इस दुनिया में बोलना सभी को आता है, लेकिन सुनना और वह भी धैर्यपूर्वक और पूरी शांति से किसी की बात सुनना, बहुत कम लोगों को आता है। जबकि एक अच्छा श्रोता होना श्रेष्ठ गुण है। कोई भी व्यक्ति अच्छे श्रोता से बात करने में खुशी महसूस करता है, जो उसकी बात को पूरी तन्मयता के साथ सुनता है और उसके बाद उस विषय पर सार्थक संवाद करता है। वक्ता का बोलना सार्थक होता है, श्रोता का सुनना सार्थक होता है। अच्छा श्रोता बनना ऐसी कला है, जो सभी को आनी चाहिए, क्योंकि इसके अनेक फायदे हैं। अच्छा श्रोता बन कर ही हम दुनिया की बातों के जरिए उनके अनुभव से दुनिया के बारे में अत्यधिक समझ विकसित कर सकते हैं, उसमें से अपने काम की बातों को ग्रहण कर सकते हैं।
मनुष्य का जीवन बहुत छोटा है। वह हर एक बात का अपने जीवन में अनुभव नहीं कर सकता है और न हर परिस्थिति को जी सकता है। कुछ न कुछ हमें दूसरों के जीवन से सीखना पड़ता है। इसके लिए उन्हें समझना और सुनना पड़ता है। इसलिए बहुत जरूरी है कि जब कोई अपना अनुभव या अपने सार्थक विचार हमें सुनाए, तो हम एक अच्छा श्रोता बन कर सुनें। उसके सार तत्त्व को ग्रहण करें और अपने ज्ञान को समृद्ध करें, ताकि उसके अनुभव का भरपूर लाभ हमें भी मिले।
सुनना मनुष्य के लिए बहुत ही फायदेमंद और वह उसकी सफलता में सहयोगी है
मगर यह तभी संभव है जब हम धैर्यपूर्वक किसी की बात को तन्मयता से सुनें। विंस्टन चर्चिल का कहना था कि ‘अगर आप सिर्फ बोलना जानते हैं, तो कभी सफल नहीं हो सकते हैं’। यानी सुनना मनुष्य के लिए बहुत ही फायदेमंद है और वह उसकी सफलता में भी सहयोगी है। कहा भी गया है कि किसी अक्लमंद से बात करना हजार किताबों को पढ़ने के बराबर होता है। तो सिर्फ बात करने से ही काम नहीं बन सकता है, बल्कि उन बातों को ध्यानपूर्वक अपने मन में उतारना भी पड़ता है और उसके लिए अच्छा श्रोता भी बनना पड़ता है।
भाग दौड़ भरी जिंदगी में लोगों के पास नहीं है प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का समय
एक अच्छा श्रोता मनोचिकित्सक की तरह होता है, क्योंकि वह किसी के मन में दबी हुई कड़वी यादों, अनुभव और बातों को बाहर निकाल कर उसके हृदय को भारहीन, पीड़ाविहीन कर उसे खुशी और संतुष्टि देता है। यानी अच्छा श्रोता सिर्फ अपने लिए नहीं, दूसरों के लिए भी फायदेमंद होता है। जब हम किसी से बात कर रहे होते हैं, तो सामने वाले की बात को पूरे ध्यान से सुनने का प्रयास करना चाहिए। यह शारीरिक-मानसिक दोनों रूप से होना चाहिए। धैर्यपूर्वक सुनने के बाद ही उसका उत्तर या उस पर अपने विचार प्रकट किया जाए, तो हम ज्यादा बेहतर तरीके से अपना विचार प्रकट करते हैं। अगर बिना बात को सुने हम किसी बात पर अपना विचार प्रकट करते हैं, तो वह अर्थहीन होगा, क्योंकि जब हम किसी की बात को पूरी तरह सुनेंगे नहीं, तो उस बात का सटीक उत्तर कहां से दे सकते हैं।
लोग अपनी बात रखने को लेकर रहते हैं उत्साहित
अक्सर लोग सिर्फ अपनी बातों का एकालाप करते रहते हैं। एकालाप का अर्थ है सिर्फ अपनी बात कहते जाना, सामने वाले की बिल्कुल नहीं सुनना। जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए। यह बात बहुत अजीब लग सकती है, लेकिन यही सच है। हर कोई अच्छा श्रोता नहीं होता है और न ही उसके पास अच्छा श्रोता बनने की कला होती है। जिस प्रकार अच्छा लिखने के लिए काफी कुछ पढ़ना पड़ता है, इसी प्रकार एक अच्छा वक्ता बनने के लिए हमें पहले अच्छा श्रोता बनना पड़ता है।
पारिवारिक संस्कारों के आधार पर निर्धारित होता है आदमी का आचार-विचार और व्यवहार
कुछ लोगों के भीतर इतना भी शिष्टाचार नहीं होता है कि वे पूरी बात को सुनने के बाद अपनी बात रखें। वे बात को बीच में ही काट कर या अनसुना करके अपनी बात कहना शुरू कर देते हैं। शुरूआत से ही वे बातों पर न पूरी तरह ध्यान दे रहे होते हैं और न सुन रहे होते हैं। ऐसे में वक्ता को घोर निराशा होती है। जबकि अगर कोई कुछ बोल रहा है या अपने विचार प्रस्तुत कर रहा है, तो उसको अपने विचार समाप्त करने देना जरूरी होता है। बीच में टोकने से यह पता चलता है कि हम वास्तव में उनके विचारों की परवाह नहीं करते हैं। या उनके लिए हमारे अंदर सम्मान की कमी है, जिसके कारण हम उन पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। वहीं अगर कोई हमारी बात और हमारे विचारों में दिलचस्पी लेता है, तो हम खुश, संतुष्ट और अपने आप को उत्साहित और प्रेरित महसूस करते हैं।
अच्छे श्रोता को बीच में बात काट कर अशिष्टता नहीं करनी चाहिए
श्रोता बनने के लिए हमें धैर्यपूर्वक दूसरों को अपनी बात कहने के लिए उत्साहित करना चाहिए। उनकी बातों में दिलचस्पी लेकर उनसे उनकी बात से संबंधित सवाल पूछने चाहिए। बीच में बात काट कर अशिष्टता नहीं करनी चाहिए और न ही विषय बदल कर अपनी अरुचि दिखानी चाहिए। यह हमारे अच्छा श्रोता बनने के मार्ग में बाधक बनता है।
हम खुद यह विचार करके देखें कि हम किसी से अपनी पीड़ा, मनोभावना बांट रहे हैं और वह व्यक्ति हमारी बात को काट कर या अनसुना करके अपनी बात कहना शुरू कर दे, तो क्या भविष्य में ऐसे व्यक्ति से हम कोई बात कर पाएंगे? हमारा थोड़ा-सा प्रयास हमें अच्छा श्रोता बना सकता है और इस कला को विकसित करने के कई तरीके हैं। या तो हम स्वयं इस दिशा में प्रयास करें या फिर हम किसी चिकित्सक की मदद लेकर अपने इस कौशल पर काम कर सकते हैं।