गलत निर्णय का बोझ हमें अक्सर परेशान करता है। जिंदगी में हमें कई निर्णय लेने पड़ते हैं। कई बार ये आगे चलकर गलत भी साबित हो सकते हैं। मगर इसके लिए जिंदगी भर पछताने और दुखी रहने से कोई फायदा नहीं होता। इसके बजाय उन अच्छे निर्णयों के लिए लिए खुद को सराहने की जरूरत है, जिनके कारण हम आज यहां तक पहुंचे। आमतौर पर गलत निर्णयों की संख्या कम और सही निर्णयों की अधिक होती है। रिश्तों से अपेक्षाओं का बोझ बहुत भारी होता है। कई लोग इसी में उलझे रहते हैं कि फलां रिश्तेदार ने हमें शादी में मान-सम्मान नहीं दिया, वहां से न्योता ढंग से नहीं आया, खाने के लिए नहीं पूछा, ठीक से बात नहीं कि आदि। अपेक्षाएं सिर्फ दुख-दर्द ही देती हैं, इसलिए ऐसी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।
दुनिया भर के काम का बोझ व्यक्ति को कहीं का नहीं छोड़ता। कुछ लोगों की आदत होती है कि वे सबका काम अपने सिर पर लाद लेते हैं। चाहे परिवार की बात हो या रिश्तेदार की या फिर दफ्तर की। ऐसा लगता है जैसे हर किसी की मदद की जिम्मेदारी उन्हें ही उठानी है। उतना ही काम लेने की जरूरत है, जिससे हमारी जिंदगी दूभर न हो। इन दिनों सामाजिक हैसियत का बोझ सबसे भारी माना जाने लगा है। ज्यादातर लोग आमदनी न होने के बावजूद अपने पड़ोसी, मित्रों या रिश्तेदारों के बीच अपना रोब कायम रखने के लिए आए दिन महंगे घरेलू उपकरण, कपड़े आदि खरीदते हैं या फिर जरूरत न होने के बावजूद महंगा फ्लैट या कार खरीद डालते हैं। इसके बाद लोगों से कर्ज या मासिक किस्तें चुकाने में पूरी जिंदगी बिसूरते हुए गुजारते हैं।
लोगों की इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं
कमाई से असंतोष का बोझ रात को चैन से सोने नहीं देता और दिन में चैन से बैठने नहीं देता। इच्छाएं कभी पूरी नहीं होतीं। दुनिया भर में ऐसे लोग गिनती के मिलेंगे, जो अपनी आय से संतुष्ट रहते हैं। जैसा कि कहा गया है संतोषम् परम् सुखम्। ऐसे ही लोग दुनिया के सबसे सुखी इंसान होते हैं। हम लगातार पैसा कमाने के पीछे भागते रहेंगे, तो जो हमारे पास मौजूद है, उसका उपभोग कभी नहीं कर पाएंगे। कई लोग आज की तारीख में अच्छी कमाई, अच्छे जीवनसाथी, अच्छे आज्ञाकारी बच्चों के होते हुए भी कई बार अचानक अवसाद के सागर में गोते लगाने लगते हैं। दरअसल, वे इस सोच में डूब जाते हैं कि आज तो सब ठीक है, कल को अगर कारोबार ठप पड़ गया, नौकरी छूट गई, जीवनसाथी को कुछ हो गया या बच्चे नालायक निकल गए तो क्या होगा? इसलिए सुखी और आनंदित रहना है तो वर्तमान में जीना चाहिए।
जीवन जीने का एक दृष्टकोण है कृतज्ञता की भावना, हर छोटी घटना में छिपी होती है बड़ी सीख
इसके अलावा, अगर इस बात की हम परवाह करेंगे कि लोग क्या कहेंगे, तो हमें हमेशा दूसरों की अपेक्षाओं के हिसाब से जीना पड़ेगा। जाहिर है, ऐसे में हम खुद की बेहतरी, खुशी और सुकून के लिए वक्त नहीं निकाल पाएंगे, बल्कि हर वक्त दूसरों को खुश करने में लगे रहेंगे, उनका काम करते रहेंगे। जब हम खुद की जरूरत की बजाय दूसरों की परवाह करते हैं तो अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णय सही तरीके से नहीं ले पाते। हम धीरे-धीरे अपना मूल स्वभाव और व्यक्तित्व खोने लगते हैं।
जीवन को बोझिल बना देती हैं बीमारियां
आत्मविश्वास में लगातार कमी आने लगती है और हर वक्त यह परवाह लगी रहती है क्या लोगों ने हमारे काम, आचरण और व्यवहार को पसंद किया? हम अक्सर बेचैन परेशान और व्यस्त रहने लगते हैं। इसलिए इस बोझ को तुरंत उतार कर फेंकने और मस्ती से अपना जीवन अपनों के लिए, स्वयं अपने लिए और अपनी खुशी के लिए जीना शुरू कर देना चाहिए। ठीक इसी तरह बीमारियां जीवन को बोझिल बना देती हैं। बीमार नहीं होना या होना पूरी तरह हमारे नियंत्रण में नहीं है, लेकिन हम अपनी शारीरिक और मानसिक सेहत पर ध्यान देकर इसे काफी हद तक काम कर सकते हैं।
मौन का अर्थ- शब्दों, गतिविधियों, क्रियाओं और विचारों का संतुलन
जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाना हमारे हाथ में है। इसके लिए हमको अपने परिवार, दोस्तों और सामाजिक दायरे में घुल मिलकर रहना चाहिए, उनसे नियमित संवाद करना चाहिए और जमकर गपशप और हंसी-मजाक करना चाहिए। नियमित रूप से नई चीजें सीखते रहा जाए तो याददाश्त अच्छी रहेगी, मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा और जीवन में उमंग और उत्साह बने रहेंगे। नियमित टहलना, व्यायाम और योग करना आदत में शामिल होना चाहिए। इन सबके साथ-साथ हमें पोषक तत्त्वों का सेवन और शरीर का नियमित निर्विषीकरण भी करना चाहिए। ये आदतें हमें काफी हद तक चुस्त-दुरुस्त रखेंगी और आप चिंता रहित हल्का-फुल्का जीवन व्यतीत कर सकेंगे।
जरा-सी असफलता पर हताश हो जाते हैं कुछ लोग
कुछ लोग जरा-सी असफलता पर हताश हो जाते हैं। हर बाजी को जीतने का बोझ हमें अक्सर दुखी, हताश और परेशान करता है। सबसे पहले यह स्वीकार करना चाहिए कि हमारा हर प्रयास पूरी तरह सफल होगा, यह असंभव है और ऐसा कभी किसी के साथ नहीं होता है। जीतना ही सब कुछ नहीं है। जीतने का प्रयास ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। जिन सफल व्यक्तियों को हम देखते हैं, वे प्रयास करने से कभी पीछे नहीं हटे। वे तब तक प्रयास करते हैं जब तक जीत न जाएं। हर व्यक्ति के अंदर कोई न कोई योग्यता और प्रतिभा जरूर होती है। इसलिए हमारे पास जो योग्यता है, उसका सही उपयोग करके हमें अपनी नकारात्मक सोच से छुटकारा पाने की शुरूआत करनी चाहिए।
आठ अरब की दुनिया में अकेले रहने की चाहत, मन: स्थिति से अकेलेपन में ले सकते हैं भीड़ का आनंद
प्रेरक लेखक जग जिगलर ने अपनी पुस्तक ‘सी यू एट द टाप’ में लिखा है कि अपनी असफलताओं के लिए दोस्तों, रिश्तेदारों, परिवार के सदस्यों या किस्मत को कोसने के बजाय आपको अपनी ऊर्जा, लक्ष्य, प्रयासों और गलतियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जिस क्षण आप यह स्वीकार कर लेते हैं कि आपकी स्थिति, सफलता या असफलता सब आपके हाथों में ही है, उसी समय आप सफलता की आधी दूरी तय कर लेते हैं। हमारी सफलताओं के बीज या महानता का सामर्थ्य हमारे ही हाथों में है। बस कमजोरी को ताकत में बदलने की जरूरत है।