भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाली क्रांतिकारी, जुझारू नेता अरुणा आसफ अली ने देश को आजाद कराने के लिए वर्षों अंग्रेजों से संघर्ष किया था। उनका जन्म बंगाली परिवार में तत्कालीन पंजाब के कालका में हुआ था। इनका असली नाम अरुणा गांगुली था। उनकी स्कूली शिक्षा नैनीताल में हुई थी। नैनीताल और लाहौर से पढ़ाई पूरी करने के बाद वे शिक्षिका बन गईं और कोलकाता के गोखले मेमोरियल कालेज में अध्यापन करने लगीं।

उन्नीस वर्ष की आयु में दिल्ली के वकील और कांग्रेस नेता आसफ अली से अंतर्जातीय प्रेम विवाह किया

अरुणा गांगुली ने उन्नीस वर्ष की आयु में दिल्ली के सुविख्यात वकील और कांग्रेस के नेता आसफ अली से अंतर्जातीय प्रेम विवाह किया। उनके पिता इस अंतर्जातीय विवाह के विरुद्ध थे। मगर विवाह के बाद वे पति के पास आ गईं और उनके साथ प्रेमपूर्वक रहने लगीं। इस विवाह ने अरुणा के जीवन की दिशा बदल दी। भारत की दुर्दशा और अंग्रेजों के अत्याचार देखकर विवाह के बाद अरुणा आसफ अली स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेने लगीं। वे महात्मा गांधी और मौलाना अबुल कलाम आजाद के संपर्क में आईं और उनके साथ कर्मठता से राजनीति में भाग लेने लगीं।

कई बार जेल गईं, भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिगत रहकर नेतृत्व किया

उन्होंने 1930, 1932 और 1941 के व्यक्तिगत सत्याग्रह के समय जेल की सजाएं भोगीं। उनके ऊपर जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्धन जैसे समाजवादियों के विचारों का अधिक प्रभाव पड़ा। इसी कारण 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में अरुणा आसफ अली ने अंग्रेजों की जेल में बंद होने के बजाय भूमिगत रहकर अपने अन्य साथियों के साथ आंदोलन का नेतृत्व करना उचित समझा।

गांधी जी आदि नेताओं की गिरफ्तारी के तुरंत बाद मुंबई में विरोध सभा आयोजित करके विदेशी सरकार को खुली चुनौती देने वाली वे प्रमुख महिला थीं। मुंबई, कोलकाता, दिल्ली आदि में घूम-घूमकर लोगों में नई जागृति लाने का प्रयत्न किया। लेकिन 1942 से 1946 तक देश भर में सक्रिय रहकर भी वे पुलिस की पकड़ में नहीं आईं। 1946 में जब उनके नाम का वारंट रद्द हुआ, तभी वे प्रकट हुईं। सारी संपत्ति जब्त होने पर भी उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।

भूमिगत जीवन से बाहर आने के बाद 1947 में अरुणा आसफ अली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस समिति की अध्यक्ष निर्वाचित की गईं। दिल्ली में कांग्रेस संगठन को इन्होंने सुदृढ़ किया। मगर फिर 1948 में वे लोकनायक जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया और अच्युत पटवर्द्धन के साथ सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गईं। उसके दो साल बाद 1950 में उन्होंने अलग से ‘लेफ्ट सोशलिस्ट पार्टी’ बनाई और वे सक्रिय होकर मजदूर-आंदोलन में जी-जान से जुट गईं। अंत में सन 1955 में इस पार्टी का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विलय हो गया। वे भाकपा की केंद्रीय समिति की सदस्य और ‘आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस’ की उपाध्यक्ष बनाई गईं। 1958 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी भी छोड़ दी। 1964 में जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद वे फिर कांग्रेस पार्टी से जुड़ीं, किंतु अधिक सक्रिय नहीं रहीं।

1958 में दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर चुनी गई थीं।

अरुणा आसफ अली 1958 में दिल्ली नगर निगम की प्रथम महापौर चुनी गई थीं। मेयर बनकर उन्होंने दिल्ली के विकास, सफाई, और स्वास्थ्य आदि के लिए बहुत अच्छा काम किया और नगर निगम की कार्य प्रणाली में भी उन्होंने सुधार किए। अरुणा आसफ अली को 1964 में लेनिन शांति पुरस्कार, 1991 में जवाहरलाल नेहरू अंतरराष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, 1992 में पद्म विभूषण और इंदिरा गांधी पुरस्कार (राष्ट्रीय एकता के लिए) से सम्मानित किया गया था। 1997 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। 1998 में उन पर एक डाक टिकट जारी किया गया। उनके सम्मान में नई दिल्ली की एक सड़क का नाम उनके नाम पर अरुणा आसफ अली मार्ग रखा गया।