसे थे। उसी बरस उन्हें परिवारिक ‘कव्वाल पार्टी’ का मुखिया चुना गया। ‘मुजाहिद मुबारक अली खान एंड पार्टी’ के नाम से लोकप्रिय इस ‘कव्वाल पार्टी’ ने अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रस्तुति ‘वर्ल्ड आफ म्यूजिक’ (वोमैड फैस्टिवल, लंदन) में 1985 में दी। उसी वर्ष उन्हें अमेरिका से निमंत्रण मिला। 1987 में जापान फाउंडेशन के निमंत्रण पर वहां पांचवें एशियाई समारोह में उन्होंने अपनी धूम मचा देने वाली प्रस्तुति दी। फिर 1989 में उन्हें ‘ब्रुकलिन अकादमी आफ म्यूजिक’ ने न्यूयार्क में बुलाया। वहां उनके चहेते श्रोताओं में अमेरिकी ज्यादा थे और भारत-पाकिस्तान के लोग कम।

खान की प्रस्तुतियां उर्दू, पंजाबी, फारसी, ब्रजभाषा और शुद्ध हिंदी में समान अधिकार के साथ होती थीं। परंपरागत वाद्य-यंत्रों के साथ और परंपरागत शैली में गाया उनका गीत ‘हक अली अली’ पूरे उपमहाद्वीप को पागल कर देने वाला था। इसी बीच 1979 में खान ने अपनी चचेरी बहन नाहीद से शादी कर ली। उनकी एक बेटी है निदा। 1985 में पीटर ग्रैम्बील के साथ मिलकर खान ने विश्व भर में चर्चित एलबम ‘दी लास्ट टैम्पटेशन आफ क्राइस्ट’ और कनाडाई संगीतकार माइकल बु्रक के साथ ‘मस्त मस्त’ एलबम के लिए अपनी तहलका मचा देने वाली प्रस्तुतियां दीं। उनका एक एलबम ‘इन्टाक्सीकेटेड स्पीरिट’ 1997 में ग्रेमी अवार्ड के लिए भी चुना गया था। पाकिस्तानी और भारतीय फिल्मों में भी उनकी प्रस्तुतियां बेहद चर्चित रही हैं। भारतीय फिल्मों ‘और प्यार हो गया’, ‘धड़कन’ और ‘कच्चे धागे’ आदि में उन्होंने उदित नारायण के साथ मिलकर प्रस्तुतियां दीं।

भारतीय स्वाधीनता की पचासवीं वर्षगांठ पर एआर रहमान की एलबम ‘वंदे मातरम’ में भी ‘गुरुज आफ पीस’ वाला चर्चित गीत खान ने ही गाया था। रहमान ने खान की स्मृति को समर्पित गीत ‘तेरे बिना’ गाया और एक एलबम में उनका चर्चित गीत ‘अल्ला हू’ विशेष रूप में शामिल किया। मगर ढेरों रोगों से घिर चुके खान ने आखिर 11 अगस्त 1997 को लंदन के एक अस्पताल में अपना अंतिम ‘आलाप’ लिया। उनके दोनों गुर्दे और जिगर खराब हो चुके थे। वे गुर्दा-प्रत्यारोपण के लिए ही लास एंजिल्स जाने वाले थे, मगर उससे पहले ही लंदन में दिल का दौरा पडने से उनकी सांसें रुक गईं। उनका शव स्वदेश में फैसलाबाद लाया गया, जहां लाखों लोगों ने नम आंखों से उपमहाद्वीप के इस चहेते संगीतकार को ‘सुपुर्दे-खाक’ किया।

संसार और अपने चाहने वालों से विदा होने से पहले खान ढेरों सम्मान प्राप्त कर चुके थे। उनमें ग्रेमी के इलावा ‘मांट्रियल वर्ल्ड फिल्म फेस्टिवल (1996) का ग्रां-पिक्स अवार्ड’, यूनेस्को का संगीत सम्मान (1995) पाकिस्तानी राष्ट्रपति का विशेष सम्मान आदि शामिल हैं। उनकी पत्नी नाहीद भी 2013 में आंटेरियो-कनाडा में चल बसीं थीं। बेटी निदा अभी वहीं पर है, यानी भारतीय उपमहाद्वीप से सिर्फ यादों का रिश्ता ही शेष है।