इस जगत में हर किसी के साथ कोई न कोई संघर्ष चलता ही रहता है। बचपन में अच्छी तरह पढ़ाई करने, अच्छे संस्कार सीखने, अनुशासन में रहकर अच्छा नागरिक बनने और किशोर बनते-बनते मन और शरीर से सुगठित तथा संतुलित बनने का संघर्ष, फिर अपने पैरों पर खड़े होने का संघर्ष आदि। मगर जीवन को तो चलते रहना होता है, संघर्ष का परिणाम चाहे कैसा भी हो, सकारात्मक या नकारात्मक। फिर भी कोशिश करते रहना पड़ता है। कोशिश करके कामयाब होने की उम्मीद में हम सभी जुटे रहते हैं। फिर उम्मीद तो आखिर उम्मीद नहीं, एक संजीवनी साबित होती है। कहते हैं, एक कदम ही हमारी आगे की यात्रा तय कर देता है। एक-एक कदम को मिलाकर हजार कदम होते हैं। यही जीवन की निरंतरता का सूत्र है। मगर जो कदम रुकने न दे, वह उम्मीद है।

अक्सर संघर्ष को केवल एक ही नजर से देखा जाता है, जबकि संघर्ष बहुआयामी होता है। आशा और उमंग ही संघर्ष को हमारे स्वभाव में शामिल करते हैं। कभी सफलता, कभी ठोकर, कभी असफलता, कभी अंधेरा, कभी उजाला, कभी तूफान के रूप में संघर्ष परिलक्षित होता है। कई बार तो कुछ लोगों का संघर्ष सही से अभिव्यक्त भी नहीं होता। जैसे एक गृहिणी का जीवन संघर्ष। उसे दूर से देखने वाले यही मान लेते हैं कि सरल और आसान-सा जीवन है। आनंद ही आनंद है। मगर इन अनुमानों से परे एक गृहिणी का जीवन संघर्ष से लबरेज, अदृश्य और मौन भी होता है। उसकी दिनचर्या में कशमकश और जद्दोजहद होती है। सबको संभालना, सबका खयाल रखना, सबके विचारों के हिसाब से घर का एक सुखद माहौल बनाना, यह सब गृहिणी का ही संघर्ष है।

मां और पत्नी के लिए संघर्ष का पर्यायवाची खुशी और संतोष भी होता है

एक गतिमान और खुश घर उसके संघर्ष के बारे में सब कुछ कह देता है। अगर सही नजरें हों तो इस अद्भुत संघर्ष की एक झलक में उसका पूरा जीवन दिख जाता है। बच्चों के लिए पावन प्रेम उसकी आंखों से ही दिख जाता है। इसीलिए कहते हैं कि एक मां और पत्नी के लिए संघर्ष का पर्यायवाची खुशी और संतोष भी है। दुख या मलाल का उसमें कोई स्थान नहीं है। आज कहीं-कहीं, कभी-कभार किसी गृहिणी की बातों में अगर दुख दिखाई भी देता है, तो उसकी वजह उसकी कोई मजबूरी ही हो सकती है या फिर उसके सोचने का तरीका, जिसमें संघर्ष की सहजता की परतों को देखने-समझने की उसकी दृष्टि नए तरह से विकसित हुई हो।

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सामान्य तौर पर अपने जीवन में किसी भी तरह का संघर्ष करते हुए हम अपने ‘निज’ से ऊपर उठते हैं तो पाते हैं कि प्रकृति का कण-कण संघर्ष के बाद संतोष की अनुपम अभिव्यक्ति है। हमारे पास तो और भी विकल्प हैं पसंद-नापसंद, सुख-दुख को पहचानने के, लेकिन प्रकृति कोई विकल्प नहीं रखती। हमें भरोसा होना चाहिए कि हम ऐसे जगत का अभिन्न हिस्सा हैं जहां संघर्ष की ही गूंज है। दस साल तक भूदान आंदोलन के जनक विनोबा भावे सारे देश मे पैदल घूमते रहे। वे प्यार से उन लोगो से जमीन लेते, जिनके पास थी और प्यार से उन्हें दे देते थे, जिनके पास नहीं थी। उनसे संबंधित एक प्रसंग पढ़ा था। विनोबाजी के पेट मे अल्सर था, जो कभी-कभी बहुत दर्द करता था, लेकिन उनकी यात्रा नहीं रुकती थी।

संघर्ष को लेकर सकारात्मक सोच रखने से बहुत अच्छा मिलता है उसका फल

एक बार जब दर्द बढ़ गया तो चिकित्सकों ने उनकी जांच की। अच्छी तरह से देखभाल करके उन्होंने विनोबा जी से कहा, ‘आपकी हालत गंभीर है। आप आठ महीने आराम करें।’ विनोबा जी ने मुस्कुराकर कहा कि हालत अच्छी नहीं है तो आपने चार महीने क्यों छोड़ दिए? आपको कहना चहिए था कि बारहों महीने आराम करो। चिकित्सकों ने कहा कि आप पैदल चलना छोड़ दें। विनोबाजी ने उसी लहज में जवाब दिया, ‘मेरे पेट में दर्द है, पैरों में नहीं।’ विनोबाजी ने एक दिन के लिए भी अपनी पदयात्रा बंद नहीं की। लोगों ने जब बहुत कहा तो उन्होंने जवाब दे दिया, ‘सूर्य कभी नहीं रुकता, नदी कभी नहीं ठहरती, उसी अखंड गति से मेरी यात्रा चलेगी।’ उनकी इस एकाग्रता का ही नतीजा है कि बिना किसी दबाव के, प्यार की पुकार पर उन्हें कोई पैंतालीस लाख एकड़ भूमि मिल गई। यह है आशा सहित संघर्ष का सुपरिणाम। जाहिर है, संघर्ष को लेकर सकारात्मक सोच रखने से उसका फल बहुत अच्छा ही मिलता है।

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यह संघर्ष वास्तव में अनंत है और संघर्ष करते हुए उम्मीद से परिपूर्ण व्यक्ति को इसीलिए अनमोल कहा जाता है। यह दुनिया कुछ भी कर ले, पर इस जगत में रहने के लिए आखिरकार हमें संघर्ष का सामना करने की सहमति पर ही आना होगा। संघर्ष को चुनने की आदत ही हमारी आत्मा से रोजमर्रा की जिंदगी से शिकायत की धूल और मैल को धो देती है। जो लोग ऐसा करते है वे खुद ही पाते हैं कि यह विचार ही सबसे अच्छा है और इसमें ऐसा कुछ है जो जीवन को सार्थक बनाता है। यों भी संघर्ष के बाद जो कामयाबी मिलती है, उसका स्वाद ही खास होता है। ठीक इसके उलट जब किसी व्यक्ति को बिना मेहनत और संघर्ष के कोई बड़ी कामयाबी मिल जाती है, तब उसके भीतर नाहक ही दंभ अपना घर बना लेता है। फिर संघर्ष की गरिमा नहीं रह जाती और वहां खोखली बुनियादी पर खड़े होकर ऊंचे सपने देखे जाते हैं।