एक बेहतर जीवन तभी जिया जा सकता है, जब हम अपने विचारों पर निरंतर गौर करते रहें। सोच- विचार ही हमारी हर गतिविधि और हमारी दिनचर्या के रंग-रूप को निर्धारित करते हैं। शोध बताते हैं कि हर पल हम विचारों के घेरे में ही रहते हैं। तरह-तरह के हजारों विचार हर समय हमारे विवेक को चुनौती देते रहते हैं। यह सच है कि हमारे विचार हमारे माहौल के अनुसार ही पैदा होते हैं। हम सबने महसूस किया है कि जिस समय हम सजधज कर किसी दावत या जश्न में अपने मनपसंद साथी के संग शामिल होते हैं, उस समय हमारे विचार उमंग तथा आनंद से भरे होते हैं।
जब हम किसी विपरीत या अनचाहे माहौल में होते हैं, तब हमारे विचार बेहद नकारात्मक या उदासी भरे होते हैं। मसलन, जब हम टिकट आदि के लिए लंबी कतार में प्रतीक्षारत होते हैं या फिर सड़क पर जाम में फंसे हुए होते हैं तब हमारी विचारशीलता एकदम अलग होती है।
विचारों के बोझ से दबे रहते हैं हम
दरअसल, आमतौर पर हम अपने माहौल से प्रभावित होकर अपने विचारों के बोझ से दबे रहते हैं और उसी के अनुरूप व्यवहार करते हैं। मगर इतिहास गवाह है कि जो माहौल से अलग हटकर व्यावहारिक बुद्धि का इस्तेमाल करता है वह जीवन को संवार और निखार लेता है। यह सन 1912 के ओलंपिक खेलों की बात है, जहां जिम थार्प, जो ओक्लाहोमा के एक मूल अमेरिकी थे, अमेरिका का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। जिस दिन उनकी प्रतियोगिता होनी थी, किसी ने चुपके से उनके जूते चुरा लिए, ताकि वे दौड़ में शामिल न हो सकें। जिम को वहां किसी ने कहा कि तुरंत इसकी शिकायत करो, अर्जी लिखो। मगर जिम जानते थे कि इसमें समय बर्बाद होगा।
उनको तो मिनटों में ही जल्दी कुछ करना था। जिम ने ठंडे दिमाग से सोचा। पास ही एक कचरा पात्र को खंगाला और उसमें से दो जूते खोजे और वही पहन लिए। मगर इनमें से एक जूता बड़ा था, इसलिए उन्हें एक अतिरिक्त जुराब भी पहननी पड़ी। इन असमान से जूतों को पहनकर भी जिम ने उस दिन दो स्वर्ण पदक जीते। यह घटना अपने माहौल को सूझ-बूझ से सकारात्मक बनाने और विजेता बनने का एक महान उदाहरण बना। एक समाचार पत्र ने तो यहां तक लिखा कि वह जलनखोर और नादान जूता चोर अब बहुत पछता रहा होगा, क्योंकि ईर्ष्यालु होकर उसने एक विजेता की राह में बाधक बनने का पाप अपने सिर ले लिया।
जीवन की परेशानियों को नहीं बनने देना चाहिए बहाना
हमें अपने जीवन की परेशानियों को बहाना नहीं बनने देना चाहिए। क्या हुआ अगर जिंदगी हमेशा न्यायपूर्ण नहीं रही! सवाल यह है कि आज हम इसके बारे में क्या करने वाले हैं। चाहे सुबह उठते ही हमें कोई कठिनाई मिली हो- चोरी हुए सामान, खराब सेहत, असफल रिश्ते या कोई डूबा हुआ व्यापार। इन्हें अपने सफर में बाधा नहीं बनने देना चाहिए। हमारे पास या तो बहाने हो सकते हैं या फिर परिणाम, लेकिन दोनों एक साथ नहीं। अपने जीवन में हम अक्सर बहुत सारी चीजों के दर्द को कंधे पर लादे हुए फिरते हैं। अपने गलत फैसले को सही या गलत के सांचे में फिट कर देते हैं। असली बात यह है कि हालात न तो कभी सही होते हैं, न कभी गलत होते है। इसे एकतरफा हुए बगैर समझा जा सकता है। यानी जो कुछ भी अनचाहा है उसे भुलाया जाना, छोड़ देना, माफ कर देना और आगे बढ़ जाना हमारे हाथ में है और एकदम संभव भी है।
निरंतरता और सफलता के बीच है गहरा संबंध, लक्ष्य को प्राप्त करना होता है आसान
जिस जगत में हम जीवन यापन करते हैं, वह एक गहरी चेतना से सराबोर आईना है। यह चेतना ही हर चीज को संभालती है या गिरा देती है। जो चेतना को सबसे ऊपर रखते हैं, जीवन उनको गतिमान करता रहता है। हम अपने आज पर बीते कल को किस तरह लागू कर रहे हैं, यह पूरी तरह से हमारे ही हाथ में है। कटु स्मृति हर किसी के साथ होती है। मगर सच्चे और सही लोग उससे हटकर सुखद याद के झूले में ही झूलते हैं। सूझ-बूझ का मजबूत घेरा हमें हर तरह की असहजता से लोहा लेना सिखा देता है। ऐसे मजबूत दिमाग वालों से हम खाली गिलास के बारे में सवाल करेंगे तो वह हंसते हुए कुछ जवाब देंगे कि गिलास तो हवा से लबालब है।
सूझ-बूझ का मजबूत घेरा हमें हर तरह की असहजता से लोहा लेना सिखा देता है
जिस तरह हम अपने कमरे में कोई कचरा नहीं रखते, अपने तन पर मैल नहीं जमने देते, उसी तरह मन को भी हर तरह के कचरे से मुक्त ही रखना चाहिए। बुरी भावना, बुरी आदत, बुरे विचार पर एकाग्रता यह हमको वैसा ही बुरा बना देता है। हमारे विचार जीवन के ऐसे वाहन हैं, जो हमें उन्नति या अवनति के सफर पर ले जाते हैं। इस संदर्भ में एक प्रसंग का जिक्र किया जा सकता है। एक जिज्ञासु छात्र ने अपने अध्यापक से पूछा कि व्यक्तित्व में निखार के लिए हमें क्या करना चाहिए? अध्यापक ने कहा कि लोग हमें चार तरीके से देखते-समझते हैं।
खेलिए, कूदिए, हंसिए… ‘किडल्टिंग’ से लौट रही मासूम खुशियां
हम क्या बोलते हैं, कैसे बोलते हैं, क्या करते हैं और कैसे दिखते हैं। इन्हीं के हिसाब से हमारा अच्छा प्रभाव पड़ सकता है और बुरा भी। अक्सर देखने में आता है कि लोग अधिक लगाव और चाव बस अपने पहनावे पर रखते हैं, ताकि उनके पहनावे से दूसरों पर प्रभाव पड़ सके! असल में पहनावा तो एक छोटा-सा पहलू हो सकता है। सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू यह है कि हम अपने विचारों से दूसरों को अपने प्रति कैसा अनुभव करा सकते हैं, ताकि सामने वाले को लगे कि वह कुछ खास है। जो हमसे मिलकर खुद को खास महसूस करेगा, वह हमसे और भी अधिक बार मिलना चाहेगा।
हमारा मन इस ब्रह्मांड की व्यापक व्यवस्था का हिस्सा है। इसलिए मन की सेहत बहुत जरूरी होती है। हम गंदे, मटमैले और प्रदूषित विचारों के साथ अच्छा जीवन नहीं जी सकते हैं। दार्शनिक सुकरात अपने शिष्यों को यही बात समझाते थे कि यह जिंदगी आपकी है, इसे कोई और नहीं चला सकता… न कोई जीव-जंतु और न कोई दुखद वातावरण। यह केवल हमारी जिम्मेदारी है। हमें अपनी संतुलित सोच से इसे खुशी-खुशी निभाना चाहिए।