रोहित कुमार

सभ्यता के प्रारंभ से मनुष्य जीवन आज जहां तक पहुंच सका है, उसमें विचार अभिन्न रूप से इस यात्रा मनुष्य का सहयात्री रहा है। वास्तव में कहा जाए तो विचार के बिना जीवन संभव नहीं है। जीवन की शुरुआत जब होती है, तब भी विचार मनुष्य के साथ होता है। विचार के खत्म होने को इस रूप में देख सकते हैं कि एक मनुष्य के लिए विचार तभी खत्म होता है, जब उसका जीवन पूरा होता है। यानी उसकी मृत्यु होती है। यानी उस व्यक्ति के अस्तित्व से विचार समाप्त हो जाता है। मगर सच यह है कि विचार निरंतर है। असीम है। यह किसी व्यक्ति के खत्म होने के साथ सिर्फ उसी के लिए खत्म होता है। अपने अस्तित्व में विचार की यात्रा जारी रहती है। इसमें उतार-चढ़ाव अवश्य होते रहते हैं।

कई बार ऐसी स्थितियां आती हैं, जब पूरी तरह मनुष्य जड़ हो जाता है

जब मनुष्य विचारों के साथ अपने बाल्यकाल में रहा होगा, तब वह इसके विकास की प्रक्रिया से गुजर रहा होगा। उस क्रम में उसके सामने कई बार ऐसी स्थितियां आती होंगी, जब वह खुद को पूरी तरह जड़ हो गया महसूस करता होगा। कई बाधाएं ऐसी आती होंगी, जिसका हल वह नहीं निकाल पाता होगा। हालांकि तब भी उसके भीतर विचार की प्रक्रिया निरंतर जारी रही होगी। और इसी यात्रा में उसने उन समस्याओं का भी हल निकाल लिया होगा, रास्ते खोज लिए होंगे, जो उसके जीवन को बचा सकें, उसे आगे की ओर लेकर जाएं।

समस्या का जनक और समस्या का समाधान करने वाला, दोनों मनुष्य ही है

उसी यात्रा का परिणाम आज हर स्तर पर दिख जाता है, जब हम किसी सरल से लेकर जटिल समस्या, बाधा का सामना करते हैं, प्रश्नों से गुजरते हैं, तब विचारों का कोई नया समुच्चय खड़ा होता है। यह हमारे लिए नया रास्ता होता है, किसी परिस्थिति को बेहतर करने के लिए, किसी समस्या से पार पाने के लिए। दिलचस्प यह भी है कि किसी स्थिर समय में समस्या पैदा करने वाला भी मनुष्य ही है। यानी समस्या का जनक और समस्या का समाधान करने वाला, दोनों मनुष्य ही है।

समस्या भी एक विचार ही है और समाधान भी विचार ही है

यह समझना सरल है कि समस्या भी एक विचार ही है और समाधान भी विचार ही है। यह अलग बात है कि समस्या पैदा करने के लिए जो विचार किया जाता है, वह नकारात्मक होता है और उसका समाधान निकालने के लिए जिस विचार तक हम पहुंचते हैं, वह सकारात्मक होता है। सच यह है कि विचार से पीछा छूटना संभव नहीं है, उसका रूप चाहे जो हो। शेक्सपीयर ने कहीं लिखा था कि मेरे शब्द उड़ते हैं, लेकिन विचार नीचे रहते हैं और विचार रहित शब्द कभी भी स्वर्ग नहीं जाते। हालांकि शब्द अभिव्यक्ति है, विचार उसका स्रोत। हर एक शब्द के पीछे विचार एक लंबी प्रक्रिया से गुजरता है और अगर विचार है, तभी कोई शब्द सार्थक हो पाता है।

शब्दों की अपनी स्वतंत्र सत्ता नहीं होती अगर उसके पीछे विचार न खड़ा हो। उसी के आधार पर व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को मूर्त रूप देता है। यानी अवचेतन से चल कर अमूर्तन और फिर मूर्त रूप ग्रहण करना ही विचारों का शब्दों में अभिव्यक्त होना है। उसके बाद व्यक्ति का कर्म और उसके सहारे अपने जीवन को क्रमश: विस्तार देना भी विचार-यात्रा का ही परिणाम है। यों देखा जाए तो विचार का स्रोत मनुष्य का मस्तिष्क है। इसे आम समझ में मन भी कह देते हैं। मगर किसी भी विचार की अभिव्यक्ति हर स्तर पर शारीरिक है। वह बोलना हो, उस विचार के आधार पर कुछ लिखना हो, कोई काम करना हो। कहा जा सकता है कि विचार के स्रोत और अभिव्यक्ति के लिहाज से देखें तो यह मन और शरीर से अभिन्न रूप से आबद्ध है। इसका विस्तार होता है।

व्यक्ति जब भी किसी विचार के जरिए खुद को अभिव्यक्त करता है, तब उसके दायरे में वह खुद तो होता ही है, उसके आसपास मौजूद हर वस्तु और अन्य मनुष्य या फिर कोई जीव होता है। सभी उस विचार के ग्रहणकर्ता होते हैं। वस्तु इस रूप में कि वह व्यक्ति के भीतर उपजे विचार से संचालित होगा। उसका स्थान बदलने से लेकर उसका उपयोग होने तक। मनुष्य या अन्य कोई भी जीव इस रूप में कि अपनी-अपनी संवेदना की सीमा के तहत उन विचारों को ग्रहण करने के बाद उस पर प्रतिक्रिया संभव होगी। यह प्रतिक्रिया इस पर निर्भर होगी कि किसी संबंधित विचार का प्रारूप क्या है।

विचारों के प्रभाव को इस तरह से समझ सकते हैं कि हम जिस तरह के विचारों को आत्मसात करते हैं, उन्हें अपने अंतरतम में विस्तार देते हैं, हम आमतौर पर वही बन जाते हैं। निजी स्तर पर अपने लिए और सार्वजनिक स्तर पर सबके लिए हम वही हो जाते हैं, जिन विचारों को हम अपना संचालक तत्त्व बनाते हैं। इसलिए अगर हम अपने व्यक्तित्व को लेकर चिंतित हैं, तो इस पर विचार करना भी हमारा ही दायित्व है कि हम किन विचारों से संचालित होते हैं, किन विचारों के वाहक हैं, क्योंकि आखिर यही सब हमारे व्यक्तित्व के, हमारे संसार के निर्धारक तत्त्व हैं।