इस संसार में केवल दिन काटना नहीं, बल्कि उमंग सहित सक्रियता ही सबसे अच्छी बात है। सक्रिय रहने के लिए उत्साह और तरंग चाहिए। यह उत्साह और उमंग मन को बदलने या बहलाव से पैदा होती है। कृषि प्रधान देश भारत में घंटों तक खेत में गुड़ाई, निराई, सिंचाई और अनाज काटने वालों को कभी गौर से देखा जाए तो पता चलता है कि वे सभी हंसते रहते हैं, कुछ न कुछ गाते रहते हैं या सामूहिक भोजन करते हैं। इस तरह वे अपनी उमंग और तरंग को बरकरार रखते हैं। शाम को अपने घर लौटते समय भी वे उत्साह से खिलखिल करते मिल जाते हैं।

अपने काम को खुशी-खुशी करने के लिए इस जगत में उत्साह ही एक बेहतरीन प्रेरक है। हमारा वास्ता किसी न किसी रूप में इससे रहता ही है। सुबह की सैर के लिए जाते समय उत्साह भरने के लिए तितलियों के झुंड शीतल हवा, विद्यालय के लिए भागते बच्चे- ये सब हमको जोशीला बनाना चाहते हैं। मगर क्या हमने गौर किया है कि आमतौर पर कुछ पाठशालाओं में सप्ताह में एक दिन दो-चार घंटे के लिए विद्यार्थियों को कुछ मजेदार श्रमदान करने के लिए कक्षा से बाहर बुलाया जाता है।

कुछ तो बगीचे के सूखे पत्ते बीनते हैं, कुछ अपने कोमल हाथों से प्यासे पौधों को सींचने लगते हैं आदि। कहने का अर्थ है कि उत्साह और उमंग से जीवन का जुड़ाव बनाने की सरल और सफल कोशिश होती है। बहुत देर तक पैदल चलता राहगीर एक हरा-भरा बाग देखकर रुकता है। बगीचों में कूकती कोयल, इधर-उधर डोलती गिलहरी को वह मंत्रमुग्ध होकर सुनता है। कलकल करती बहती नदी या झरने के स्वर में थका और प्यासा आदमी अपनी प्यास और थकान को भूल जाता है। वह फिर से दोगुने उत्साह को पा जाता है।

इस जगत की हर चीज कुदरत का नायाब सृजन

एक समाज मनोवैज्ञानिक पहलू यह है कि मनुष्य का समाज और उसका परिवेश उसको जोशीला बनाने में कोई कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। दरअसल, समाज ही ऐसी गतिविधियों का मंच बन सकता है, जिसमें हमें अधिक से अधिक शामिल होना चाहिए, मगर अकेले और अलग-अलग होकर इसी शानदार लाभ से दूर रहकर हम अपने आप को उमंग से विलग कर रहे हैं। जो लोग उत्साह और उमंग से रहित हैं, वे नकली होने लगते हैं। यहां इस समाज में वह जो नहीं हैं, वही होने का ढोंग करते हैं। इस ढोंग के संदर्भ में ही मनोवैज्ञानिक कार्ल रोजर्स ने लिखा था कि भले ही मानव की औसत आयु बढ़ रही है, पर उमंग की कमी छल-कपट और ढोंग बढ़ने के कारण मनुष्य हर पल मर रहा है।

किशोरावस्था अपने आप में उम्र का सबसे कठिन मोड़, नाजुक मन की उलझनों को समझना जरूरी

रोजर्स की लोकप्रिय किताब ‘आन बिकमिंग अ पर्सन’ आडंबरों से परे कुदरती होना और उत्साहपूर्ण रहना सिखाती है। रूसी कथाकार चेखव ने एक दिन के दिखावटी जीवन को भी दुख, मूर्खता, दुर्भाग्य और बुराई कहा है। इस जगत की हर चीज कुदरत का वह नायाब सृजन है, जिस पर मंत्रमुग्ध हुए बगैर रहा नहीं जा सकता है। कहीं पढ़ा था कि गारे और सीमेंट के स्टूडियो में काम करने के बाद हरी घास पर लोटना और झरने के समीप ध्यान में डूब जाना… इससे बेहतर उमंग और तरंग कुछ और नहीं है। कुदरत ने अपनी हर संपदा को हम सबके उपयोग और कल्याण के लिए ही परोसा हुआ है। नदी, झील, वन, उपवन, पहाड़, चोटियां, सागर, महाद्वीप, रेत के टीले हम सबको सहलाने और बहलाने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। यह उत्साह देने वाले एकदम निशुल्क टानिक हैं। मगर हम ही नादान हैं, जो इनका लाभ ही नहीं ले रहे।

त्योहार समाज द्वारा दी हुई उमंग

विलासिता और सुख में डूबकर उदास हो गए एक राजकुमार की कहानी भी अनुकरणीय है। राजकुमार में उमंग भरने के लिए उसके गुरु उसे गांव लेकर जाते हैं। राजकुमार अपने लिए पीने का जल खुद कुएं से लाता है। भूख लगी तो खेतों से सब्जी और फल खोजता है। मनोरंजन चाहिए तो खुद ही कुछ गुनगुनाता है। इस तरह उसकी सारी ऊब मिट जाती है। वह बहुत सारे नए विचार और उत्साह के साथ वापस महल में आता है। अगले दिन से एक जोश भरी दिनचर्या में रम जाता है। दरअसल, उत्साहपूर्ण मानसिकता में किसी भी ऊब या अवसाद की मनोभावनाओं को खत्म करने की अपूर्व क्षमता है। कई बार उमंग हमको असाधारण कामों से जोड़ देती है। शायद यही वजह है कि कुछ लोग बगैर धन और बगैर अच्छी खुराक के भी केवल उत्साह के दम पर नहर बना देते है, पहाड़ से सड़क निकाल देते हैं। दुर्गम पर्वत तक लांघ जाते हैं। उमंग के झरने से नहा कर दिनचर्या की अनंत जद्दोजहद से भी लोग आनंद और संतोष का रसपान कर लेते हैं। इस जोश और उमंग से व्यक्ति को नवीन ऊर्जा मिलती है जो उसे थकान या पराजित होने के भाव से मुक्ति दिलाने में सहायक होती है।

बदलाव के दौर में गांवों के अस्तित्व का संकट, शहरी संस्कृति की तरफ बेतहाशा दौड़ रहे लोग

यह जोश न केवल व्यक्ति के मानसिक धरातल को परिमार्जित करता है, बल्कि मन और शरीर को एकाग्र कर विभिन्न समस्याओं के समाधान में भी सहायक होता है। त्योहार समाज द्वारा दी हुई उमंग है। पर्व, मेले आदि में शामिल होने से एक तरोताजा सी अनुभूति होती है। जाहिर है, जीवन में शामिल कुछ नयापन या कुछ बदलाव आदि केवल कोई मान्यता का पालन या मन बहलाव नहीं है। इससे सबके अंतस में आनंद की अनुभूति होती है। जाने-माने मनोवैज्ञानिक एडलर ने अपने प्रयोग में माना है कि जिस इंसान में उत्साह होगा, उसमें तनाव का हारमोन अपना घातक असर नहीं के बराबर करता है। बीमारी या संक्रामक रोग उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाते हैं। इसलिए यह जोश सकारात्मकता को बढ़ा कर मानव समस्याओं के निराकरण में सहायक सिद्ध होता है। दरअसल, उमंग से भरा मन जलन, रोष, क्लेश, चिंता, तनाव, मनोरोग और विभिन्न प्रकार के विकारों को पैदा नहीं करता है। इसीलिए निरोग जीवन के लिए जोश तथा उत्साह का होना काफी महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो चुका है।