किसी के किए गलत काम का पर्दाफाश हो जाए तो कई बार अनायास ही हमारे मुंह से निकलता है कि उसका खेल खत्म हो गया। ऐसा अवचेतन मन से निकलता है। वास्तव में जीवन एक खेल ही है। मगर यह क्रिकेट में रनों की संख्या या फुटबाल में गोल की संख्या से तय होने वाला छोटी अवधि का नहीं, बल्कि लंबा चलने वाला खेल है। इसकी समय सीमा हम नहीं तय करते हैं। इसलिए इसमें हार या जीत के नहीं, बल्कि खेल को सही तरीके से खेलने और इसके लिए ईमानदार प्रयास करते रहने के मायने हैं। जीवन के इस अनूठे और अनिवार्य खेल में हमें अपनी प्राथमिकताओं को जानना और जीना है। अगर हम यही नहीं जानते कि हमारे लिए क्या महत्त्वपूर्ण है और कौन-सी चीजें, लोग या स्थान हमारे लिए नितांत अनुपयोगी हैं तो फिर हम सही तरीके से जिएंगे कैसे? प्राथमिकताओं को जानने के बाद ही हम अपना ध्यान उन पर एकाग्र कर सकते हैं।
सबसे पहले यह जान और मान लेना चाहिए कि जीवन के व्यावहारिक खेल में यह कभी भी संभव नहीं हो सकता कि कोई लगातार हर बाजी जीतता ही जाए। इसलिए हारने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। हार से सबक सीखना जरूरी है कि आखिर गलती कहां हुई। यह भी जानना जरूरी है कि इसी दौरान कई खेल ऐसे भी खेल खेलने होते हैं जिनमें हारना बेहतर होता है, जीतना नहीं। विशेष रूप से रिश्तों के मामले में यह नियम अवश्य लागू हो जाता है।
यह एक मशहूर उक्ति है कि जीवन में आशा और निराशा के क्षण भी रात और दिन की तरह आते-जाते रहते हैं। आशा जहां हमारे जीवन में शक्ति और उत्साह का संचार करती है, वहीं निराशा हमें मृत्यु की ओर धकेलती है। निराश व्यक्ति जीवन से उदासीन और विरक्त होने लगता है। उसे अपने चारों ओर अंधेरे के अलावा कुछ नजर नहीं आता, जबकि आशावादी मौत के मुंह से भी वापस आ जाता है। दरअसल, जीवन एक ऐसा खेल है, जिसमें हमें बेशुमार या अनगिनत लोगों का साथ चाहिए होता है।कभी उन्हें अपने साथ लेकर चलना होता है तो कभी हमें उनके साथ चलना होता है। ऐसा तभी सही तरीके से हो सकता है, जब हम व्यवहार कुशल हों, लोगों के साथ मधुरता से बात कर सकें और उनके काम आना सीख सकें। दूसरों से भी हम तभी ऐसी उम्मीद कर सकते हैं जब हम उनके साथ ऐसा व्यवहार करें।
जीवन कारोबार और राजनीति के तरह चलने वाला अनंत खेल
जीवन में दैनिक या कतिपय लक्ष्यों के लिए काम करने के हमारे प्रयास सबसे पहले यह पता लगाने के लिए हैं कि हम अपनी श्रेष्ठतम और उच्चतम संभावनाओं से कितनी दूर हैं। हमारे काम के मूल में अधिक वास्तविक तरीके से जीने की इच्छा होनी चाहिए। अन्यथा हम व्यर्थ की तुलनाओं, दिखावों और ईर्ष्या के अवचेतन गुलाम हो सकते हैं या फिर एक सचेत सेवक। विद्वान जेम्स पी कार्से का कहना है कि जीवन परिभाषित समाप्ति वाला नहीं, बल्कि कारोबार और राजनीति की तरह चलने वाला अनंत खेल है, जिसमें खेल को जीत कर समाप्त करने के बजाय खेलते रहने का ज्यादा महत्त्व है। हमें सांस लेने, खाने और अपनी दिनचर्या में रत रहने में आनंद लेना चाहिए। अपने जीवन को लगातार पोषण देना होता है। साथ ही इसे सहज सरल सार्थक रखने के प्रयास करने होते हैं। जैसे विस्तृत सोच वाले नेता ज्यादा मजबूत, व्यापक पहुंच वाला, ऊर्जावान और प्रभावशाली संगठन बनाने में कामयाब होते हैं, वैसे ही बड़ी सोच वाले व्यक्ति जीवन के खेल को कुशलता से खेल सकते हैं।
जीवन की गुणवत्ता निखारने और खेल में पारंगत होने के लिए अमेरिकी लेखक और प्रेरक वक्ता साइमन सिनेक की बात पर गौर किया जा सकता है। उनका कहना है कि आपको लोगों पर प्रभाव जमाने के लिए पांच गुण जरूर सीख लेने चाहिए। आगे बढ़कर नेतृत्व करने का साहस, लचीलापन, अच्छे लोगों से प्रतिद्वंद्विता, विश्वसनीय टीम का गठन तथा नैतिक मूल्यों पर विश्वास। जीवन के इस खेल को हम आनंदपूर्वक खेलना चाहते हैं तो किसी औसत, असफल या बिना लक्ष्य के भटक रहे व्यक्ति की तरह नहीं, बल्कि श्रेष्ठ लोगों की तरह सोचना चाहिए। असफल और सामान्य लोग हमेशा आराम के बारे में सोचते हैं। उनके मन में लगभग हर किसी के प्रति नफरत भरी होती है। उन्हें लगता है कि नफरत करना और आराम करना आसान है। जबकि वास्तविकता इससे उलट होती है। लोगों से प्यार करना और खुद को अच्छे कामों में व्यस्त रखना ज्यादा आसान है। विनम्रता, प्यार और मेहनत व्यक्ति को लचीला और मजबूत बनाती है, उस घास की तरह जो तूफान में पेड़ों के उखड़ जाने के बावजूद अपना अस्तित्व इसलिए बचा लेती है कि उसमें झुकने का गुण है।
कई लोग सोचते हैं कि जीवन कठिन और भयावह है, लेकिन उन्हें शायद पता नहीं होता कि कठिनाइयां ही हमें मजबूत, अनुभवी और चतुर बनाती हैं। फ्रेडरिक नीत्से कहते हैं, चुनौतियों की तलाश करना भी अपने भाग्य को खुद बनाने का तरीका है। अपने जीवन में भाग्य को न केवल स्वीकार करना, बल्कि उससे प्यार करना और स्वयं संवारना भी सीखना चाहिए। अगर हम धारा का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं और कुछ अलग करना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने लिए चीजों को आसान बनाना बंद कर देना चाहिए। जीवन का सार्थक अस्तित्व दुख और पूर्णता के रिश्ते पर टिका है। अपने जीवन को सार्थक और आनंददायक बनाने के लिए हमें न सिर्फ खुद का, बल्कि समय-समय पर औरों के लिए भी कुछ अच्छा और उपयोगी करने का प्रयास करना चाहिए। दूसरों के प्रति अच्छी भावना रखना चाहिए और परोपकार करना चाहिए। रोज सुबह उठकर इतना जरूर सोचना चाहिए कि मैं भाग्यशाली हूं कि मैं जीवित हूं।