कुछ अक्षरों को कागज पर उतारने का हमारा जरिया आज क्या है? पिछले दिनों सोशल मीडिया पर कहीं दिखा कि जब सब कुछ मोबाइल या कंप्यूटर के की-बोर्ड पर ही टाइप करना है तो अपना हस्तलेखन सुधारने के लिए मैंने खामख्वाह ही इतनी मेहनत की। कागज के एक पन्ने पर दर्ज और उसकी खिंची तस्वीर से साफ था कि लिखावट सुंदर थी और पंक्तियां उतनी ही सच। यह टिप्पणी करने वाले का दर्द समझा जा सकता है। हम सब यह गौर कर सकते हैं कि पिछली बार कितने दिन, महीने या साल पहले हमने कागज कलम उठा कर कुछ लिखा था। शायद कोई भी तारीख याद न कर पाए। आज हम अपना हर छोटा-बड़ा ज्यादातर काम मोबाइल पर करने लगे हैं। संदेश भेजने से लेकर हिसाब करने, डायरी या पत्र लिखने सब कुछ मोबाइल पर।
इस संबंध में एक लेखक का कहना है कि वे जब तक अपने लैपटाप को खोल कर सामने नहीं रख लेते, तब तक उनके दिमाग में विचार ही नहीं पनपते। उनके लिए एक पंक्ति भी लिखना भारी लगता है। अब जब तकनीक की ऐसी लत लग चुकी हो तो भला कागज-कलम की याद कौन करे!
एक समय ऐसा था जब बच्चों की जन्मतिथि और याद रखने वाली दूसरी जरूरी बातें कापी में लिख कर रखा जाता था। अव्वल तो सारे सोहर और विवाह गीत मुंहजबानी याद होते थे, फिर भी नई पीढ़ी की लड़कियां उन्हें डायरी, कापी में उतार कर रखती थीं। मोबाइल युग आने से थोड़ा पहले तक कई लोग गीत, कविताएं, गजल बड़े लोगों की कही बातें और सुंदर पंक्तियां अपनी डायरी में उतार कर रखते थे। नया वर्ष आते ही किशोरवय के बच्चे पिता से डायरी की मांग करते थे, ताकि नए वर्ष के नए अनुभवों और बातों को डायरी में उतार कर रख सकें। अचार पापड़ बनाने की विधियां लिख कर रख सकें। फिर खाली समय में जब डायरी के पन्ने उलटे जाते तो लगता कि कितनी अनमोल चीज को निहारा जा रहा है। वर्षों पहले लिखी बातें दोबारा पढ़कर बिल्कुल वही अनुभूति ताजा हो जाती। डायरी में दूसरों की कविताएं लिखते- पढ़ते भी किसी-किसी को लिखने का शौक हो आया।
पत्र भावनाओं की होती थी पोटली
पुराने समय में कोई कुछ लिखे न लिखे, पत्र जरूर लिखता था। सहज सरल भाषा में लिखे पत्र जितने आत्मीय होते थे, उतने ही देशज सभ्यता संस्कृति के वाहक भी। पत्रों के एक- एक शब्द में भावों की पोटली हुआ करती थी। लोग अपने आत्मीयों के पत्र संभाल कर रखते थे। मरने के बाद जब बुजुर्गों के बक्से खंगाले जाते थे, तो उसमें से कई पोस्ट कार्ड, अंतर्देशीय निकलते थे। बड़े-बड़े लोगों के पत्र तो आज भी देश की धरोहर माने जाते हैं। उनका बाकायदा अध्ययन-मनन होता है। कोई बड़ा व्यक्ति किसी आम आदमी को हाथ से पत्र लिखकर भेजे तो वह पत्र उसकी अनमोल संपदा का हिस्सा बन जाती है। वह उसे जीवन भर संभाल कर रखता है।
मगर आज सब कुछ टंकित हो गया है। मशीनी शब्दों में जीवित भावनाओं का अभाव-सा रहता है। हम सिर्फ पत्र के नीचे बने हस्ताक्षर को देखकर संतोष कर लेते हैं। कलम से कागज पर पत्र लिखने का चलन शायद ही कहीं बाकी है।
पर्यावरण के लिए काम करने वाली एक कार्यकर्ता का कहना है कि हमसे बहुत कुछ छूटता जा रहा है। कागज पर लिखी बातों में एक आकर्षण होता है। प्रेमी के दिए पत्र को प्रेमिका सैकड़ों बार उसी सम्मोहन से पढ़ती थी। ऐसा आकर्षण टाइप किए हुए संदेशों में नहीं होता। बहुत सारी अच्छी चीजों को पुराना चलन कह कर नकार दिया जाता है। मगर अच्छी चीजें जीवित रहनी चाहिए।
सच कहा जाए तो लिखना एक कला है। जरूरी नहीं कि हम लेखक-लेखिका हों, तभी लिखें। जब हम किसी बात को कागज पर लिखते हैं तो उस बात को अपनी स्मृति में कहीं गहरे तक अंकित करते हैं। वह सोशल मीडिया के संवाद घेरे में लिखी बात से कहीं ज्यादा स्थायी और प्रभावी होती है। लिखने का असर हमारे दिमाग पर भी पड़ता है। मसलन, लिखते वक्त हमारा दिमाग एकाग्र होता है। जिस तरह हम कागज कलम उठा कर व्यवस्थित तरीके से लिखने बैठते हैं, ठीक उसी तरह हमारा दिमाग भी लिखी जा रही उस बात को अपने अंदर व्यवस्थित कर रहा होता है। एक तरह से यह हमारे दिमाग की कसरत भी हुई। नई तकनीक लोगों को लिखने से महरूम कर रही। लिखने से छुट्टी पाकर या लेकर हम खुश भी हो रहे। इस छुट्टी के कुछ फायदे गिनाए जा सकते हैं। लेकिन ऐसा लगता है यह छुट्टी लगातार सीखने की प्रक्रिया को बाधित कर रही है। हमारा परावलंबन धीरे-धीरे हमारे ज्ञान को भी परावलंबी बना रहा। हम अपने ज्ञान को लगातार विकसित करने के बजाय इंटरनेट पर परावलंबी हो गए है। यह सबसे बड़ा नुकसान हुआ है और निरंतर हो रहा है।
लिखने से बढ़ती है पढ़ने- लिखने में रुचि
लिखने से हमारे दिमाग की कुशाग्रता बढ़ती है। हमारी समझ का दायरा बढ़ता है और सबसे बड़ी बात पढ़ने- लिखने के प्रति रुचि भी जगती है। जब एक नन्ही बच्ची एनी फ्रैंक ने अपनी भावनाओं को कागज पर उतारना शुरू किया, तो उसे कहां पता था कि डायरी में उसके लिखे शब्द दुनिया भर में हलचल मचा देंगे। अपने यहां भी पत्रों की अहमियत को दर्शाने वाले उदाहरण रहे हैं। उनमें दर्ज बातें स्थायी महत्त्व की होती हैं।