लगता है तेजी से बदलते इस युग में हमें प्रेम को नए अर्थ देने पड़ेंगे। आज प्रेम बेहाल हुआ जाता है। स्त्री स्वातंत्र्य और सशक्तीकरण के इस दौर में प्रेम का सकुचाता रूप तीखी धूप में एक कोने में बैठा नजर आता है। एक ओर राफेल विमान को उड़ाने के लिए महिला पायलट सामने आ रही हैं और दूसरी ओर दिल्ली के निर्भया कांड और हिमाचल के गुड़िया कांड की पुनरावृत्ति हाथरस और बलरामपुर कांड जैसे निर्मम बलात्कार कांडों में हो रही है, जिनमें जाति और धर्म का कटघरावादी राजनीतिकरण चुनाव लड़ने और वोट हथियाने का साधन बन रहा है। वक्त बदलने के साथ-साथ प्रेम करने के पैमाने भी बदल गए। अब घटना की जांच-पड़ताल वही जो खोजी को नेता बनाए, चुनाव जितवाए। सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचाए। सीढ़ी के शिखर तक पहुंचता व्यक्ति चिल्लाता है, ‘मैं अब और अन्याय नहीं होने दूंगा। दूध का दूध और पानी का पानी कर दूंगा।’ दूध तो वंशवादी हो ऊंची मंजिलों तक जाएगा और पानी झुग्गी-झोंपड़ियों में खैरात की तरह बंटेगा, बशर्ते कि उसमें इतना प्रदूषण न हो जाए कि भाग्य नियंता हर संकट का कारण उसे बताने लगें।

यह कहा जाएगा कि ऐसा व्यवहार तो सदियों से होता रहा है। कार्ल मार्क्स के ‘दास कैपिटल’ लिखने के बाद उसके लिए भाषण देने की परंपरा बाद में मकबूल हुई। अब तो लोगों को इस प्रक्रिया से इतना इश्क हो गया लगता है कि लोग प्रेम की परिभाषा बदल बैठे। इस रीति-नीति का पालन करो तो हथेली पर सरसों उगाने की कल्पना सच होती लगती है। यही है आज का प्रेम? उसका कोई टकसाली रूप भी नहीं। वक्त बदलने के साथ इसे अपना रंग बदलते देर नहीं लगती।

रिश्वतखोरी, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार से हो गया प्यार

इतना ही क्यों? अकबर इलाहाबादी के सुर में कहें, तो यही कहेंगे कि हाकिम को रियाया की बहुत फिक्र ही नहीं, बहुत इश्क है, लेकिन अपना रात का खाना खाने के बाद। यह खाना दुनिया भर में प्रसारित हुआ रिश्वतखोरी का सूचकांक बता सकता है कि कुछ भद्र जनों को रिश्वतखोरी, लालफीताशाही और भ्रष्टाचार से इतना प्यार हो गया कि दुनिया के कम से कम छिहत्तर देश पिछले साल अगर इससे कम बेईमान थे तो इस बरस सतहत्तर देश आगे आ गए। पहले बरखुरदार की शादी के लिए लड़की तलाशते हुए इशारा किया जाता था कि आमदनी तो ठीक है, ऊपर से कुछ ‘बालाई’ भी हो जाती है। अब तो परिचय में ‘बालाई आमदनी’ का ब्योरा पहले दिया जाता है। असल वेतन की खबर कौन पूछता है? अब इश्क उन लोगों से ही होता है, जो जल्द से जल्द अपने-आपको साइकिल से बदल कर बीएमडब्लू में तब्दील कर लें। शुरू से सुनते आए हैं कि ‘प्रेम गली अति सांकरी, जिसमें दो न समाए’। यही है असली प्रेम।

प्रेम की गली तो आज भी सांकरी है, लेकिन इतनी सांकरी भी नहीं कि जिसमें प्रेमी और उसकी आयातित गाड़ी न समा सके। अगर प्रेमी उम्र भर अपनी पुरानी साइकिल पर ‘पूर्व प्रेमिका’ या वर्तमान पत्नी के लिए अपने मैले थैले में सब्जी ढोने का भविष्य दिखाए तो भला ऐसे प्रेमी के लिए इस संकरे प्रेम मार्ग पर चलने के लिए जगह कहां? देश की विकास दर के बढ़ने और घटने की तरह आज प्रेम गहनता की दर भी घटने और बढ़ने लगी है। कोरोना महामारी के प्रकोप में न जाने कितने लोग अपनी नई जमाई जड़ों से उखड़ गए। शहरी हो जाने का मोह त्याग कर अपने गांव घरों की ओर लौटे। वहां का सूरते-हाल तो उससे भी बिगड़ा मिला, जैसा वे छोड़ कर गए थे, क्योंकि यह विकास मनरेगा और अनुदान सहायता के फर्जीवाड़े से हुआ था। अब इन उखड़े हुए लोगों से भला कोई इश्क करता है, जो शहरों में भूखे रह परदेस गए! वहां से निकाले जाने पर गांवों की ओर लौटे। यहां उनकी झुग्गी-झोंपड़ियों तक विकास यात्रा के काल्पनिक आंकड़ों की भेंट हो चुकी है। ऐसे उखड़े हुए लोगों के बारे में दर्द भरे अफसाने या उपन्यास तो लिखे जा सकते हैं, नए प्यार के कैनवास के सुनहरे रंग नहीं मिलते।

दवाओं के बाजार से महामारियों का इश्क

ये सुनहरे रंग उन दस फीसद लोगों ने अपने नाम आरक्षित करवा लिए, जिन्होंने इस आपदा काल में भी दवा लाने की खबरें फैला संकट मोचक बन अपनी गद्दियां सुरक्षित कर लीं या अपनी संपदा में सौ फीसद वृद्धि कर दी। आधुनिक प्यार की कहानियां इस विकट काल में इनकी लकदक हो गई जिंदगी पर ही लिखी जाएंगी। ऐसी कहानियां नए जमाने की आमद घोषित कर रही हैं। ये कभी कम न पड़ेंगी। चिंता न करो! एक महामारी आती है और दवाओं को चोर बाजार में जाने का संदेश दे जाती है। इसके बाद दूसरी महामारी का खतरा, क्योंकि बची हुई दवाओं को भी तो बेचना है। दवाओं के बाजार से महामारियों का इश्क हो रहा है। अब इसके पुराने धरातलों से फटते बादलों में से इंद्रधनुष तलाश रहे हैं। सावन की सोंधी बयार में उन तितलियों और भंवरों के लौटने का इंतजार करते हैं जो संकरी गलियों को छोड़कर न जाने कहां चले गए।

उधर अब कोयल भी नहीं बोलती। उसकी आवाज तो भोथरी हो गई। पी को तलाशता पपीहा अपने पंख फटफटाकर गुमशुदा हो गया और हम उसे शेयर बाजार के भाव ऊंचे-नीचे होते भाव में तलाश कर रहे हैं। प्रेम कहानियां लिखने से रोमांचक आजकल शेयर बाजार की हाराकिरी हो गई है। देखते ही देखते जो लोग रंक से राजा हो गए, उनकी जड़ों में क्रिप्टो करंसी ने कितनी खाद दे दी, इसकी तलाश भी तो कर ली जाए! रोमांच और रोमांस आज भी मरा नहीं, जिंदा है लेकिन उन जिंदा ताबूतों के अंग-संग जो एक बार गद्दियों पर अवस्थित हो गए, तो अपने नाती-पोतों की वसीयत बनकर ही विदा होंगे।