राजस्थानी में एक कहावत है ‘नित बड़ी।’ मतलब कि नियमित रूप से रोजाना कार्य करना सबसे बड़ा है। महत्त्वपूर्ण है नियमितता। समय अपनी गति से चलता है। उसकी गति को तेज या कम करने का सामर्थ्य किसी में नहीं है। वैज्ञानिक प्रकृति की सौगात को नियंत्रित कर सकते हैं और कर भी रहे हैं, लेकिन समय की गति को नियंत्रित करने की कोई प्रविधि उनके पास भी नहीं है। अपने लक्ष्य के प्रति गंभीर रहते हुए जो नियमबद्धता से कर्म करता है, सफलता उसके चरण पखारती है। यह तय है कि लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं होता। अनेक विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, अपनों और परायों का विरोध भी सहना पड़ता है। बीच-बीच में गति-अवरोधक भी आते हैं, उनसे भी सचेत रहना पड़ता है, लेकिन जो धैर्य के साथ शांत चित्त से पूरी दृढ़ता से नियमित रूप से आगे बढ़ते रहने का साहस रखता है, उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने में कोई ताकत नहीं रोक सकती।
नित के महात्म्य को लेकर राजस्थानी की एक लोक कथा का मुझे स्मरण हो आया। एक गांव में शिव मंदिर था। शंकर भगवान के दर्शन करने कई लोग जाते थे, लेकिन उनमें से दो पक्के भक्त थे जो रोजाना मंदिर जाते थे। एक था गरीब किसान और दूसरा था गांव का सेठ। किसान सूर्योदय से पूर्व स्नान करके झोपड़ी में रखे मिट्टी के मटके को झुकाकर अपने मुंह में पानी भरता और तत्काल मंदिर के लिए रवाना हो जाता। उसकी झोपड़ी से मंदिर लगभग आधा कोस दूर था। मुंह में पानी भरा होने से उसे सांस लेने में दिक्कत भी होती, लेकिन वह अविचल भाव से मंदिर पहुंचता। मुंह में भरा जल शिव-लिंग पर चढ़ाता। हाथ जोड़ प्रणाम करता और फेरी लगाता। सेठजी भी सुबह-सुबह मंदिर जाते। चांदी के लोटे में दूध ले जाते।
कहानी से समझे नियमित होने का फल
विधि-विधान से शंकर भगवान की पूजा करते, दूध से अभिषेक करते। अन्न-धन का भंडार भरा रखने की प्रार्थना करते। दोनों भक्तों का नित का यही नियम था। किसान के व्यवहार पर पार्वती माता को भयंकर गुस्सा आता, वहीं सेठजी की भक्ति पर उन्हें प्रसन्नता होती। शंकर भगवान के समक्ष वे नाराजगी जतातीं कि यह किसान कैसा मूर्ख और ढीठ है कि मुंह में जल भरकर लाता है और वह जल आप पर उड़ेल देता है। ऐसे व्यक्ति को श्राप देकर सबक सिखाइए। एक यह सेठ है जो भक्ति भाव से आपकी पूजा-अर्चना करता है। दुग्ध से अभिषेक करता है। ऐसे सच्चे भक्त पर आपको कृपा बरसानी चाहिए। शंकर भगवान सिर्फ हंसते, जवाब नहीं देते।
पाप और पुण्य कर्म की समझ खुद ही आती है नजर, प्रतिफल की आस रखना मानवीय क्रिया
सर्दी की एक सुबह मूसलाधार बारिश हो रही थी। हाड़ कंपाने वाली ऐसी भयावह ठंडक थी कि घर से बाहर निकलने की कोई हिम्मत नहीं कर सकता। मगर उससे बेखबर मुंह में जल भरे सही समय पर किसान जब भगवान शंकर के दरबार पहुंचा तो पार्वती माता विस्मित थीं। हमेशा की तरह किसान ने जल से भरा अपना मुंह शिव-लिंग पर खाली किया। हाथ जोड़ प्रणाम किया, फेरी दी और रवाना हो गया। दूसरी ओर, सुबह से दोपहर हो गई, सेठजी नहीं आए। सेठजी ने अपनी हवेली से ही शंकर भगवान से माफी मांग ली थी कि प्रभो! इतनी ठंडक में आपके दर्शन करने नहीं आ सकता। शंकर भगवान ने पूछा कि बताओ देवी! सच्चा भक्त कौन?
नित्य कर्मरत रहने की प्रेरणा देती है लोककथा
पार्वती जी ने कहा सच्चा भक्त तो यह गरीब किसान है स्वामी, जो कंपकंपाती शीतलहर में भी हमेशा की तरह समय पर आपके दर्शन करने पहुंचा और आपका जल अभिषेक किया। किसान की भक्ति से खुश पार्वती माता ने शंकर भगवान से उस गरीब किसान की मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की। तब शंकर भगवान मुस्कान बिखेरते बोले कि हे देवी! इसने आज तक कभी कोई मांग रखी ही नहीं। पूरी निष्ठा और समर्पण से जो नियमित रूप से अपना कर्म करता है, मैं हर पल उसके साथ रहता हूं! यह किसान सच्चा कर्मवीर है।
कामयाबी की नई परिभाषा, छोटी सफलताओं और खुशियों से अवसाद पर काबू पाने का जादू
यह लोककथा हमें नित्य कर्मरत रहने की प्रेरणा देती है। अमीर हो या गरीब, राजा हो या रंक, सबके पास समय एक बराबर है। किसी के पास न ज्यादा है और न कम। अगर नियमबद्ध काम करने की आदत डाल लें तो हम शारीरिक और मानसिक, दोनों स्तर पर स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगे। अक्सर हम नियमित रूप से कोई काम नहीं कर पाते और जब उसमें असफल हो जाते हैं, तब नियति को कोसने लगते हैं। अधिकांश विद्यार्थियों का भी यही स्वभाव होता है। वे नित्य पढ़ाई नहीं करते। परीक्षा सिर पर आती है, तब दिन और रात पढ़ते हैं, जिससे वे मानसिक उद्वेलन के शिकार होते हैं। एकाग्र भाव से पढ़ नहीं पाते। परीक्षा की घबराहट उनकी स्मरण शक्ति को भी प्रभावित करने लगती है, जिससे वे वांछित सफलता से दूर रह जाते हैं।
बूंद-बूंद से ही भरता है घड़ा
कहते हैं, बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है, वैसे ही पल-प्रतिपल सक्रिय बने रहकर हम अपने सामर्थ्य से सफलता रूपी घड़ा भर सकते हैं। सदा मेहनत करने वाला कभी भूखा नहीं रह सकता। नित की बचत हमारा गुल्लक भर सकती है जो अर्थ-संकट के समय हमारे काम आती है। नित्य योगाभ्यास हमें तंदुरुस्त बनाए रखता है। गायक, संगीतज्ञ, लेखक, चित्रकार, खिलाड़ी नित्य अभ्यास इसीलिए करते हैं, ताकि वे अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें। वैज्ञानिक नित्य प्रति शोध में लगे रहकर समाज को नया देने में लगे रहते हैं। वे शख्सियतें ही नया इतिहास रचती हैं जो समय-प्रबंधन के साथ एक-एक पल का सदुपयोग करती हैं। उनकी नियमितता ऐसी कि घड़ी की गति गड़बड़ हो सकती है, लेकिन उनकी गति में कभी कोई चूक नहीं होती। कहा भी गया है, ‘आलस्यम् हि मनुष्याणाम् शरीरस्यो महान रिपु।’ हमारे सबसे बड़े शत्रु आलस्य को मात देते हुए अगर हम नित कर्मरत रहने का व्रत ले लेंगे, तो हम कभी असफल नहीं हो सकते, यह तय है।