मोनिका राज

यह सच है कि स्वच्छंदता सभी को पसंद होती है, चाहे वह पशु-पक्षी हो या अन्य कोई भी जीव। फिर मनुष्य तो हर रूप में सर्वश्रेष्ठ होता है, भला वह किसी बंधन में बंधकर कैसे जी सकता है! वह तो बेरोक-टोक हर कार्य संपादित करना चाहता है। मगर जब भी हम किसी का साथ मंजूर करते हैं, चाहे वह मैत्री हो, प्रेम-संबंध हो या विवाह-संबंध, हमें उसी पल यह समझ लेना चहिए कि वक्त के साथ कुछ चीजों को बदलना ही होगा, तभी वह वास्तव में फलीभूत होगा।

अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं बदलना है

बदलाव से यहां तात्पर्य इस बात से नहीं है कि हम अपने वास्तविक स्वरूप को ही बदल डालें, क्योंकि अगर ऐसा होगा, तो हम खुद को हमेशा के लिए खो देंगे। यहां बदलाव से आशय है कि सकारात्मक रूप में कुछ बदलाव किए जाएं, ताकि आपसी सामंजस्य बिठाने में कोई तकलीफ न आने पाए।

तारतम्य बिठाने में बहुत सी परेशानियां होती हैं

जब दो विपरीत स्वभाव के लोग साथ आते हैं तो आपसी तारतम्य बिठाने में बहुत-सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जिस बात को हम अब तक शान से अपना गुण समझते थे, वही किसी के पदार्पण मात्र से अवगुण में बदलता प्रतीत होता है। हम खुद को किसी भी कीमत पर बदलना नहीं चाहते। इस तरह रिश्तों में कड़वाहट बढ़ने लगती है और कई मामले में खींचतान बढ़ने से मामला संबंध-विच्छेद तक पहुंच जाता है।

जीवन में मतभेद होता ही रहता है। हर शख्स का स्वभाव अलग होता है और वह प्रत्येक मामले में सामने वाले को नीचा दिखाने और खुद को बेहतर साबित करने की जद्दोजहद में लगा रहता है। इस होड़ में इंसान भूल जाता है कि कोई भी व्यक्ति कभी परिपूर्ण नहीं हो सकता। बदलाव की संभावना हर जगह मौजूद होती है। अगर थोड़ा-सा बदलाव अपने अंदर लाकर संबंधों में प्रगाढ़ता लाई जा सकती है, तो क्यों न इसकी शुरुआत की जाए। किसी के सान्निध्य में रहकर ही हम अपने अंदर की कमियों को समझकर उसे दूर कर सकते हैं। कबीर ने भी कहा है- ‘निंदक नियरे राखिए आंगन कुटी छवाय, बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।’

कुछ बदलाव हमें एक समझदार और सुलझे हुए इंसान के रूप में परिणति के लिए नितांत आवश्यक हैं। बदलाव एक सतत प्रक्रिया है। बिना निरंतरता के यह संभव नहीं। अपने अंदर बदलाव लेकर आना किसी चुनौती से कम नहीं होता, क्योंकि हम अब तक अपने जिन गुणों या अवगुणों के साथ जी रहे होते हैं, हमें उसकी आदत पड़ चुकी होती है। हम चाह कर भी उसे नहीं छोड़ पाते, पर दृढ़ निश्चय और लगन से यह संभव हो सकता है।

ब्रिटिश साहित्यकार अर्नाल्ड बेनेट के अनुसार, ‘कोई भी बदलाव, यहां तक कि बेहतर होने के लिए एक बदलाव, हमेशा कमियों और असुविधाओं के साथ होता है।’ अपने अंदर बदलाव लाना बेहद कठिनाइयों से भरा होता है, लेकिन अगर हम कृतसंकल्प होकर दृढ़ निश्चय और लगन से आगे बढ़ें तो कोई भी कार्य दुरूह नहीं है। बस जरूरत है आत्मसंयम और निरंतरता की। अगर हम शांत चित्त के साथ आत्म-मंथन करें तो हमारी कमियां खुद ही दृष्टिगोचर होने लगती हैं। इसे पहचान कर अपने छोटे-छोटे प्रयासों से इसे दूर करना चाहिए। सकारात्मक बदलाव हमें एक बेहतर इंसान बनने और एक स्वस्थ समाज का निर्माण करने में भी सहायक होता है।

महान रूसी साहित्यकार लियो टाल्सटाय के अनुसार, ‘सच्चा जीवन तब जिया जाता है जब छोटे-छोटे बदलाव होते हैं।’ बदलाव लाकर ही हम अपने अंदर जीवंतता को बरकरार रख सकते हैं। बदलाव की शुरुआत अगर छोटे स्तर पर किए जाएं तो धीरे-धीरे हमारा मन-मस्तिष्क उसे स्वीकार करने लगता है और कोई मानसिक दबाव का भान भी नहीं होता। वहीं अगर अचानक बड़े बदलाव की मंशा से हम स्वभाव के विपरीत खुद को बदलने का प्रयास करने लगते हैं, तो हमारे अंदर कोई सकारात्मक बदलाव तो नहीं आ पाता, बल्कि नकारात्मकता जरूर घर कर जाती है। परिणामस्वरूप मन अशांत हो जाता है और हम अपनी खीझ दूसरों पर उतारने लगते हैं। इससे रिश्ते बनने के बजाय बिगड़ने शुरू हो जाते हैं।

जिस प्रकार खुद के चेहरे पर लगी धूल का भान बिना दर्पण देखे नहीं हो पाता, ठीक वैसे ही स्वयं की खामियों को हम बिना खुद बेहतर इंसान के सान्निध्य में रहे, नहीं जान सकते और बिना अपनी कमी को समझे, उसे दूर भी नहीं कर सकते। बेहतर होता है अगर हम अपनी कमियों को सकारात्मकता के साथ दूर कर बिना किसी वैमनस्य के अपने साथी से तालमेल बिठाएं और प्रेम से उस रिश्ते को मजबूती प्रदान करें, ताकि वह रिश्ता अटूट हो सके और वर्षों तक उसमें शक और नफरत की गांठ न पड़ने पाए।

प्रेम और विश्वास की नींव पर टिके हुए रिश्ते ही लंबे समय तक टिके रह पाते हैं। जीवन-पथ में एक सच्चे साथी का साथ सही मायने में हमारे अंदर सकारात्मक बदलाव लेकर आता है, जिससे जिंदगी की हर मुश्किल धीरे-धीरे आसान मालूम पड़ने लगती है।