मनुष्य जीवन के लिए प्रकृति सबसे बड़ा उपहार है जो हमें संजीवनी के रूप में हवा, पानी, खाद्य मुहैया कराती है। मगर आज हम यह सब जानते हुए भी सब भूल रहे हैं और प्रकृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हालांकि उसकी सजा भी हम ही भुगत रहे हैं। इस बात पर बहस खूब देखी जा सकती है कि अगर अब भी इस खिलवाड़ को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं तो कुछ हद तक आने वाले खतरे को रोका जा सकता है, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है, यह जगजाहिर है। सच यह है कि आज जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान जैसी विनाशकारी आपदाओं से हम जूझ रहे हैं और इसका सिरा अब मिट्टी के विनाश जैसी चुनौतियों के सामने होने के रूप में है। खेती-किसानी और पर्यावरण पर काम करने वाले सभी लोग मिट्टी के बारे में जानते हैं कि यह हमारे लिए कितनी उपयोगी है।
हमारे लिए यह समझना काफी है कि हमारा शरीर मिट्टी से बना है और आखिर इसे मिट्टी में ही मिल जाना है। यानी जन्म से लेकर मरण तक हमारा खानपान, रहन-सहन सब मिट्टी पर ही निर्भर है। इससे अनगिनत जीवों को खाना मिलता है और उन्हीं अनगिनत जीवों के कारण ही हमें भी खाना मिलता है। अगर मिट्टी में ये सूक्ष्म जीव नहीं होंगे, तो मिट्टी उपजाऊ नहीं रहेगी। अगर इस समस्या का विस्तार होना जारी रहा तो आखिर में पृथ्वी का नष्ट होना निश्चित है।
मिट्टी के प्रति हमारी आंखें आमतौर पर मुंदी हुई दिखती हैं
आज हम जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापमान और प्लास्टिक कचरे से उपजी समस्या को लेकर तो चिंतित नजर आते हैं, लेकिन मिट्टी के प्रति हमारी आंखें आमतौर पर मुंदी हुई दिखती हैं। वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में दावा किया गया है कि दुनिया की एक तिहाई धरती फसल के हिसाब से खराब हो चुकी है। अगर 2045 तक मिट्टी का इसी तरह क्षरण होता रहा तो हम चालीस फीसद भोजन कम उगा पाएंगे। अगर मिट्टी को नहीं बचाया गया तो अगले पैंतालीस से साठ वर्ष के भीतर जो बची हुई धरती है, वह भी खराब हो जाएगी।
अगर ऐसा हुआ, तो यह समझ लेना चाहिए कि तीसरा विश्वयुद्ध इसलिए होगा कि भुखमरी और गरीबी पूरे चरम पर होगी। हालात यही होंगे कि जिसके पास जितनी ताकत होगी, उसी के घर में ही खाने को होगा। आज हम नई-नई तकनीक के पीछे भाग रहे हैं। दुनिया कृत्रिम मेधा, रोबोट, जैसी तकनीक के जरिए हर काम को आसान बनाने में लगी है, लेकिन लोग यह भूल रहे हैं कि अगर मिट्टी पर मंडराते खतरे से अभी नहीं निपटा गया तो इस तकनीकी दुनिया का कोई महत्त्व नहीं होगा।
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आज जलवायु परिवर्तन के कारण आपदाएं अलग तरह से आ रही हैं। कहीं सूखा है तो कहीं बाढ़, कहीं जानलेवा ठंड है तो कहीं गर्मी। मिट्टी नब्बे फीसद कवक (फंगी) प्रजातियों, केंचुए और घोंघे का घर है। आज मिट्टी से गायब होते अस्सी फीसद सूक्ष्म जीव चिंता के विषय हैं, क्योंकि यही मिट्टी को तंदुरुस्त बनाते हैं। कार्बन की घटती मात्रा के कारण वे तेजी से मिट्टी से खत्म होते जा रहे हैं। कार्बन का कम होना एक दो साल का काम नहीं है, बल्कि लगातार कई सालों से स्थिति बिगड़ती जा रही है। इसका कारण है वनों की कटाई, जुताई, एकल फसल लगाना, रसायनों का अधिक उपयोग, फसल अवशेषों को हटाना, पेड़ों का काटना, अत्यधिक शहरीकरण, जल प्रदूषण। इन सबके जरिए मिट्टी का कटाव, प्राकृतिक चक्र में बाधा, उर्वरता का कम होना, पोषक तत्त्व के खोने जैसी समस्या मिट्टी को खराब करती है।
मिट्टी पर पौधों की छियासी फीसद और बैक्टीरिया की चौवालीस फीसद से अधिक प्रजातियां निर्भर
इसलिए मिट्टी पर मंडराते इस खतरे को यह समझने की भूल नहीं करना चाहिए कि इससे सिर्फ गरीबों को ही नुकसान होगा। इस संकट और इससे निपटने की योजना बनाने वाले या उसमें क्रीड़ा गतिविधियों में समान रुख रखना चाहिए। ‘द इकोलाजिकल सर्वे आफ अमेरिका’ की ओर से किए गए एक शोध में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण मिट्टी में कार्बन की मात्रा पचास से सत्तर फीसद तक कम हो गई है। अध्ययनों के अनुसार, पूरे वातावरण में कार्बन सबसे अधिक मिट्टी में ही होता है। जैव विविधता का मजबूत होना प्रकृति के लिए एक बेहतर स्थिति है।
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अगर हम स्वस्थ मिट्टी की बात करें तो महज एक चम्मच मिट्टी में दस करोड़ से एक अरब तक बैक्टीरिया, एक से दस लाख तक फफूंदी और तमाम दूसरे सूक्ष्म जीव मिल सकते हैं। मिट्टी पर पौधों की छियासी फीसद और बैक्टीरिया की चौवालीस फीसद से अधिक प्रजातियां निर्भर रहती हैं। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर ये सूक्ष्म जीव तेजी से नष्ट हो रहे हैं, तो मनुष्य जाति भी साथ में नष्ट हो रही है। ज्यादा फसल की पैदवार पाने के लिए तरह तरह के रसायनों और खादों का प्रयोग मिट्टी के लिए किया जाता है। इससे जरूरी पाए जाने वाले केंचुए खत्म हो रहे हैं। हालात यही रहे तो धीरे-धीरे मिट्टी के पानी को सोखने की क्षमता नब्बे फीसद तक खत्म हो सकती है। अगर मिट्टी की पानी को सोखने की क्षमता कम होती है तो जीवाणु और विषाणुओं को मिट्टी के कणों से पानी नहीं मिलेगा, जिस कारण वे खत्म हो जाएंगे, क्योंकि जमीन के नीचे जमा पानी को यही सूक्ष्म जीव सोख लेते हैं और पानी साफ और पीने के लिए सुरक्षित हो जाता है।
हमारी धरती हमारी धरोहर की संकल्पना के लिए अब समय या गया है कि इसे कार्य रूप में परिणत किया जाए। मिट्टी में जल धारण की क्षमता बढ़ानी होगी। मिट्टी के अंदर की सेना को जीवित रखना आज समय की सबसे अहम जरूरत है। मिट्टी हमने अपने पूर्वजों से उधार में प्राप्त किया है और अगली पीढ़ी के लिए भी बेहतर छोड़ कर जाना चाहिए।