सच है कि हर कोई बोलना तो बचपन में सीख जाता है, लेकिन अपनी बोलचाल में सही शब्दों का चयन कई बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं सीख पाते। उचित शब्दों को चुन कर, सही समय पर बोलना अच्छे-अच्छों को भी सीखते-सीखते ही आ पाता है। और जो सीख ले, वह कई बड़ी बहसों से पैदा झगड़ों से खुद को बचा लेता है। नतीजतन, परस्पर रिश्तों में कटुता नहीं आ पाती। बहस एक भंवर ही है, जिसमें पड़ने से न चाहते हुए भी कठोर और कटु शब्द निकल ही जाते हैं। खासतौर पर आजकल बहसों का जो स्वरूप होता जा रहा है, वह विमर्श कम, टकराव ज्यादा लगता है।
हालांकि बहस करना या न करना परिस्थिति और उद्देश्य पर निर्भर करता है। तर्कसंगत नजरिए से की जाने वाली बहस बेशक सोच-समझ की क्षमता बढ़ाती है और अपने विचारों को प्रभावी ढंग से व्यक्त करना सिखाती है। यह कभी-कभी समाधान तक पहुंचने का प्रभावी तरीका भी बनती है, लेकिन साथ-साथ बहस से रिश्तों में तनाव आता है, रिश्ते बिगड़ते हैं और दोनों ओर की शांति भंग होती है।
इंसानी दिमाग में सही और गलत को विभाजित करने की होती है क्षमता
बहस का अर्थ बात-बेबात आपसी वाद-विवाद, तर्क-वितर्क, सवाल-जवाब, शाब्दिक या जुबानी असहमति और वाक्युद्ध होता है। इंसानी दिमाग में सही और गलत को विभाजित करने की क्षमता होती ही है। इसीलिए सच भी है कि अगर ध्यानपूर्वक दिमाग की सुनें, तो छोटी-बड़ी बेमतलब की बहस से बचा जा सकता है। ओशो की राय भी है कि शांति तभी आती है, जब हम बेकार की बहस से प्रभावित होकर विचलित होना बंद कर देते हैं।
जिज्ञासा की कुंजी खुलते ही मूढ़ता और अज्ञानता चली जाती है हमसे कोसों दूर
एक सुनी-सुनाई कहानी है कि गधे और बाघ के बीच बहस छिड़ गई। गधा कहने लगा कि घास नीली है। बाघ बोला, ‘नहीं भाई, नीली नहीं, घास तो हरी है।’ गधा अपनी बात से टस से मस नहीं हुआ। बाघ ने सलाह दी कि ‘बहस छोड़ो। चलो, जंगल के राजा से फैसला करवा लेते हैं।’ दोनों बब्बर शेर के पास गए। गधा बताने लगा, ‘महाराज देखिए, मैं इसे कह रहा हूं कि घास नीली होती है, लेकिन यह है कि मानता ही नहीं। कहता है कि घास हरी होती है। अब आप ही बताइए कि कौन सही है और कौन गलत?’ शेर गधे से बोला, ‘बेटा, तू ठीक कह रहा है कि घास नीली होती है।’ सुन कर, गधा खुशी से झूम उठा।
शेर ने आगे कहा, ‘बाघ, तुमने गधे से बहस की, उसका समय खराब किया। इसलिए तुम्हारी सजा है कि तुम्हें एक दिन मौन रहना होगा- बिल्कुल खामोश।’ बाघ की हार और दंड पर तो गधे की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। गधा नाचते-गाते चला गया, तब बाघ ने शेर से जानना चाहा कि आप कैसे राजा हैं? मैं जानता हूं कि घास हरी होती है। सभी जानते हैं कि घास हरी होती है। बावजूद इसके आपने कैसे गधे से सहमति जता दी कि घास नीली होती है? शेर सहज भाव से समझाने लगा, ‘तू, मैं और सभी जानते हैं कि घास हरी होती है, लेकिन गधा ही क्यों कह रहा है कि घास नीली होती है। तुझे इसी बात की सजा मिली है कि इस बात पर तुम गधे के साथ बहस कर रहे हो।’
बिना उद्देश्य की बहस करता सही बात नहीं
वाद-विवाद में पड़ना बुरा नहीं है, बुराई तब है, जब इंसान बिना उद्देश्य की बहस करता है और अपना विवेक खोता है, आपे से बाहर हो जाता है। वास्तव में विवेकशीलता से ही अपनी बेमतलब की बहस का बोध हो सकता है। जब-जब चित्त शांत होता है, मन-मस्तिष्क में स्थिरता होती है, तब-तब कोई भी भड़कीली बहस कर ही नहीं सकता। इसीलिए नासमझ ही बेसिर-पैर की बहस को बढ़-चढ़ कर हवा देते हैं, जबकि समझदार खुद पर काबू रख बहस से दूर हट जाते हैं। सयाने बताते हैं कि अपने संवाद में नपे-तुले शब्दों का चयन संसार की बहुतेरी परेशानियों से बचाने का दम रखता है। यही सुंदरता तमाम सांसारिक विवादों से भी बखूबी बचाती है। यानी बहस से दूरी और अच्छे शब्द ही बहस के भंवर से उभरने वाले संकटों से मुक्ति दिला सकते हैं। किसी ने सही कहा है कि मन, दिमाग और जुबान परेशानियों के घर बन जाएं, तो वे परेशानियां और भी नई परेशानियों को पैदा कर घर बसा लेती हैं। नाहक बहस से बचना एक अच्छा काम ही है। खासतौर पर वैसी और वैसे लोगों के साथ होने वाली बहसों से, जिनकी दिशा बिगड़ जाने की आशंका हो।
भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं में शून्यता को दिया गया है महत्त्व, मनुष्य का अस्तित्व एक गूढ़ रहस्य
जीवन में खुशी और खुशहाली तब आती है, जब इंसान बहस करके दूसरों को बदलने की कोशिश करना छोड़ देता है। रूसी साहित्यकार चेखव यशमय जीवन के तीन सरल सूत्रों का जिक्र करते हैं, ‘सदा धीरे बोलो, कम बोलो और मीठा बोलो।’ कम बोलना बहस नहीं होने दे सकता। समझना चाहिए कि किसी से किसी भी तरह के मुकाबले की जरूरत नहीं है। दुनिया में कम ही लोग हैं, जो अनुभव से सीखते हैं। एक दिन बहस की, दूसरे दिन विरोध किया, तीसरे दिन क्रोध का पारा चढ़ गया, लेकिन रुके नहीं। अपना जीवन व्यर्थ कर दिया, जीवन का सार सीखे नहीं। बार-बार रोज-रोज की बहसों से कुछ हासिल नहीं होता। अगर किसी ने जीवन में इस मंत्र का इत्र निचोड़ लिया, तो आने वाला समय महक उठेगा।