गांव शब्द आते ही हम और आप खेतों, किसानों, ग्रामीण महिलाओं, और गलियों में खेलते बच्चों की कल्पना करने लग जाते हैं। हालांकि अब गांव भी वैसे नहीं रहे जैसे कि हमारी कल्पनाओं में अब तक रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में जिस तरह सामाजिक और आर्थिक जटिलताएं रही हैं, उसके मद्देनजर देखें तो कुछ मायनों में यह काफी अच्छा है कि हमारे गांव आज की दुनिया से जुड़ रहे हैं। आज की दुनिया तकनीक और प्रचार पर चलती है। गांव के लोग भी समझ रहे हैं कि अगर दुनिया में टिके रहना है तो हमें इन सभी चीजों को अपनाना होगा।
मगर इस क्रम में जो दिशा अपनाई गई है और जो रफ्तार है, इससे जो समझ विकसित और मजबूत हो रही है, उसने गांव को गांव से दूर कर दिया है। जहां गांव की सरलताएं शहरों में पहुंचनी चाहिए थी, वहां शहर गांवों तक पहुंच गए हैं। इमारतें बन गईं, खेत कट गए, जंगलों का हाल बेहाल हो गया। यहां तक कि दूरदराज के गांवों की दशा यह होती गई है कि वे खाली होते जा रहे हैं। इसके अलावा, गांव की सरलता और सहजता अब धीरे-धीरे गायब होती दिखने लगी है।
तेजी से खाली हो रहे गांव
गांव जिस तरह शहरों से जुड़ रहे हैं, वहां तक तो ठीक है, लेकिन इस क्रम में जो चीजें पीछे छूट गई या जो लोग पिछड़ गए, उनका अस्तित्व संकट में पड़ गया है। वे गांव कई-कई स्तर पर खाली हो गए, क्योंकि उनके बाशिंदे रोजगार, नई दुनिया की तलाश, बराबरी के माहौल और अपने भीतर के गांव को निकालने शहर आ गए। शहर में बसने का एक मुख्य कारण शिक्षा भी रहा। शिक्षा, रोजगार, नौकरी, पैसा, शोहरत सभी शहर में है, तो फिर प्रश्न है कि गांव का क्या होगा? गांव को किसने इस हाल में छोड़ दिया कि लगातार ‘अहा ग्राम्य जीवन’ के राग और महिमामंडन के बीच गांव लाचार होते चले गए? आज भी ऐसे गांवों को देखा जा सकता है जिनका ज्यादातर हिस्सा खाली हो गया है। कुछ लोगों ने वहां बड़े-बड़े आशियाने बसाए, लेकिन अब वहां सिर्फ पक्षी बैठते हैं। उन घरों को देखकर ऐसा लगता है कि उन्हें मेहनत और आशा के साथ बनाया गया था, लेकिन उन सब पर शहर हावी हो गया और गांव पीछे छूट गया।
हर पल विचारों के घेरे में ही रहते हैं हम, माहौल से अलग हटकर व्यावहारिक बुद्धि का करना चाहिए इस्तेमाल
ऐसे तमाम लोग हैं, जिनके भीतर अपने कुछ मित्रों, रिश्तेदारों का शहरी जीवन देखकर घर के प्रति लगाव कमजोर पड़ गया और वे शहरी संस्कृति की तरफ बेतहाशा दौड़ने लगे। इनके मूल में एक वजह यह भी है कि गांव में रोजगार की कमी है। सरकारें आईं और गईं। योजनाएं भी लाई गईं और उन्हें कार्यान्वित करने की कोशिश आज भी जारी है, लेकिन छोटे-मोटे कामों, इंसानी और छोटे कारोबारियों के अतिरिक्त अधिकतर गांवों की दशा ठीक नहीं है। ऐसे में मजबूर परिवार गांव छोड़ देते हैं। किसी के गांव से शहर चले जाने पर कई बार सवाल तो उठाया जाता है, लेकिन शहर का रुख करने की वजहों पर शायद गौर नहीं किया जाता। जो लोग गांव में जीवन के जीवंत अनुभवों के साथ जीते हैं, उनके सामने आखिर कैसी परिस्थितियां पैदा होती हैं कि वे गांव छोड़ कर बाहर निकल जाते हैं?
गांवों में मिलती थी शुद्ध हवा-पानी
भले ही शहर के किराए के कमरों में छोटी- सी घुटन भरी जगह में रहना पड़े, सिर्फ शहर में रहने के लिए लोग मजबूरीवश खुला आकाश भूल जाते हैं। छोटी-छोटी चीजों के लिए संघर्ष करना उनकी दिनचर्या का भाग बन जाता है। लेकिन जब कुछ लोग अपने बच्चों को शहर दे पाते हैं तब भी वे गांव वापस लौटना पसंद नहीं करते हैं। शहर उनकी आस बन जाता है और गांव उनका इतिहास हो जाता है। वे अब कभी नहीं लौटना चाहते उन घरों में जिनमें वे कभी बहुत खुश रहते थे और खुले गलियारों में जहां उन्हें सांस लेने के लिए शुद्ध हवा मिलती थी। ऐसा क्यों हुआ? इसके बहुत से कारण हो सकते हैं, लेकिन शहरों का भी कम बुरा हाल नहीं है। भीड़ बढ़ने से शहरों की स्थिति बहुत खराब हो गई गई है। शहर में प्रदूषित हवा, अस्वच्छता, कंक्रीट की इमारतें, वृक्षविहीन सड़कें, वाहनों का शोर, मनुष्य की टकराहट और भावनाओं के आवेग का प्रदूषण है। इसे चाहकर भी मिटाना संभव नहीं है। ऐसे में क्या किया जाए? क्यों न गांव के खालीपन को भरा जाए और वहां भी शहर जैसा विकास किया जाए, ताकि लोग गांव छोड़कर न जाएं?
रोजगार, शिक्षा, कारोबार, तकनीक नई दुनिया से गांव का परिचय करवाकर ऐसा संभव हो सकता है। फिर लोग लौटने लगेंगे अपने खाली पड़े आशियानों में, खेतों में रौनक होगी, जंगल फिर बढ़ेंगे, शहर भी सांस लेने लगेंगे और सब ठीक होने लग जाएगा। शहर और गांव अलग-अलग होंगे, पर कदम-ताल मिला सकेंगे। गांव के बच्चे भी शहर के बच्चों की तरह पढ़ सकेंगे, तकनीकों से अवगत हो सकेंगे। गांव का सूनापन भर उठेगा, आंगन खिल उठेगा, वही शहर का शोर-शराबा थोड़ी राहत देगा और कोलाहल शांति में तब्दील हो जाएगा। शहर स्वच्छ और सुंदर बनेंगे, गांव न केवल खेती, बल्कि हर क्षेत्र में आगे होंगे, इसके लिए दोनों ही व्यवस्थाओं को संरक्षित करने का प्रयास करना होगा। न केवल सरकार को, बल्कि व्यक्तिगत तौर पर हम सबका कर्तव्य है कि गांव और शहर की व्यवस्था को सही रूप में लाएं। इसी में राष्ट्र का विकास निहित है। ये ही हमारे राष्ट्र को गांव की संस्कृति की तरफ लेकर चलेगा, जिसमें प्रेम, करुणा, संवेदना, कल्याण और मानवीय हित निहित होगा।