बुलाकी शर्मा

कलाधर्मी और सृजनधर्मी एकांत क्षणों की प्रतीक्षा करते हैं ताकि वे एकाग्रता से सृजन कर सकें। हालांकि अकेलेपन से वे भी घबराते हैं। एकांत की चाहत हम स्वयं करते हैं जबकि अकेलापन अनचाहे मेहमान की तरह आकर हमें हताश, निराश और उदास करने लगता है। तोकियो निवासी इक्यावन वर्षीय एक महिला अकेलेपन से इतनी भयाक्रांत हो गई कि बीमारी का बहाना करके बार – बार आपातकालीन काल करके एम्बुलेंस बुलवाती रही। कभी पेट-दर्द, कभी पैर-दर्द, कभी दवा की अधिक मात्रा का सेवन करने से बेहोशी की – सी हालत होने जैसे बहाने बनाते हुए उसने 2700 से अधिक झूठी काल कीं।

उसकी झूठी काल पर विश्वास करते हुए हर बार एम्बुलेंस उसके घर आती, उसे अस्पताल ले जाती, चिकित्सक उसकी जांच करते। उसे कोई बीमारी नहीं थी। जांच में कुछ भी पता नहीं चलता। उसे चिकित्सकों ने समझाया, पुलिस ने धमकाया किंतु उसके कोई फर्क नहीं पड़ा और वह लगातार बीमारी की झूठी काल करके एम्बुलेंस बुलवाती रही। आखिर विवश होकर पुलिस को उसे गिरफ्तार करना पड़ा।

अकेलेपन से संत्रस्त उस महिला की झूठी काल के पीछे ध्येय यही रहा होगा कि इसी बहाने कोई उससे बात तो करेगा, कुशल- क्षेम तो पूछेगा, उसे समझाने के बहाने ही उससे कोई संवाद तो करेगा। यह खबर पढ़ी, तब से सोच रहा हूं कि अकेलेपन से जूझना कितना भयावह है। तोकियो, जापान में एम्बुलेंस की सेवाएं वास्तव में सराहनीय हैं कि हर बार झूठी काल को भी गंभीरता से लेते हुए वे महिला के पास पहुंचे, उसे अस्पताल पहुंचाया, चिकित्सकों ने उसकी बीमारी की बहानेबाजी सुनी, जांचें की और उसकी समझाइश भी की।

हमारे यहां तो सच्ची काल पर भी एम्बुलेंस सही समय पर कम ही पहुंचती है और यदि किसी ने एक बार झूठी काल कर दी तो बाद में उसकी सच्ची काल भी नहीं सुनी जायेगी। वहां के चिकित्साकर्मी भी इतने संवेदनशील तो हैं कि वे बीमारी का बहाना बनाकर आए मरीज को भी तवज्जो देते हुए उसकी बात सुनते हैं और उसे सलाह- मशविरा देने की फुर्सत निकालते हैं।

यदि हम स्वयं को दूसरों के सामने व्यक्त करने में परहेज करेंगे तो अकेलापन हमारे स्वभाव का हिस्सा बन सकता है। ऐसे में परिवार के बीच होते हुए भी स्वयं को अकेला महसूस करते हुए पीड़ित होते रहेंगे। पुरुषों की तुलना में महिलाओं का स्वभाव अलग होता है। पुरुष प्राय: दूसरों के सामने जल्दी से खुलते नहीं। यात्रा करते हुए अन्य यात्रियों के बीच भी प्राय: अपने में सिमटे रहते हैं। संवाद करने से बचते हैं।

बातचीत की कोई पहल भी करता है तो नपा – तुला औपचारिक जवाब देकर पुन: गंभीरता का आवरण ओढ़कर मौन हो जाता है। अकेलापन जहां दूर किया जा सकता है, वहां भी वह अकेलेपन का विकल्प चुनकर आंतरिक उदासीनता से घिरा रहता है। इसके विपरीत, अधिकांश महिलाएं गंभीरता और घमंड के आवरण से मुक्त रहकर सहज व्यवहार में विश्वास करती हैं और वे दूसरों पर भरोसा कर घर-परिवार की बातें भी बेतकल्लुफ करती हैं।

कथित आभिजात्य वर्ग की महिलाएं जरूर दूसरों के सामने स्वयं को खोलना अपनी गरिमा के प्रतिकूल मान, अकेलापन झेलना स्वीकार करती हैं। तोकियो की महिला को अकेलापन दूर करने के लिए बीमारी का बहाना बनाने को विवश होना पड़ा किंतु यहां की महिलाओं के समक्ष ऐसी स्थितियां कम ही आती हैं।

‘हाऊ टू बी ए वीमेन’ जैसी चर्चित पुस्तक की लेखिका कैटलिन मोरन का भी मानना है कि आज के दौर में पुरुषों की जिंदगी महिलाओं की तुलना में ज्यादा मुश्किल है। दरअसल पुरुष अपनी समस्याओं को साझा नहीं कर पाते। वे अकेलेपन के दौर से गुजर रहे हैं। जबकि महिलाएं खुद से जुड़ी समस्याओं के बारे में खुलकर एक दूसरे से बात करती हैं लेकिन पुरुष ऐसा नहीं करते।

पहले मित्रों के सामने अपनी समस्याएं साझा कर मन को हल्का कर लिया जाता था। मित्रों से वे समस्याएं भी बांटी जाती थी, जिन्हें परिजनों के सामने रखते झिझक होती थी। मित्रों से आत्मबल मिलता था, हौसला मिलता था, सहयोग और सलाह मिलती थी। लेकिन आज के दौर में सच्चे और विश्वासी मित्र चिराग लेकर ढूंढे नहीं मिलेंगे। सच्चे मित्रों का अकाल-सा पड़ गया है। मित्र मान, किसी से अपनी समस्या साझा करेंगे भी तो उसे सार्वजनिक होते देर नहीं लगेगी।

ऐसे में व्यक्ति अपनी समस्या किसी से साझा नहीं कर, स्वयं के स्तर पर ही उससे मुठभेड़ करता रहता है और अकेला ही परेशान होता रहता है।
समस्याएं हरेक की जिंदगी में आती हैं और हरेक समस्या का समाधान भी निकलता है। कभी जल्दी तो कभी विलंब से। यदि हमारा कोई सच्चा मित्र नहीं है तो हम स्वयं को ही अपना सच्चा मित्र बना लें और ईमानदारी से स्वयं से संवाद करें। खुद से संवाद डायरी लिखकर कर सकते हैं।

अपनी उपलब्धियों पर खुशी जाहिर करें और अपनी कमजोरियों से सीख लेते हुए भविष्य में स्वयं में सुधार का संकल्प लेवें। अकेलेपन का मन ही मन राग अलाप कर दुखी होने की बनिस्पत अपने को सामाजिक बनाएं। दूसरों से संवाद की पहल करें। प्रकृति की विभिन्न छटाओं का आनंद लें। रुचियां विकसित करें।

साहित्य, संगीत को साथी बनाएंगे तो अकेलापन महसूस ही नहीं होगा। बच्चों से दोस्ती करें, बुजुर्गों से हिलें-मिलें। हमें याद रखना है कि इस दुनिया में अकेले आए हैं और अकेले ही जाएंगे लेकिन अकेलेपन से मुक्त रहकर सबके साथ हंसी-खुशी से रहेंगे और जिंदगी का भरपूर आनंद लेंगे।