कालका बिंदादीन महाराज की स्मृति में कालका बिंदादीन कथक महोत्सव का आयोजन किया गया। कथक केंद्र की ओर से आयोजित कथक महोत्सव में कथक के कलाकारों ने अपने-अपने घरानों के रंगों को पेश किया। समारोह में पंडित बिरजू महाराज ने कथक की खास रंगत अपने अभिनय के जरिए प्रस्तुत किया। इस समारोह में वरिष्ठ कलाकारों के साथ युवा कलाकारों की उपस्थिति रही।

कथक महोत्सव का आरंभ सरस्वती वंदना से हुआ। यह कथक केंद्र के कलाकारों की सामूहिक प्रस्तुति थी। समारोह में कथक नृत्य की पेशकश ऋचा जैन की थी। उन्होंने अपने नृत्य में जयपुर और बनारस घराने की बारीकियों को शामिल किया। उन्होंने नृत्य का आरंभ कृष्ण वंदना से किया। यह मीरा बाई के पद ‘मैं सांवरे के रंग राची’ पर आधारित थी। उन्होंने उठान, तिहाइयों, टुकड़ों को पेश किया। पंडित सुंदरप्रसाद की जातियों की तत्कार को ऋचा ने पेश किया। द्रुत लय में सवाई व डेढ़ लय की तिहाइयों को पैर के काम में दर्शाया। उन्होंने पंडित जानकी प्रसाद की झूलना परण व मिश्र जाति के चलन को पेश किया।

नृत्यांगना ऋचा जैन ने दादरा ‘कन्हैयाजी कैसा जादू डाला’ पर भाव पेश किया। इस प्रस्तुति में उन्होंने बनारस घराने की नृत्यांगना अलकनंदा देवी के अंदाज को पेश करने की कोशिश की। ऋचा ने नृत्य के साथ गाने की कोशिश की। उनकी यह कोशिश अच्छी है। पर, उन्हें यह समझना चाहिए था कि यह उनकी एकल प्रस्तुति का मंच नहीं था। बल्कि, उनके बाद वरिष्ठ नृत्यांगना और गुरुओं की प्रस्तुतियां होनी थीं। हर अवसर और प्रसंग का नए कलाकारों को ध्यान रखना चाहिए। उनके साथ तबले पर शकील अहमद, पखावज पर आशीष गंगानी और गायन में सोहेब ने संगत की।

समारोह के पहली निशा में जयपुर घराने की वरिष्ठ नृत्यांगना व गुरु प्रेरणा श्रीमाली ने ‘अनूठी बसंत’ से नृत्य आरंभ किया। दूसरी रचना में प्रकृति की अनुपम सुषमा का वर्णन था। उन्होंने तीन ताल विलंबित लय में उपज में पैर का काम पेश किया। उन्होंने थाट में नायिका के खड़े होने का मोहक अंदाज पेश किया। सरपण गति से युक्त थाट में डोरा, कसक-मसक, आंखों का संचालन और कलाइयों व गले का घुमावदार संचालन काफी प्रभावकारी था। उन्होंने सरस्वती परण ‘जय सरस्वती सुखवंदे’, गत युक्त परण, त्रिपल्ली परण, परमेलू आदि को अपने नृत्य में प्रस्तुत किया। उनके साथ पखावज पर फतह सिंह गंगानी और तबले पर योगेश गंगानी की संगत खास रही।

नृत्यांगना राजश्री शिरके ने अपनी प्रस्तुति में रावण मंदोदरी संवाद को चित्रित किया। रामचरितमानस के लंकाकांड के दोहे और चौपाइयों पर आधारित यह नृत्य अभिनय सुरूचिपूर्ण था। उन्होंने रावण और मंदोदरी के चरित्र को बारी-बारी से दर्शाया। उनका नृत्य और अभिनय दोनों काफी परिपक्व और आकर्षक था। उन्होंने बैजू बावरा रचित धु्रपद ‘जटा जूट गंगा चंद्रमा ललाट’ पर शिव के मोहक निरूपण से अपने नृत्य की शुरुआत की। उन्होंने तीन ताल में थाट, उठान, तोड़े, टुकड़े, आमद और परमेलू को नृत्य समाहित किया। उनके साथ तबले व पखावज पर अनिरूद्ध शिरके, गायन पर मनोज देसाई और सितार पर विजय शर्मा ने संगत की।

कमानी सभागार में आयोजित कथक महोत्सव की दूसरी शाम त्रिभुवन महाराज, शिंजनी कुलकर्णी, सुष्मिता मिश्र, काजल मिश्र, सावेरी मिश्र, त्रिणा रॉय और वास्वती मिश्र ने नृत्य पेश किया। समारोह की अंतिम संध्या में इंदौर की सुचित्रा हरमलकर और काजल शर्मा ने कथक नृत्य किया। जबकि, समारोह का समापन कथक सम्राट पंडित बिरजू महाराज की प्रस्तुति से हुआ। इसके अलावा, कथक केंद्र में प्रभाती कार्यक्रम आयोजित था। इसमें कथक तालीम व बैठक भाव पर चर्चा और प्रदर्शन किया गया। इसमें वरिष्ठ नृत्यांगना कुमुदिनी लाखिया, पंडित मुन्ना शुक्ला, रश्मि वाजपेयी, शमा भाटे, शोवना नारायण, सुनयना हजारी लाल, काजल शर्मा, कमलिनी दत्त, शाश्वती सेन, आभा बंसल, नलिनी व शारदिनी गोले ने शिरकत की।