एक सवाल हमेशा हर किसी के जेहन में उठता है कि ऐसा पता नहीं क्यों होता है या ऐसा पता नहीं क्यों नहीं होता! किसी भी विषय या मसले पर बात की जाए, सवाल उठेगा ही कि पता नहीं क्यों! एक जमाने में स्कूलों में अध्यापक मासूम बच्चों के भी कान खींचते थे, गालों पर थप्पड़ रसीद कर देते थे, कोमल हथेलियों पर फट्टे तक से पीटते थे, लेकिन कोई बच्चा स्कूल में अवसाद के कारण आत्महत्या के बारे में नहीं सोचता था या फिर आत्महत्या नहीं करता था। इसके क्या कारण रहे होंगे?

हर किसी के बचपन में रोज-रोज नए और महंगे खिलौनों के लिए जिद करना, मिलने पर उनसे खेल कर आनंदित होना, लेकिन एक-दो बार खेलने के बाद मन भर जाना। ऐसा पता नहीं क्यों? ज्यादातर घर कच्चे थे, कमरे कम थे, लेकिन किसी के बुजुर्ग माता-पिता कभी वृद्ध आश्रम नहीं जाते थे। पता नहीं क्यों? परिवार बहुत बड़े होते थे, पड़ोसियों के बच्चे भी दिन भर आस-पड़ोस की छत और आंगन में खेलते थे, घरों में ही शादियों जैसे बड़े समारोह हो जाते थे। पता नहीं क्यों?

पहले खूब काम करने के बावजूद भी नहीं होती थी कोई बीमारी

सुबह और शाम गली-मुहल्ले के हर घर के बाहर कोयले या फिर उपले से अंगीठी सुगलाई जाती थी, धुआं गली-घरों में घुस जाता था, कोई चूं नहीं करता था और प्रदूषण का रोना नहीं था। पता नहीं क्यों? घर-परिवार में रोज गाय के खाने के लिए रोटियां सेंकने और निकालने की परंपरा के बावजूद गृहस्थी का बजट डगमगाता नहीं था और आमतौर पर संतुलित रहता था। जबकि आज परिवार के अपने खाने-पीने का बजट ही भारी पड़ने लगा है। पता नहीं क्यों? खाने को सादी दाल-रोटी होती थी, बावजूद इसके किसी को भी खून की कमी नहीं होती थी। रोग भी कम थे। पता नहीं क्यों?

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पुरुषों की तरह महिलाओं के लिए तब ‘जिम’ नहीं थे। दिन भर चूल्हा-चौका करते-करते हुए भी आमतौर पर सेहतमंद रहती थीं। पता नहीं क्यों? सगे भाई-भाई और भाई-बहन छोटी-छोटी बातों पर खूब लड़ते-झगड़ते थे। आपस में कुट्टी और कुटाई तक की नौबत आ जाती थी, लेकिन कुछ देर में फिर घुल-मिल जाते थे। मनमुटाव लंबा नहीं खिंचता था। पता नहीं क्यों? माता-पिता भी कई बार किसी मामूली बात पर भी बच्चों को थप्पड़ मार देते थे, लेकिन उनका मान-सम्मान कभी कम नहीं होता था। पता नहीं क्यों? आज यह समझना मुश्किल हो गया है कि लोग अनमोल रिश्ते दांव पर लगा देते हैं, लेकिन अपनी बेमानी जिद पर अड़े रहते हैं। कई लोग शुरूआत में अच्छे लगते हैं, लेकिन समय के साथ अपने तेवर दिखाने लगते हैं। पता नहीं क्यों?

युवा पीढ़ी की बदल रही सोच

आज सोच बदल रही है। जैसे हर मोबाइल या उपकरण का नया माडल पहले के या पुराने से बेहतर होता है। नई युवा पीढ़ी की सोच पुरानी और दरम्यानी पीढ़ी से हट कर है। कुछ समय पहले एक बार किसी के घर की नाली बंद हो गई। रसोई, स्नान गृह वगैरह में सीवर का गंदा पानी बाहर निकलने लगा। गंदा पानी घर में घुसने से सारे काम रुक गए। गृहिणी ने प्लंबर को फोन किया। संयोग से वह खाली था। साइकिल दौड़ाता कुछ देर में आ गया। उसने कुछ ही देर में नाली खोल दी। मेहनताने के तौर पर पांच सौ रुपए मांगे तो घर की मालकिन भौंचक्की रह गई। बोली, ‘मैं सरकारी स्कूल में शिक्षक हूं। मुझे तो बच्चों को एक घंटा पढ़ाने के भी पांच सौ रुपए नहीं मिलते। तुम दो सौ रुपए ले लो… यही जायज है।

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’ प्लंबर नहीं माना। अपनी बात पर अड़ा रहा। कहा-सुनी सुन कर भीतर से घर की बुजुर्ग महिला बाहर आ गई। सारी बात सुनने-समझने के बाद बहू से उन्होंने कहा कि ‘तूने तो दो सौ रुपए ज्यादा बोल दिए हैं। मुश्किल से बीस रुपए का काम है। इसे पचास रुपए देकर हिसाब करो।’ मगर प्लंबर नहीं मान रहा था। इतने में घर की मालकिन का नौजवान बेटा बाहर से घर आया। वह मां का हाथ पकड़ कर अंदर ले गया। समझाने लगा कि ‘मां, वह दस मिनट में दौड़ा आया और फटाफट मिनटों में नाली खोल दी। उसने तुम्हारा कितना परेशानी कम कर दी। तुम्हारा तनाव दूर कर दिया। वह नहीं आता, तो दिन भर तुम्हारा काम न निपट पाता। इसे पांच सौ रुपए तो दो ही, ऊपर से पचास रुपए का इनाम भी दे दो!’ मां और दादी नौजवान की समझ सुन कर हैरान हुए।

सीखने और सुधारने की प्रक्रिया बीते कल और आने वाले कल के बीच होती है एक महत्त्वपूर्ण कड़ी

शायद इसी को पीढ़ियों का अंतराल कहते हैं। बीते कल, आज और आने वाले कल की तीन पीढ़ियों की समझ में जमीन-आसमान का अंतर आ गया है। विचारक जोनाथन मार्टेसन का मानना है कि भावनाएं और विचार लहरों की तरह होते हैं। आप उन्हें आने से रोक नहीं सकते, लेकिन आप यह चुन सकते हैं कि किन लहरों की सवारी करनी है?

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जाहिर है कि एक जाने वाला कल होता है, और दूसरा आने वाला कल। यानी कुछ भी स्थिर नहीं होता। सब कुछ बदलने वाला होता है। हर चीज पाने या मिलने के सुख के संग-संग बिछुड़ने या न मिलने का दुख साथ चलता है। एक अमेरिकी उपन्यासकार जैक ने लिखा है कि हाथ में सदा अच्छे पत्ते आना ही जीवन नहीं है… खराब पत्तों के साथ अच्छा खेलना ही जीवन है। दोनों में अंतर यह होता है कि बीता कल एक गुजर चुका समय होता है, जिसमें हमारे पास कोई नियंत्रण नहीं होता, जबकि आने वाला कल एक अवसर होता है, जिस पर हम कर्म या क्रिया से नियंत्रित और बेहतर बना सकते हैं। इसलिए सीखने और सुधारने की प्रक्रिया बीते कल और आने वाले कल के बीच एक महत्त्वपूर्ण कड़ी होती है।