समूचे उत्तर भारत में ठंड से लोग ठिठुरते-सिकुड़ते रहे। इस मौसम में इसी के साथ सिमट जाती है पूरी जिंदगी। इस तरह की जिंदगी में ठंड लोगों को कुछ और करीब ला देती है। इन दिनों एक तरह का समाजवाद दिखता है, क्योंकि यह सभी को एक ही तरह से लगती है। लिहाफ ओढ़े व्यक्ति और मां के आंचल को ओढ़ते हुए मासूम की ठंड में कोई फर्क नहीं होता। कोई यह नहीं कह सकता है कि यह अमीरों की ठंड है, यह गरीबों की। सभी को समान भाव से अपने होने का अहसास कराती है यह ठंड। हां, इससे बचाव के साधनों की उपलब्धता के आधार पर इसे कम या ज्यादा असर वाला जरूर कहा जा सकता है।
ठंड की तीव्रता और मार को लोग भले ही वैश्विक तापमान में उथल-पुथल का असर कहें, पर वास्तविकता यह है कि हमारे भीतर की ठंड लगातार विचलित हो रही है, हमारी संवेदनाओं की तरह। जब भी ठंड लगती है, तो हम केवल खुद को ही देखते हैं। यह भूल जाते हैं कि हमारे आसपास ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें ठंड का अहसास होता है। पर अपनी ठंड को हम बहुत बड़ा मानते हुए उसे दूर करने की कोशिश करने लगते हैं।
अमीर लोग ठंड और बारिश का लेते हैं आनंद
इस बार भी हाड़ कंपा देने वाली ठंड ने लुका-छिपी का खेल किया। ठंड के कई रूप हैं। भीतर तक सिहराती और बाहर तक अलसाती ठंड। इस बार भी जब ठंड की शुरूआत हुई थी, तो गरीबी के चक्र में पिसते व्यक्ति ने अपनी पत्नी की ओर लाचारगी भरी नजरों से देखा होगा, क्योंकि वह पिछले साल की तरह इस साल भी रजाई बनवाने का वादा पूरा नहीं कर पाया। उसकी पत्नी ने फिर से पुराने संदूक से गरम कपड़े बाहर निकाल लिए होंगे और बैठ गई होगी सूई-धागा लेकर, उसकी मरम्मत करने। उसके चेहरे पर उदासी होगी और गुस्सा भी। इसी क्रम में सूई कई बार अंगुलियों के पोरों पर चुभती रही होगी। आखिर बेमन से ही सही, गरम कपड़ों और फटी कथरी को दुरुस्त कर उसने हताश बैठे पति को दिलासा दिया होगा और इस तरह मन की पीड़ा और ठंड की मार को कम करने की कोशिश हुई होगी। नहीं पता कि अगले मौसम में भी रजाई बनेगी या नहीं!
एक गरीब की झोपड़ी में ठंड का प्रवेश इसी तरह होता है। गरीबों के लिए ठंड के यही मायने हैं। सर्दियों के साथ बारिश, वसंत, गरमी- हर ऋतु जहां संपन्न वर्ग के लिए मौसम का मजा उठाने का एक बहाना होता है, वहीं गरीबों के लिए यह मुसीबत का एक और कारण है। यह छिपा नहीं है कि ठंड और बारिश के साथ ही संपन्न तबके के लोग अपनी-अपनी सुविधाओं और सुकून का प्रदर्शन करने लगते हैं। कुछ लोग ठंड में गरम-गरम पकौड़े खाने और रजाई में बैठ कर चाय की चुस्कियों की तस्वीरें सबको दिखाते हैं, तो कोई बारिश में मौसम से मिलने वाले सुकून के अहसासों को साझा करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों के मन को राहत देने वाला यही मौसम वंचितों और गरीबों के लिए इतना सुकूनदेह नहीं होता।
हजारों बच्चे हर साल किसी तरह फुटपाथ पर अपने हिस्से की काट लेते हैं ठंड
फुटपाथ पर हजारों बच्चे हर साल किसी तरह अपने हिस्से की ठंड काट लेते हैं। ठंड से बचने के लिए मां के आंचल का भी सहारा होता है। प्रेमचंद की कहानी ‘पूस की रात’ में हलकू एक कुत्ते के सहारे ही रात काट लेता है। ऐसे कई हलकू हमारे आसपास ही हैं। जब ये पूरी शिद्दत के साथ ठंड का सामना करने निकलते हैं, तो ठंड भी एक बार इनकी हिम्मत के आगे सिहर उठती है। ऐसे लोगों का दिन तो किसी तरह निकल जाता है, लेकिन कभी इन्हें रात गुजारते देखा है किसी ने?
हमारे बुजुर्ग अक्सर कहा करते थे कि जब हमें हमारा दुख बहुत बड़ा लगने लगे, तब हमें उन लोगों की तरफ देख लेना चाहिए, जिनके दुख हमसे भी बड़े हैं। ठंड एक अहसास है, जिसे जितना अधिक महसूस किया जाए, वह उतने ही करीब आएगी। ठंड में अगर हम गर्मी को याद करें, तो सर्दी और गर्मी के इस झगड़े में रात कट जाएगी। सुबह फिर वही जिंदगी मुस्कराती हुई सामने खड़ी होगी। ठंड का स्वभाव बड़ा जिद्दी है। इसे जितना दूर भगाया जाए, उतना ही करीब आती है। अगर इसके सामने सीना तान कर खड़े हो जाया जाए, तो यह ठहर जाती है। थोड़ी ठिठक जाती है।
वासना और कामना तक ही सीमित कर दिया गया है प्रेम, होनी चाहिए बलिदान की भावना
इससे इतर सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है हमारे भीतर की सिकुड़ती संकीर्ण मानसिकता, जो हमें यह अहसास ही नहीं कराना चाहती कि सर्दी जानलेवा भी हो सकती है। इसे आपस में बांट लें, तो शायद उन मासूमों की घिसटती जिंदगी में कुछ पलों के लिए ही सही, ठंड से राहत का अहसास होगा। बच्चों और बुजुर्गों को ज्यादा सर्दी लगती है। क्या हम उन्हें अपने हिस्से की राहत नहीं दे सकते? जरूरी नहीं कि वह गरम कपड़ों के रूप में ही हो। आशा और विश्वास के रूप में भी हम कुछ दे सकते हैं। हमारा प्यार भरा हाथ कुछ मासूमों के सिर पर चला जाए, बस इतने से कइयों की जिंदगी संवर जाती है। उनके जीने का हौसला बढ़ जाता है। इसी तरह बुजुर्गों के पास जाकर केवल उनके दुख-दर्द ही सुन लिए जाए, उनसे प्यार से बातें ही कर ली जाए, उनके लिए तो यही है सिमटती जिंदगी का एक ठहरा हुआ सच।