राजेंद्र प्रसाद

जीवन में प्रसन्नता हमारे अंतर्मन और बाह्य वातावरण के लिए जिम्मेदार है। इसे थोपा नहीं जा सकता और न ही खरीदा जा सकता है। प्रसन्नता हमें सुखी, संतोषी और धैर्यवान बनाने में मदद करती है। जीवन में भिन्न-भिन्न प्रकार की उठापटक संभव है, जिससे हमारे ऊपर सुख-दुख और हर्ष-विषाद की केंचुली आ जाती है।

मन में प्रसन्नता की जड़ अगर जमी हो तो बाहर का पौधा रूपी आवरण उमंग, उत्साह और उल्लास जगाता है। हमारी बुनियादी इच्छा रहती है कि खुश रहें, पर इसके लिए अपने व्यक्तित्व को ढालना-पालना और समृद्ध करना भी जरूरी है। इच्छा मात्र से उसे पाया नहीं जा सकता। खास बातों पर गौर करके उसे मूर्त रूप दिया जा सकता है।

प्रसन्नचित्त वातावरण जीवन में उम्मीद और नई राह दिखाता है। सामान्यत: हम स्वार्थ, संकीर्णता, लोभ-लाभ के चक्कर में सगे-संबंधियों और मित्रों को खोकर निराशा पैदा कर लेते हैं। जैसे वक्त के रुख से अखबार सुबह कीमती होता है और शाम को रद्दी बन जाता है। वैसे ही जीवन में कुछ लोग झटकों से बिखर जाते हैं और किसी को अपने नजदीक न पाने से मन शोक में डूब जाता है।

ऐसी नकारात्मकता से जीवन निरर्थक लगता है और अजीब से वैराग्य से मन बेचैन हो उठता है। वास्तव में हम आनंद की इच्छा रखते हैं तो प्रसन्नता के काम करने की सख्त जरूरत है। प्रसन्नता जीने का अर्थ प्रदान करती है और एक नई रोशनी की तरफ ले जाती है, जिससे आगे बढ़ने और कुछ श्रेष्ठ संकल्प से अपना रास्ता आसान कर सकते हैं।

परिस्थितियों को सामान्य करने की सामर्थ्य खुद को प्रसन्नभाव से रखने और दूसरों को प्रसन्नचित्त बनाने में ही है। ऐसी ऊर्जा से युक्त जीवन हर छोटी-बड़ी चुनौती से संघर्ष की क्षमता रखता है। उसमें व्यवधानों को दरकिनार करने की ताकत आती है। कुछ लोग प्रसन्नता को साधनों और धन की उपलब्धता से जोड़ लेते हैं।

जब हम अपने पूर्वजों के अतीत में झांकते हैं तो हमें सच्चाई के दर्शन जरूर हो सकते हैं, जो संसाधनों के अभाव के बीच संतोषी बने रहते थे। उन्होंने अपने भुजबल से पर्वत, चट्टानों और उबड़-खाबड़ रास्तों को सही बनाया। पानी की किल्लत से निपटने के लिए तालाब, पोखर, कुएं आदि बनाए। यह सब जूझने और संकल्प शक्ति से ही संभव हुआ। इसलिए हमें अपने जीवन में प्रसन्नभाव की कमी नहीं होने देनी चाहिए। ऐसा जीवट सही राह दिखाता है और आनंद के खेत को हरा-भरा रखता है। इससे अर्थपूर्ण जीवन के रास्ते खुले रहते हैं।

कई उदाहरण हमारी आंखें खोलते हैं। तितली की उम्र आमतौर पर चौदह दिनों की होती है, पर वह हर पल मस्ती में बिताती है। हमें दबाव के बीच काम करना पड़े तो प्रेशर कुकर से सीख सकते हैं। ऊपर दबाव, नीचे आग और फिर भी कुकर सीटी बजाता है, क्योंकि इससे दबाव का समाधान होता है।

खुश रहना है तो अधिक ध्यान उस पर दें जो आपके पास है, न कि उस पर जो दूसरों के पास है। खुशी बड़ी उपलब्धियों में नहीं है, बल्कि छोटे पलों को जीने में है। छोटी खुशी छोटी लगती है, लेकिन जब उसे बांटते हैं तो छोटी होने पर भी बड़ी और बेशकीमती होती है। ऐसे खजाने को छोटी-छोटी बातों में नहीं गंवाना चाहिए।

खुशी के लिए बहुत इकट्ठा करना पड़ता है, ऐसा हम समझते हैं, लेकिन उसके लिए बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है, ऐसा अनुभव कहता है। अगर खुशी के लिए काम करेंगे तो शायद खुशी न मिले, लेकिन खुश होकर काम करेंगे तो खुशी और सफलता मिलना संभव है। ज्यादातर खुशी उनको नहीं मिलती जो शर्तों पर जीते हैं। खुशी उनको मिलती है, जो दूसरों की खुशी के लिए शर्तें बदलते हैं।

खुशियां चंदन की तरह दूसरों के माथे पर सजाई जाएं तो अपनी अंगुलियां महक उठेंगी। खुशियां देने से मन हल्का होता है, पर किसी का दिल दुखा कर अपने लिए खुशियों की उम्मीद नहीं करना चाहिए। कुछ लोग चुपचाप संघर्षरत होते हैं। संभव है, आपकी मदद से उनके दिन फिर जाएं। जिसने दूसरों की खुशी में अपनी खुशी देखने का हुनर सीखा है, वह कभी दुखी नहीं हो सकता।

मनुष्य अगर अपनी इच्छाओं को घटाकर देखे तो खुशियों का संसार बस जाएगा। खुशी के विषय में जितना सोचा जाए, हम उतना ही खुश रहेंगे और दुख के विषय में सोचेंगे तो हम दुखी रहेंगे। छोटी खुशियां ही जीने का सहारा बनती हैं। इच्छाओं का क्या है, वे तो पल-पल बदलती हैं। हर समय खुश रहना चाहिए, क्योंकि परेशान होने से कल की मुश्किलें खत्म नहीं होंगी, बल्कि आज का सुकून भी चला जाएगा।

अगर हम खुद को खुश नहीं रखेंगे तो दूसरों को कैसे खुश कर सकेंगे? जो चीज हमारे पास है ही नहीं, उसे हम दूसरों को कैसे बांट सकते हैं? कहा भी गया है कि जो लोग दूसरों को अपनी खुशियों में शामिल करते हैं, खुशियां सबसे पहले उनके दरवाजे पर दस्तक देती हैं।