हर सुबह सूरज उगता है, फिर शाम को ढल जाता है। मिट्टी में बोए हुए छोटे-छोटे बीज हमें फसल के रूप में वापस मिलते हैं। पेड़ रसीले फल, फूल और छाया देते हैं। हमारी आंखें इन्हें देखने की आदी हो गई हैं। शायद इसलिए इनमें कुछ विशेष नजर नहीं आता। मगर जरा गौर से देखें तो पता चलेगा कि यह सब कितना अद्भुत है! मानो प्रकृति कोई जादूगर है, जो हमें हर बार विस्मय में डाल देती है। चाहे वे पहाड़, जंगल, रेगिस्तान हों या फिर लाखों किस्म के पेड़-पौधे या जीव-जंतु। प्रकृति का हर रूप अद्भुत होता है। यह प्रकृति पांच अवयवों- क्षिति, जल, वायु, अग्नि और आकाश से बनी है। इन्हीं पांच अवयवों से हमारा शरीर भी बना है। समान तत्त्वों से बने होने के कारण प्रकृति के कुछ गुण मनुष्यों में भी स्वाभाविक रूप से आ गए हैं। प्रकृति ने हमें अनेक उपहार दिए हैं, जिनमें एक तरह का रहस्य है।
मनुष्य को प्रकृति से मिले नायाब तोहफों में से एक है- मन, जिसके अंदर कई रहस्य छिपे हुए हैं। मनुष्य अपने मन की शक्ति से कोई भी काम कर सकता है। मन इतना शक्तिशाली होता है कि आजतक वैज्ञानिक भी इन शक्तियों को पूरी तरह नहीं पहचान पाए हैं। हम आज अपने जीवन में जो भी काम कर रहे हैं, वह अपने मन की शक्तियों से ही करते हैं। जब तक किसी काम को करने की इच्छा हमारे मन से जागृत नहीं होती है, तब तक हम कोई भी काम नहीं कर पाते हैं।
मन की गति बड़ी तेज
ठीक इसके विपरीत अगर कोई काम मन से ठान लिया जाता है तो उसे हर हाल में मनुष्य पूरा कर लेता है। दिलचस्प और एक सच्ची बात यह भी है कि इस शक्तिशाली मन की गति बड़ी तेज होती है। ये क्षण में यहां तो क्षण में वहां! इसलिए अगर विवेक के साथ इस मन को साधा जाए तो व्यक्ति को सर्वश्रेष्ठ परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ब्रिटिश दार्शनिक और लेखक जेम्स एलेन ने लिखा है, ‘अच्छे विचार बीजों से सकारात्मक और स्वास्थ्यप्रद फल आते हैं। इसी तरह बुरे विचार बीजों से नकारात्मक और घातक फल आपको वहन करने पड़ते हैं।’
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मन के कारण ही पूरा शरीर काम करता है। अगर मन कहीं और हो, तो महत्त्वपूर्ण निर्णय और बातें भी समझ में नहीं आती हैं। कई व्यक्तियों के मन में प्रारंभ से ही यह बात बैठ जाती है कि वह किसी खास काम को नहीं कर सकते। जैसे किसी को गणित हौवा लगता है, तो कोई मंच पर बोलने से हिचकिचाता है। दरअसल, यह सब उनकी कमजोर इच्छाशक्ति को दर्शाता है और हम यह समझ बैठते हैं कि हमारे मन का नहीं हो रहा है। यह मन के एकाग्रचित न होने की वजह से होता है। दार्शनिक मार्ले का मानना है कि विश्व के हर काम में यश प्राप्त करने के लिए मन के एकाग्रचित होने का बहुत योगदान होता है। दोराहे पर खड़ा मन लिए व्यक्ति अपने लक्ष्य और कार्य से भटक जाता है।
रो लेने में कोई बुराई नहीं होती
यह हमेशा जरूरी नहीं कि हमने जो और जैसा सोचा, वैसा ही हो। हमेशा हमारे मन का ही नहीं होता। कई बार मन में हम कुछ सोचते हैं और ठीक उसके विपरीत घटनाएं घटने लगती है जीवन में। इससे कई बार मनुष्य बौखला जाता है या अपना संयम खो देता है। कई बार इस हालत में लोग आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं जो कि बिल्कुल गलत होता है। जीवन में जब कभी भी ऐसा लगने लगे कि कुछ भी सही नहीं हो रहा है, सब कुछ गड्डमड हो गया है, तब सबसे अच्छा होगा कि खुद को शांत कर लिया जाए… धैर्य रखा जाए। हर उस काम को किया जाए, जिसमें थोड़ी खुशी और संतुष्टि मिलती हो। अपने इस बुरे दौर के गुजरने की प्रतीक्षा करना चाहिए।
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कई बार परेशान होकर रोने का मन भी करता है तो थोड़ा रो लेने में कोई बुराई नहीं होती। ऐसा करने से हमारा शरीर तनाव हार्मोन और एंडोर्फिन जारी करता है। इसके ठीक बाद निकलने वाले ‘फील-गुड एंडोर्फिन’ यानी सुख और खुशी पहुंचाने वाले रसायन शारीरिक राहत देते हैं, जिससे आराम मिलता है। मन धीरे-धीरे अपनी टूटी किरचों को जोड़ने लगता है। इसलिए बुरे दौर में हमारा धैर्य रखना बेहद जरूरी होता है, ताकि हम पहले से ज्यादा मजबूत हो सकें। इन परिस्थितियों से उबर कर समाज के सामने एक उत्कृष्ट उदाहरण पेश कर सकें। इसलिए अपने मन की शांति के लिए समय के विपरीत चलने और हमारे मनमुताबिक चीजें नहीं होने पर चीजों को जैसी वह चल रही है, वैसे ही छोड़ देना चाहिए और उनको उसी तरह अपना लेना चाहिए। जीवन में इस तरह के उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, जो अस्थायी होते हैं और अपनी निर्धारित समय सीमा के बाद वापस लौट जाते हैं। जो चीजें स्थायी हैं, वे हमारे पास हमेशा ही रह जाती हैं, जैसे कि हम और हमारा मन। साथ ही हमारे मन की ढेर सारी ज्ञात और अज्ञात शक्तियां, जो तब तक हमारे साथ रहेंगी, जब तक यह प्रकृति है। ये पेड़, पौधे और कल-कल बहती नदियां हैं।
हमें जीवन के हर मोड़ पर हैरत में डालने वाली प्रकृति ने अपने जादू के पिटारे में हमारे लिए भी कुछ न कुछ अच्छी सौगात भी रखा है, जो सही वक्त आने पर हमें जरूर मिलेगा। इसलिए जीवन को हर रूप में स्वीकार करते हुए चलते रहना चाहिए।