कलाकृतियां मन को लुभाती हैं। लुभाएं भी क्यों न! आखिर ये मानव सभ्यता का अभिन्न अंग रहे हैं। ये हमें जोड़ती हैं, शिक्षित करती हैं और जीवन को समृद्ध बनाती हैं। फिर भी अक्सर पाया जाता है कि लोग किसी कलाकृति को निहारना तो पसंद करते हैं, लेकिन खरीदना या अपने घर की दीवारों पर सजाना विलासिता समझते हैं। जबकि हाल के वर्षों में हुए शोध से पता चला है कि कला को निहारना विलासिता नहीं, स्वास्थ्य के लिए औषधि का काम कर सकता है। दरअसल, कलाकृतियों का स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। कलाकृतियां न केवल सौंदर्य का रूपक होती हैं, बल्कि स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को बेहतर बनाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वे मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती हैं। मतलब यह एक समग्र चिकित्सा और कल्याण का साधन है।

कलाकृतियों और सेहत के रिश्ते पर अध्ययन करते हुए वैज्ञानिकों ने पाया कि किसी कलाकृति को निहारना सेहत के लिए फायदेमंद है। फिर चाहे आप वह कला किसी कला वीथिका यानी ‘आर्ट गैलरी’ में देख रहे हों या अस्पताल की गलियारे में। दोनों ही दशाओं में आपको उतना ही फायदा होगा। कला को कब, कहां और क्यों उपयोग में लाया जा सकता है, इस बारे में लगातार और अधिक शोध हो रहे हैं। अधिक विश्वसनीय साक्ष्यों की तलाश की जा रही हैं, ताकि यह स्पष्ट पता लग सके कि किसी खास स्वास्थ्य लाभ के लिए किस प्रकार की कला का उपयोग किया जाना चाहिए।

शोधकर्ताओं के अनुसार कला को देखने से ‘यूडेमोनिक वेल-बीइंग’ में सुधार होता है। यूडेमोनिया स्व की पहचान, वास्तविक जीवन मूल्यों का विकास और जीवन के सही अर्थ को समझकर उसी के अनुसार जीवन जीने पर जोर देता है। यह अवधारणा व्यक्तिगत विकास और नैतिक गुणों को प्रोत्साहित करती है, जिसका लक्ष्य अस्थायी आनंद से परे स्थायी संतुष्टि और दीर्घकालिक मानसिक सुख है। ‘यूडेमोनिक वेल बीइंग’ के लिए कुछ खास गतिविधियां होती हैं, जिनका अभ्यास किया जाता है। जैसे जीवन के प्रति अपना एक नजरिया स्थापित कर उस पर हर हाल में कायम रहने का प्रयास किया जाता है।

चिकित्सा का माध्यम है कला

हाल के अध्ययनों से पता चलता है कि कला चिकित्सा का भी माध्यम है। इसे ‘आर्ट थेरेपी’ के नाम से भी जाना जाता है। यह तनाव, चिंता और अवसाद के लक्षणों को कम करने में प्रभावी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रपट में बताया गया है कि कला-आधारित उपचार, जैसे चित्रकला और संगीत सुनना मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के प्रबंधन में सहायक हैं। कोई भी व्यक्ति अपने तनाव या अवसाद के क्षणों में अपने मनपसंद गीत-संगीत या अपनी अन्य अभिरुचि की कलाकृतियों के साथ थोड़ा समय बिताए, उनमें गहराई में डूबने की कोशिश की तो इसके प्रभाव को महसूस कर सकता है। ये गतिविधियां मस्तिष्क में आक्सीटोसिन और डोपामाइन जैसे ‘न्यूरोट्रांसमीटर’ यानी प्रसन्नता की भावना को बढ़ने वाले रसायनों को बढ़ाते हैं।

आज की चाह में लोग कल को कर रहे बर्बाद, प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन से भविष्य का खतरा

एक दूसरे अध्ययन में पाया गया कि नियमित कला गतिविधियां, मसलन, जैसे स्केच या रेखाचित्र बनाना या मिट्टी की मूर्तिकला आदि कार्टिसोल यानी तनाव हार्मोन के स्तर को तीस फीसद तक कम कर सकती हैं। इसके साथ ही कलाकृतियां भावनाओं को व्यक्त करने का एक सुरक्षित माध्यम प्रदान करती है, जिससे लोग अपनी भावनाओं को समझ और प्रबंधित कर सकते हैं। कलाकृतियों को देखने या बनाने से आत्मसम्मान और आत्मविश्वास बढ़ता है।

इस मसले पर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि किसी मरीज की नियमित देखभाल के साथ-साथ रचनात्मक दृष्टिकोण का भी उपयोग किया जाना चाहिए। आलंकारिक, अमूर्तन, आधुनिक और समकालीन चित्रकारी, फोटोग्राफी, मूर्तिकला आदि कलाएं स्वास्थ्य के लिए अच्छी पाई गर्इं हैं। इन कलाओं को संग्रहालय, कला वीथिका, क्लीनिक, अस्पताल जैसी अलग-अलग जगहों पर रखा जाना चाहिए।

कला सृजन से मानसिक सेहत को होने वाले फायदों के बारे में व्यापक रूप से हुआ है शोध

जीवन का एक उद्देश्य होता है, जो हमारे भविष्य बनाने या करिअर के उद्देश्यों से बड़ा हो सकता है या अलग हो सकता है। कोई ऐसा लक्ष्य, जो किसी दूसरे की भलाई के साथ हमें संतुष्टि दे। जो हमारे उन गुणों को निखारने का प्रयत्न करे, जिससे हमें वास्तविक खुशी मिलती है और जिसे करके हमें भीतर से अच्छा महसूस हो और कुछ ऐसा सार्थक करने का अहसास हो, जो हमारे जीवन को सही मायने में अर्थ दे। यह ‘हेडोनिक वेल बीइंग’ की विपरीत अवस्था है, जो त्वरित आनंद और अस्थायी खुशी पर केंद्रित है।

कला सृजन से मानसिक सेहत को होने वाले फायदों के बारे में व्यापक रूप से शोध हुए हैं, लेकिन कला को देखने के प्रभाव पर अनुसंधान और इससे होने वाले शारीरिक स्वास्थ्य लाभ को कम करके आंका गया। मगर इसके प्रभावों को देखते हुए अब ऐसा नहीं होना चाहिए। इसके सकारात्मक प्रभावों को समझने के बाद अधिक से अधिक लोगों को कलाकृतियों से जोड़कर उनके स्वास्थ्य के लिए नए रास्ते खोलने की संभावना बढ़ी है। यों भी, रोजमर्रा की जिंदगी की व्यस्तताओं ने आज मनुष्य को जिस स्तर तक खुद को गंवा देने तक के हालात में डाल दिया है, उसमें वह जीवन की बहुत सारी वास्तविकताओं और जरूरतों को भूल गया है। ऐसे में उपजे मानसिक थकान से जिस तरह की जटिलताएं पैदा होती हैं, उसे कलात्मकता की दुनिया के अहसास को करीब से महसूस करने पर कम या दूर किया जा सकता है।