बचपन से ही हम यह सुनते आए हैं कि दुनिया तेजी से बदल रही है। लोग कहते हैं- समय बहुत बदल गया है। लेकिन समय वैसा ही है, जैसा पहले था। साल के वही बारह महीने हैं, दिन के वही चौबीस घंटे, सूरज अब भी पूर्व दिशा से ही निकलता है और चंद्रमा आज भी अपनी तय गति से आसमान में चलता है। प्रकृति ने अपनी लय नहीं बदली, ब्रह्मांड का संचालन यथावत है। बदलाव अगर नहीं आया है, तो वह हमारी सोच में, जीवनशैली में और हमारे दृष्टिकोण में।
हमारी मानसिकता आज ऐसी हो गई है कि हम अपनी असफलताओं और कठिनाइयों का उत्तर समय पर मढ़ देते हैं। हमारी यह आदत बन चुकी है कि जब किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती, तो हम तुरंत कह देते हैं- ‘अब पहले जैसा समय नहीं रहा।’ लेकिन सच्चाई यह है कि समय को दोष देकर हम अपने कर्तव्यों से बच नहीं सकते। समय तो एक मौन साक्षी है, जो न किसी की प्रशंसा करता है, न आलोचना। वह केवल चलता रहता है। हर युग में समय ने किसी को महान बनाया है, तो किसी को नष्ट भी किया है। यह सब उस व्यक्ति की सोच, उसके कर्म और दृष्टिकोण पर निर्भर रहा है।
आज हम एक ऐसे दौर में हैं जहां तकनीक, संसाधन और अवसर पहले से कहीं अधिक हैं। बावजूद इसके, लोग अधिक तनावग्रस्त हैं, अधिक असंतुष्ट हैं। इसका कारण केवल बाहरी नहीं, आंतरिक है। हमारी सोच नकारात्मकता से भर गई है, हमारी सहनशीलता में कमी आई है और हमने अपने जीवन की बागडोर दूसरों या ‘समय’ के हाथों में सौंप दी है। जबकि सच्चाई यह है कि जीवन की दिशा और दशा हमारे ही हाथ में होती है।
सोच के हिसाब से ही हम जीते हैं जीवन
हम जैसा सोचते हैं, महसूस करते हैं, वैसा ही जीवन बनाते हैं। हमारी इस प्रवृत्ति का असर हमारे परिवार, समाज और राष्ट्र पर भी पड़ता है। जब कोई युवा प्रयास करने से पहले ही यह मान लेता है कि ‘अब समय अच्छा नहीं है’, तो वह कभी पूरी तरह प्रयास ही नहीं करता। जब कोई बुजुर्ग वर्तमान पीढ़ी की आलोचना करते हुए कहता है कि ‘हमारे समय में ऐसा नहीं होता था’, तो वह अपनी जिम्मेदारी से बच जाता है। समय को कोसना आसान है, लेकिन आत्ममंथन करना कठिन। और हम आसान रास्ता चुनते हैं।
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यह प्रवृत्ति केवल व्यक्तियों तक सीमित नहीं रही। यह समाज की सोच बन चुकी है। हम अपने आसपास देख सकते हैं कि कैसे ज्यादातर लोग अपनी असफलता, आलस्य और कमजोरी का कारण समय को मानते हैं। लेकिन वह समय किसी अन्य व्यक्ति के लिए अवसर बन जाता है। इतिहास ऐसे अनगिनत उदाहरणों से भरा पड़ा है, जब विषम परिस्थितियों में भी कुछ लोगों ने असाधारण कार्य किए। उन्होंने समय को साधन नहीं माना, बल्कि साधना का माध्यम बनाया। हमें यह समझना होगा कि सोच की शुद्धता ही जीवन में सच्चा परिवर्तन ला सकती है। कोई भी व्यक्ति एक दिन में सफल नहीं होता, लेकिन हर दिन का छोटा प्रयास मिलकर बड़ी सफलता का आधार बनता है। और यह तभी संभव है जब हम समय से भागें नहीं, बल्कि उसका सम्मान करें, इसका उपयोग करें।
अगर दृष्टिकोण सही हो तो हर समय अपना है
समय न किसी के पक्ष में है, न विरोध में। वह केवल अवसर देता है- हर व्यक्ति को, हर दिन को। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस अवसर का क्या करते हैं। जो लोग समय को दोष देने में लगे रहते हैं, वे प्रगति की राह से भटक जाते हैं। वहीं, जो व्यक्ति समय को साधते हैं, अनुशासन में रहते हैं और हर दिन को एक नई शुरूआत मानते हैं, वे अपने जीवन में सफलता की ऊंचाइयां छूते हैं। इसके लिए हमें आत्मचिंतन की आवश्यकता है। हमारी सबसे बड़ी जंग बाहरी हालात से नहीं, हमारी आंतरिक सीमाओं से है। जब तक हम अपनी सोच को परिवर्तित नहीं करेंगे, तब तक कोई भी परिस्थिति हमारे अनुकूल नहीं बन सकती।
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हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि सकारात्मक परिवर्तन केवल सोचने से नहीं आता, उसके लिए निरंतर अभ्यास, अनुशासन और आत्मनियंत्रण चाहिए। हमें खुद को उन आदतों से मुक्त करना होगा जो हमारी प्रगति में बाधा बनती हैं। जैसे टालमटोल की प्रवृत्ति, दूसरों को दोष देना, और निरंतर शिकायत करना। जब हम इन आदतों से ऊपर उठते हैं, तभी हम जीवन की वास्तविक उन्नति की ओर बढ़ सकते हैं। परिवर्तन की यात्रा स्वयं से शुरू होती है। अगर हम चाहते हैं कि समाज बदले, देश बदले, तो पहले हमें स्वयं को बदलना होगा। अपने विचारों को ऊंचा करना होगा, अपने कार्यों को उद्देश्यपूर्ण बनाना होगा और हर दिन को एक नई शुरूआत की तरह जीना होगा। यही वह रास्ता है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
समय को दोष देना छोड़ करना चाहिए सकारात्मक कार्य
अपने बच्चों को भी हमें यही सिखाना चाहिए कि समय को दोष देना एक कमजोर सोच है। उन्हें यह सिखाना होगा कि हर परिस्थिति में कुछ न कुछ सकारात्मक पाया जा सकता है, अगर दृष्टिकोण सही हो। इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम स्वयं उस सकारात्मकता के उदाहरण बनें। हमारे कर्म, हमारी ईमानदारी और हमारी जीवनशैली ही उनके लिए सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत हो सकती है। समय एक दर्पण की तरह है। वह वही दिखाता है जो हम हैं। अगर हम उसमें सफलता, आशा और ऊर्जा देखना चाहते हैं, तो पहले हमें वह सब अपने भीतर पैदा करना होगा। समय को दोष देना छोड़कर अगर हम हर दिन को अवसर की तरह देखें और अपने विचारों तथा कर्मों को उसकी दिशा में लगाएं, तो वही समय जो हमें अब कठिन लगता है, वही हमारी सफलता की कहानी बन सकता है। समय नहीं बदला है। अगर किसी में बदलाव की जरूरत है, तो वह हम हैं। हमारा दृष्टिकोण, अनुशासन और हमारी कर्मनिष्ठा ही इस जीवन की असली दिशा तय करेंगे। यही सच्ची प्रेरणा है, यही सच्चा आत्मबोध।